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सोमवार, 17 मई 2010

जो वो आ जाए एक बार ***** {कविता} ***** सन्तोष कुमार "प्यासा"

जो वो आ जाए एक बार ***** {कविता} ***** सन्तोष कुमार "प्यासा"

इस कविता को मैंने "महादेवी वर्मा" की कविता "जो तुम आ जाते एक बार" से, प्रेरित होकर लिखा है

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घनीभूत पीड़ा में ह्रदय डूबा


अश्रुओं संग बह रहा विषाद


जल बिन मीन तडपे जैसे


तडपाए, प्रेम उन्माद


फिर सजीव हो जाए आसार


जो वो आ जाएं एक बार

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उसे पाने की बढ़ी लालसा ऐसी


पल पल होती चाहत प्रखर


ह्रदय के कोरे पृष्ठों में


लिख दो आकर, प्रिताक्षर


मेरे मन के उपवन में छा जाए बहार


जो वो आ जाएं एक बार

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अलि कलि पर जब मंडराए


नभ पर विचरें जब विहंग


खो जाऊं आलिंगन में उसकी


मन में उठे ऐसी तरंग


बज उठें ह्रदय के तार तार


जो वो आ जाएं एक बार

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मेरे मस्तिष्क के हर कोने में छाई


उसके स्मृति की सुवासित सुरभि


अब न रुके आवेग अनुरक्ति का


समय, काल, अंतराल बताए


प्रीत न दाबे दबी


एक बने जीवन का आधार


जो वो आ जाएं एक बार