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शनिवार, 17 जुलाई 2010

पावस गीत ---क्या हो गया..........डा श्याम गुप्त

इस प्रीति की बरसात में ,भीगा हुआ तन मन मेरा |कैसे कहें ,क्या होगया,क्या ना हुआ , कैसे कहें ||चिटखीं हैं कलियाँ कुञ्ज में ,फूलों से महका आशियाँ |मन का पखेरू उड़ चला,नव गगन पंख पसार कर ||इस प्रीति स्वर के सुखद से,स्पर्श मन के गहन तल में |छेड़ वंसी के स्वरों को ,सुर लय बने उर में बहे ||बस गए हैं हृदय-तल में ,बन, छंद बृहद साम के |रच-बस गए हैं प्राण में,   बन करके अनहद नाद से ||कुछ न अब कह पांयगे,सब भाव मन के खोगये,शब्द,स्वर, रस ,छंद सारे-सब तुम्हारे ही होगये ||अब हम कहैं या तुम कहो,कुछ कहैं या कुछ ना कहैं |प्रश्न उत्तर भाव सारे,प्रीति...

तस्वीर......................श्यामल सुमन

अगर तू बूँद स्वाती की, तो मैं इक सीप बन जाऊँकहीं बन जाओ तुम बाती, तो मैं इक दीप बन जाऊँअंधेरे और नफरत को मिटाता प्रेम का दीपकबनो तुम प्रेम की पाँती, तो मैं इक गीत बन जाऊँतेरी आँखों में गर कोई, मेरी तस्वीर बन जायेमेरी कविता भी जीने की, नयी तदबीर बन जायेबडी मुश्किल से पाता है कोई दुनियाँ में अपनापनबना लो तुम अगर अपना, मेरी तकदीर बन जायेभला बेचैन क्यों होता, जो तेरे पास आता हूँकभी डरता हूँ मन ही मन, कभी विश्वास पाता हूँनहीं है होंठ के वश में जो भाषा नैन की बोलेनैन बोले जो नैना से, तरन्नुम खास गाता हूँकई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गातेबहुत हैं...