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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

न हमसफ़र कोई -- अजय आनंद

न हमसफ़र कोई, न हमराज़ मिला ,मंजिल नहीं ...रास्ता भी है खोया खोया,रात को तारे, चाँद से बातें भी करते होंगे तो क्या....किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... हरवक्त ख़ुशी की कीमत चुकाई हैं मैंने ...खुदा से कभी हिसाब न लिया....क्या घाटा क्या नफा हुआ...किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... हर मौज साहिल को छूकर चली गयी,पर सब्र की कोई हद तो होगी,मेरा नाम रेत से क्या हुआ,किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... इन तारों को दुआ दे मेरे मालिक,चाहे बुझ बुझ का जले सारी रात चले,मेरा चाँद किस बादल में छुपा,किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... तक़दीर को मुनासिब जगह न मिली,कभी रास्तों पर कभी महफील...

रविवार, 20 नवंबर 2011

दिल अब दिल नहीं (ग़ज़ल) सन्तोष कुमार "प्यासा"

मेरा दिल अब दिल नहीं, एक वीरान सी बस्ती है रूठ गई खुशियाँ, बेबसी मुझपर हंसती है क्या था मेरा क्या पता, क्या है मेरा क्या खबर खुद से हूँ खफा अब मै, लुट गई मेरी हस्ती है ये जिंदगी है बोझ मुझपर या जिंदगी पर बोझ मैं न चैन की सांसे मयस्सर मुझे, न मौत ही सस्ती है तुफानो में गर मैं घिरता तो फक्र करता हार पर मझधार में नहीं यारो, किनारे पर डूबी मेरी कस्ती...

बुधवार, 9 नवंबर 2011

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' के लिए चयनित

प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. तभी तो पाँच वर्षीया नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को वर्ष 2011 हेतु राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (National Child Award) के लिए चयनित किया गया है. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री अक्षिता को यह पुरस्कार 'कला और ब्लागिंग' (Excellence in the Field of Art and Blogging) के क्षेत्र में शानदार...

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

माँ करती हूँ तुझे मै नमन---(कविता)----ज्योति चौहान

माँ करती हूँ, तुझे मै नमनतेरी परविरश को करती हूँ नमनप्यासे को मिलता जैसे पानी,माँ तू है वो जिंदगानी ,नो महीनो तक सींचा तूनेलाख परेशानी सही तूने ,पर कभी ना तू हारीधूप सही तूने और दी मुझे छायाभगवान का रूप तू है दूजातेरे प्यार का मोल नही है कोईतू मेरा हर दर्द महसूस करतीमीठी-मीठी लोरी गाती, सुबह बिस्तर से उठातीटिफन बनाती, यूनिफोर्म तैयार करतीरोज मुझे स्कूल भेजतीमुझे क्या अच्छा लगता, तुझे था पतातेरी हाथ की रोटी के बराबर, नही कुछ स्वादिष्ट दूजालाड...

रविवार, 6 नवंबर 2011

हमें क्या हो गया ?----डा.राजेंद्र तेला

हमें क्या हो गया ? ज़मीर सो गया सिर्फ पैसा दिख रहा परिवार सिमट कर यादो में रह गया परिवार के नाम पर मैं और मेरा रह गया पड़ोसी से मिलना समारोह में होता भाई,बहन में भी प्रोटोकॉल होता अपना खून ही अपना लगता पिता का खून भी पराया हो गया शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ कमाना रह गया "हम" से बड़ा "मैं" हो गया सब निरंतर देख रहे पीड़ा को झेल रहे फिर भी होने दे रहे खुद को लाचार बता ...