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रविवार, 15 नवंबर 2009

आशा और इच्छा ( आलेख ) ...................संतोष कुमार "प्यासा"

आशा और इच्छा देखने में तो बहुत छोटे शब्द लगते हैं लेकिन इन शब्दों में गहराई बहुत है इन शब्दों में अथाह शक्ति है खास कर सफलता प्राप्ति में इन शब्दों का अपना अलग महत्व है! आशा सफलता की आत्मा है कसी भी साफलता के लिए हम आशा करते है की अमुक कार्य सफल होगा और हमे सफलता भी प्राप्त होती है, वास्तव में आशा सफलता रुपी वृक्ष का अंकुर है जिसे हमे सहेज कर रखना चाहिए ताकि हमारा सफलता रुपी व्रक्ष मुरझा न जाए!मीणा आशा के सफलता की प्राप्ति नहीं होती !इच्छा हर मनुष्य करता है और इच्छा करनी भी चाहिए यदि हम किसी वस्तु की इच्छा तो उसे पाने की चेष्टा करते है और उसे प्राप्त...

संतोष धन---------{डा० तारा सिंह}

’जब आये संतोष धन, सब धन धूरि समान’, यह उक्ति तो सचमुच अकाट्य है, लेकिन यह संतोष धन कभी किसी के पास आता भी है क्या । मेरी समझ से तो नहीं । अगर आता होता, तो इस दुनिया में, साधु – संत तक निराशा की जिंदगी नहीं जीते । एक रोटी और एक भगोटी बहुत होता । लेकिन नहीं, एक रोटी, एक लंगोटी अब साधु – सन्यासियों की नहीं रही । उन्हें चाहिये, गाड़ी – बंगला, एक बड़ा मठ, नौकर – चाकर; अर्थात , जहाँ सबसे पहले संतोष को आना चाहिए था, संतोष , अभी तक वहाँ भी नहीं पहुँच पाया है । आम आदमी की तो बात ही छोड़िये । वे तो जनमते ही जिंदगी से असंतुष्टता की शिकायत शुरू कर देते हैं...