आओ पीछे लौट चलें......
बहुत कुछ पाने की प्रत्याशा में
हम घर से दूर हो गए !
जाने कितनी प्रतीक्षित आँखें
दीवारों से टिकी खड़ी हैं -
चलो उनकी मुरझाई आंखों की चमक लौटा दें !
सूने आँगन में धमाचौकड़ी मचा दें
- आओ पीछे लौट चलें...........
आगे बढ़ने की चाह में
हम रोबोट हो गए
दर्द समझना,स्पर्श देना भूल गए !
..............................
दर्द तुम्हे भी होता है,
दर्द हमें भी होता है,
दर्द उन्हें भी होता है
- बहुत लिया दर्द, अब पीछे लौट चलें..........
पहले की तरह,
रोटी मिल-बांटकर खाएँगे,
एक कमरे में गद्दे बिछा
इकठ्ठे सो जायेंगे ...
कुछ मोहक सपने तुम देखना,
कुछ हम देखेंगे -
आओ पीछे लौट चलें.....................
6 comments:
रश्मि जी की कविता अच्छी लगी बधाई उन्हें
purani yaadein taaza karti kavita..........badhayi rashmi ji.
रश्मि जी, आपको बधाई । कविता में आज कल की भागदौड़ और भौतिक जीवन पर अच्छा प्रयास किया है ।
रश्मि जी , मैंने आपकी कुछ रचनाएं पहले भी पढ़ी है , वाकई आप बहुत ही अच्छा लिखती है । बधाई आपको विजेता होने पर ।
बेहद सुन्दर व मार्मिक रचना लगी, रश्मि जी को बहुत-बहुत बधाई ।
रश्मि जी को बहुत-बहुत बधाई ।
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