इस प्रीति की बरसात में ,भीगा हुआ तन मन मेरा |कैसे कहें ,क्या होगया,क्या ना हुआ , कैसे कहें ||चिटखीं हैं कलियाँ कुञ्ज में ,फूलों से महका आशियाँ |मन का पखेरू उड़ चला,नव गगन पंख पसार कर ||इस प्रीति स्वर के सुखद से,स्पर्श मन के गहन तल में |छेड़ वंसी के स्वरों को ,सुर लय बने उर में बहे ||बस गए हैं हृदय-तल में ,बन, छंद बृहद साम के |रच-बस गए हैं प्राण में, बन करके अनहद नाद से ||कुछ न अब कह पांयगे,सब भाव मन के खोगये,शब्द,स्वर, रस ,छंद सारे-सब तुम्हारे ही होगये ||अब हम कहैं या तुम कहो,कुछ कहैं या कुछ ना कहैं |प्रश्न उत्तर भाव सारे,प्रीति...