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मंगलवार, 24 जनवरी 2012

सम्वेदना ये कैसी?---(श्यामल सुमन)

सब जानते प्रभु तो है प्रार्थना ये कैसी?किस्मत की बात सच तो नित साधना ये कैसी?जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र जैसायदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?हम हैं तभी तो तुम हो रौनक तुम्हारे दर पेचढ़ते हैं क्यों चढ़ावा नित कामना ये कैसी?होती जहाँ पे पूजा हैं मैकदे भी रौशनदोनों में इक सही तो अवमानना ये कैसी?मरते हैं भूखे कितने कोई खा के मर रहा हैसब कुछ तुम्हारे वश में सम्वेदना ये कैसी?बाजार और प्रभु का दरबार एक जैसाबस खेल मुनाफे का दुर्भावना ये कैसी?जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजासंवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?...

सोमवार, 23 जनवरी 2012

मैं सपने देखता हूँ......ब्रजेश सिंह

मैं सपने देखता हूँहाँ मैं भी सपने देखता हूँकभी जागते हुए कभी सोते हुएकभी पर्वतों से ऊंचे सपनेकभी गुलाब से हसीं सपनेकभी खुद को समझने के सपनेकभी खुद को जीतने के सपनेकभी खुद को हारने के सपनेमैं हर तरह के सपने देखता हूँमैं हर रंग हर आकार हर हर स्वाद के सपने देखता हूँकभी नीले कभी गुलाबी कभीकभी तीखे कभी मीठेकभी छोटे कभी बड़ेमैं हर तरह के सपने देखता हूँमेरे सपने बहूत जल्दी टूट टूटे हैंऔर बिखर जाते हैंमेरे सपने कांच की तरह होते हैंएकदम साफ़ और पारदर्शीदिख जाते है सबको मेरे सपनेमैं छिपाकर नहीं रख पाता इनकोइसलिए लोग खेलने लगते हैं इनसेऔर टूट जाते हैं मेरे...

शनिवार, 21 जनवरी 2012

खुदा मेरा दोस्त था... कैस जौनपुरी

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शनिवार, 7 जनवरी 2012

आधे घंटे में प्यार..!

फोन पर मैसेज आया, “तुझे कभी आठ घंटों में प्यार हुआ है?” प्रिया समझ गई फैसल को फिर किसी से प्यार हो गया है। उसने जवाब भेजा, “नहीं...पर जानती हूं तुझे हुआ है।” प्रिया का मन फिर काम में नहीं लगा। जैसे-तैसे खानापूर्ति करके वो ऑफिस से जल्दी निकल तो आई लेकिन इतनी जल्दी घर जाने का न ही उसका मन था और न ही आदत। काफी देर बस स्टॉप पर खड़े रहने के बाद प्रिया को एक खाली बस आते हुए दिखाई दी। हालांकि वो बस उसके घर की तरफ नहीं जा रही थी लेकिन प्रिया को लगा जैसे ये बस सिर्फ उसी के लिए आई है। प्रिया बस में चढ़ गई और खाली सीटों में से अपनी पसंदीदा बैक सीट पर खिड़की...

रविवार, 1 जनवरी 2012

नववर्ष की शुभकामनायें

नया वर्ष आ गया; वर्ष 2012 आ गया; पुराना वर्ष 2011 चला गया। इस समय समाचारों में लोगों का उत्साह दिखाया जा रहा है। घर के कमरे में बैठे-बैठे हमें यहां उरई में खुशी में फोड़े जा रहे पटाखों का शोर सुनाई दे रहा है। लोगों की खुशी को कम नहीं करना चाहते, हमारे कम करने से होगी भी नहीं। कई सवाल बहुत पहले से हमारे मन में नये वर्ष के आने पर, लोगों के अति-उत्साह को देखकर उठते थे कि इतनी खुशी, उल्लास किसलिए? पटाखों का फोड़ना किसलिए? रात-रात भर पार्टियों का आयोजन...