नदी के पास नहीं हैं जल वृक्षों की टहनियों पर नहीं हैं पर्ण पगडण्डीयो पर धूल में हैं कण तालाब में नहीं खिले हैं कमल कुओं के स्रोत के प्यासे हैं अधर मेरे साथ हैं बबूल की परछाईयों के घायल तन हवा भी बहुत हैं गरम अमराई में भी झर गए हैं आम के फल आग लगी हैं और जल रहा हैं समूचा वन उठा हैं धुंवा आकाश तक इसलिए दूर खड़े ..पर्वतो के सीने में भी हैं कम्पन सूनसान इस दृश्य में अदृश्य हैं जन सड़को के पास भी -मृगतृष्णा का .. आकर्षक हैं भरम रेत पर -बने पद चिन्हों के पैरो...