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शनिवार, 29 मई 2010

लीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है..? (गजल)..........नीरज गोस्वामी

खौफ का जो कर रहा व्यापार है आदमी वो मानिये बीमार है चार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता तल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है जिस्म से चल कर रुके, जो जिस्म पर उस सफ़र का नाम ही, अब प्यार है दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ दोस्तों के हाथ में तलवार है लुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग लीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है ज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए ग़म, खुशी में फ़र्क ही बेकार हैबोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुराक्या करे...

घर से बाहर {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

ठिठक जाता है मन मुश्किल और मजबूरीवश निकालने पड़ते है कदम घर से बाहर ढेहरी से एक पैर बाहर निकालते ही एक संशय, एक शंदेह बैठ जाता है मन में की आ पाउँगा वापस, घर या नहीं जिस बस से आफिस जाता हूँ कहीं उसपर बम हुआ तो......... या रस्ते में किसी दंगे फसाद में भी....... फिर वापस घर के अन्दर कर लेता हूँ कदम बेटी पूंछती है पापा क्या हुआ ? पत्नी कहती है आफिस नहीं जाना क्या ? मन में शंदेह दबाए कहता हूँ एक गिलाश पानी........ फिर नजर भर देखता हूँ बीवी बच्चों को जैसे कोई मर्णोंमुख देखता है अपने परिजनों को पानी पीकर निकलता हूँ घर से बाहर सोंचता...