हिन्दीहिन्दी है राजनीति की शिकार हो गयी।धारा संविधान की बेकार हो गयी ।सोते रहे रहनुमा कुर्सी के मोह में--है राष्ट्रभाषा संसद में लाचार हो गयी ।हिन्दी का पोर-पोर बिंधा घावों से ।हो गया आहत ह्रदय बिडम्बनाओं से ।कलम के सिपाहियों खामोश मत रहो --है राष्ट्र भाषा सिसक रही वेदनाओं से । अखबारडर जाये जो आतंक से कलमकार नहीं है ।मोड़े जो मुख सत्य से पत्रकार नहीं है ।जनता के दुखदर्द को जो लिख नहीं पाया--हो कुछ भी वो मगर वो अखबार नहीं है...