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गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

सुख बिजली जाने का...(व्यंग्य)...मोनिका गुप्ता

अरे भाई, हैरान होने की कोई बात नही है लगातार लगते कटो से तो मैने यही नतीजा निकाला है कि बिजली जाने के तो सुख ही सुख है.सबसे पहले तो समाज की तरक्की मे हमारा योगदान है. भई, अर्थ आवर मे 100% हमारा योगदान है क्योकि बिजली रहती ही नही है.तो हुआ ना हमारा नाम कि फलां लोगो का सबसे ज्यादा योगदान है बिजली बचाओ मे.चलो अब सुनो, बिजली नही तो बिल का खर्चा भी ना के बराबर. शापिंग के रुपये आराम से निकल सकते हैं. बूढे लोगो के लिए तो फायदा ही फायदा है भई हाथ की कसरत हो जाती है. हाथ का पखां करने से जोडो के दर्द मे जो आराम मिलता है. घरो मे चोरी कम होती है भई, बिजली...

तुम चले क्यों गये? ...(कविता)...मुईन शमसी

तुम चले क्यों गये मुझको रस्ता दिखा के, मेरी मन्ज़िल बता के तुम चले क्यों गये तुमने जीने का अन्दाज़ मुझको दिया ज़िन्दगी का नया साज़ मुझको दिया मैं तो मायूस ही हो गया था, मगर इक भरोसा-ए-परवाज़ मुझको दिया. फिर कहो तो भला मेरी क्या थी ख़ता मेरे दिल में समा के, मुझे अपना बना के तुम चले क्यों गये साथ तुम थे तो इक हौसला था जवाँ जोश रग-रग में लेता था अंगड़ाइयाँ मन उमंगों से लबरेज़ था उन दिनों मिट चुका था मेरे ग़म का नामो-निशाँ. फिर ये कैसा सितम क्यों हुए बेरहम दर्द दिल में उठा...