लाशें जो बिछी हैं इंसानों की,
दिल दहल जाय ऐसे दृश्यों की
आखिर क्यों इंसानों में भेद है ऐसा ,
क्यों कौम -संप्रदाय की दुरी है ऐसा ,
ये नजारा तो देखो ,
देखकर जरा गौर करो,
ये लहु मिलने चले हैं ऐसे ,
जैसे चले हैं बरसों पुरानी
दूरियां मिटाने को l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
इंसान, इंसान को न पहचानता ,
ये क्यों है ऐसी खाई ,
मनुष्य से मनुष्यता के अंत का l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
काश हमें वह शक्ति होता,
कि अगर यह काम हमसे हो जाता,
तो मिटा देते ये फासला,
इन्सानों के दिलों दिमाग का l
इन लहु को बहुत दुःख...