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सोमवार, 18 जनवरी 2010

तुम बिना महफ़िल सजाना क्या सही है ----(निर्मला कपिला)

बेवज़ह बातों ही बातों में सुनाना क्या सही हैभूला-बिसरा याद अफसाना दिलाना क्या सही हैकुछ न कुछ तो काम लें संजींदगी से हम ए जानमपल ही पल में रूठ जाना और मनाना क्या सही हैमुस्करा ऐसे कि जैसे मुस्कराती हैं बहारेंचार दिन की ज़िन्दगी घुट कर बिताना क्या सही हैख्वाब में आकर मुझे आवाज़ कोई दे रहा हैबेरुखी दिखला के उसका दिल दुखाना क्या सही हैतुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द साथीछेड़ कर सारी खरोचें दिल दुखाना क्या सही हैअब बड़े अनजान बनते हो हमारी ज़िन्दगी सेफूल जैसी ज़िन्दगी को यूँ सताना क्या सही हैज़िन्दगी का बांकपन खो सा गया जाने कहाँ...