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रविवार, 27 मार्च 2011

चंद सवालात {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

ए महबूब ! फिर कर रहा, ये नादाँ, वही पुरानी बात तुझसे कौंधते है जो ज़हेन में, पूंछने है वही चंद सवालात तुझसे कब पहुंचेगी अर्सा-ए-दहर की तपिश में ठण्ढक अभी क्या देर है, वस्ल-ए-सब को, आखिर कब होगी मुलाकात तुझसे क्यूँ भटकता दर-बदर आरजू-ए-काफिला दिल का कब पाएगी ये बेजाँ रूह, नूर-ए-हयात तुझसे तेरे इश्क की मीरास है, फिर क्यूँ माजूर हूँ मै भला कब पाएगी बुझती शमाँ, दरख्शां सबात तुझसे **************************************** *********** (अर्सा-ए-दहर= संसार का मैदान, वस्ल-ए-सब= मिलन की शाम, नूर-ए-हयात= जीवन का उजाला, मीरास= धरोहर ,  दरख्शां=चमकने...