मुझे बढ़ना ही होगा :डगमग डगमग राहों पे ,मैं चला ही जा रहा हूँ ...कुछ ऊँची कुछ नीची राहों पेमैं बढ़ा ही जा रहा हूँ ...मैं चला था कल अकेला ,कोई आया कोई चला गया ,अंतर्द्वंद से कोई भरा रहा ,परमैं बढ़ता ही चला गया ...पीछे मुड के देखा जब ,अबकोई साथी ना दिख पायादेखा साथ में कौन है ....बस अपने को ही मैंने पाया ,आगे बढ़ने की सोची तोमंजिल एक नई चुनीसोचा चलना चाहिए अबसोचा बढ़ना चाहिए अबहाँ ,डगमग डगमग राहों पे ,मुझे बढ़ना ही होगा ...कुछ ऊँची कुछ नीची राहों पेमुझे बढ़ना ही होगा ...