जाने क्या है जाने क्या नही
बहुत है मगर फिर भी कुछ नही
तुम हो मै हू और ये धरा
फिर भी जी है भरा भरा
कभी जो सोचू तो ये पाऊ
मन है बावरा कैसे समझाऊ
कि न मैं हू न हो तुम
बस कुछ है तन्हा सा गुम.......................!
जाने क्या है जाने क्या नही
बहुत है मगर फिर भी कुछ नही
तुम हो मै हू और ये धरा
फिर भी जी है भरा भरा
कभी जो सोचू तो ये पाऊ
मन है बावरा कैसे समझाऊ
कि न मैं हू न हो तुम
बस कुछ है तन्हा सा गुम.......................!
3 comments:
तुम हो मै हू और ये धरा
फिर भी जी है भरा भरा..
वाह वाह बहुत सुन्दर!
सुन्दर अभिव्यक्ति लगी, बधाई ।
तन्हाई ऐसी ही होती है...
सुंदर रचना.
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