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बुधवार, 22 अप्रैल 2009

नया जीवन

टकटकी बाँधकर देखती है जैसे कुछ कहना हो और फुर्र हो जाती है तुरन्त फिर लौटती है चोंच में तिनके लिए अब तो कदमों के पास आकर बैठने लगी है आज उसके घोंसले में दिखे दो छोटे-छोटे अंडे कुर्सी पर बैठा रहता हूँ पता नहीं कहाँ से आकर कुर्सी के हत्थे पर बैठ जाती है शायद कुछ कहना चाहती है फिर फुर्र से उड़कर घोंसले में चली जाती है सुबह नींद खुलती है चूँ...चूँ ...चूँ..... की आवाज यानी दो नये जीवनों का आरंभ खिड़कियाँ खोलता हूँ उसकी...