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सोमवार, 21 जनवरी 2013

नारी शक्ति

अब नारीयो ने भी लीया साहस से काम ! अपनी सन्घर्षता के बल पर कीया विश्व मे नाम !! नारी कभी बनती है जननी कभी माता ! पुत्र बनता है कुपुत्र लेकिन माता नही है कुमाता !! सिर्फ नीर्बल नही क्षत्राणी है लक्ष्मी बाई और चादँबीबी है ! शिवा जी और अकबर जैसे की माता और बीबी है !! अब शिक्षा मे अव्वल और खेल मे आगे ! अब उनके दुश्मन भी रण छोण के भागे !! अब सीमा पर करती है रक्षा ! अब दहेज लेने वाले मागे भीक्षा !! अब समाज मे रखती है स्थान ! और सब करते है सम्मान !! अब अंतरिक्ष मे भरती है उङान ...

शनिवार, 12 जनवरी 2013

मां

 ममता और सौहार्द से बनी हुयी है मां ! कोई कहे कुमाता कोई माता लेकिन है मां !! जिसके स्पर्श भर से बेता प्रसन्न हो उठता है ! जिसके उठने से ही सुरज भी उठता है !! मां को देखकर बच्चा पुलकीत हो उठता है ! बच्चो को पाकर मां का रोम-रोम खिल उठता है !! यौवन मे भी मां को बेटा लगता प्यारा ! बेटा समझ न पाता मन का है कच्चा !! सारी दुनिया समझे उसे घोर कपुत ! मां को लगता बेटा सच्चा,वीर,सपुत !! मां शब्द मे है ममता का एह्सास ! बरसो है पुराना मां का इतिहास !...

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

प्रकृति

रात की निर्जनता का सृजन कोई बतला दे ! इस उदासता और कठोरता का मर्म कोई बतला दे !! सात समन्दर की लहरो का अन्त कोई बतला दे ! इस दुनिया के निर्मम जीवन के अन्त कोई बतला दे !! प्रेम और घृणा के खेल का अन्त कोई बतला दे ! रात और दिन के मिलन का अन्त कोई बतला दे !! इस दुनिया के निर्मम रीति रिवाजो का अन्त कोई बतला दे ! इन लोगो के लोभ का अन्त कोई बतला दे !! मानवता और निर्दयता के संघर्ष का अन्त कोई बतला दे ! मेरे इस कटु जिवन का अन्त कोई बतला दे !! सुरज चांद सितारो का अन्त कोई बतला दे ! सुरज की चुभती किरणो का अन्त कोई बतला दे !! मै और तु के संघर्ष का अन्त...

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

नारी (एक बेबसी)

जब नारी ने जन्म लिया था ! अभिशाप ने उसको घेरा था !! अभी ना थी वो समझदार ! लोगो ने समझा मनुषहार !! उसकी मा थी लाचार ! लेकीन सब थे कटु वाचाल !! वह कली सी बढ्ने लगी ! सबको बोझ सी लगने लगी !! वह सबको समझ रही भगवान ! लेकीन सब थे हैवान !! वह बढना चाहती थी उन्नती के शिखर पर ! लेकीन सबने उसे गिराया जमी पर !! सबने कीया उसका ब्याह ! वह हो गयी काली स्याह !! ससुर ने मागा दहेग हजार ! न दे सके बेचकर घर-बार !! सास ने कीया अत्याचार ! वह मर गयी बिना खाये मार !! पती ने ना दीया उसे प्यार ! पर शिकायत बार-बार !! किसी ने ना दिखायी समझदारी ! यही...

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

शकुन्तला

दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान ! वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !! दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा ! दुश्यन्त तुम्हे भुल जायेगा शकुन्तला !! शकुन्तला इस बात से थी अज्ञात ! की उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !! अनुसुइया और अनुप्रिया ने कराया उसे ज्ञात ! यह सुनते ही उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !! वह दौङी और दुर्वाशा को कीया चरणस्पर्श ! वह अपनी जिन्दगी से कर रही थी संघर्ष !! फिर शकुन्तला ने की छमा याचना ! दुर्वाशा ने भी की उसके लिये मंगल कामना !! मेरे कण्ठो से जो तुम्हारी जिन्दगी मे आयी बाढ ! उसे दुर करेगी मीन और मुद्रीका की धार !! जब शकुन्तला...

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

कभी सोचा ना था

कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा ! इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !! लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही ! मै सहता रह गया लेकिन कभी टुटा नही !! प्यार देता रह गया हाथ आया कुछ नही! मौत के बाद साथ आया कुछ नही !! यहा हर तरफ है दर्द, नफरत प्यार पाया कुछ नही ! लोग की इस सोच का अंदाज आया कुछ नही !! मै प्यार करता हू सभी से अपना-पराया कुछ नही ! मै बनू सच्चा मनुष्य है इतर सपना कुछ नही !! लोगो के मै काम आंऊ और इच्छा कुछ नही ! प्यार मै दू सभी को नफरत मै करू नही ...

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

मेरा परिचय

पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से ! अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !! पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग हूं ! मगर मै सोचता कि दुनिया मुझसे अलग है !!पता नही क्यूं अब ताने सुन कष्ट नही होता !पता नही क्यूं अब तानो का असर नही होता !!पता नही क्यूं लोगो को है मुझसे है शिकायत !पता नही क्यूं बिना बात के दे रहे है हिदायत !!पता नही क्यूं लोगो की सोच है इतनी निर्मम !पतानही क्यूं इस दुनिया की डगर है इतनी दुर्गम ...

बुधवार, 2 जनवरी 2013

हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये,  रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले ! हम आगे तो है साफ लेकिन, पिछे की बुराईयों को कैसे मले! लोग तो अब न जाने,  क्या-क्या कहने लगे !                                                                 आखो...