एक, जैसा जुड़ा रह ही गया हो जिन्दगी से कभी दो या ज्यादा का ख्याल आया ही नही घरों में कुछ हमारे जैसे घरों में एक ही पलंग/गद्दा होता था रिजर्व पिताजी के लिये और हम सब चार-छः जितने भी होते बांट लेते जमीन अपने हिस्से की माँ के साथ कथरियों(गोदड़ी) पर टूथ ब्रश, वो भी एक ही होता था और बाकी सब या तो चूल्हे से माँग लेते थे राख़/कोयला या कभी दातून कर रहे होते थे एक से, ज्यादा कुछ हो भी सकता है हमारी कल्पनाओं में भी नही आया कभी अंगोछा, भी एक ही था, जो पिताजी के इस्तेमाल के बाद ही हमारे हिस्से में आता था क्र्मशः कभी अधगीला या कभी कुछ ज्यादा...