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बुधवार, 25 अगस्त 2010

कभी-कभी सोचती हू.....(कविता)--सुमन 'मीत

जाने क्या है जाने क्या नहीबहुत है मगर फिर भी कुछ नहीतुम हो मै हू और ये धराफिर भी जी है भरा भराकभी जो सोचू तो ये पाऊमन है बावरा कैसे समझाऊकि न मैं हू न हो तुमबस कुछ है तन्हा सा गुम.......................!...