क्यूँ विकल हुआ हिय मेरा क्यूँ लगते सब दिन फीके हर छिन कैसी टीस उठे अब साथ जागूं रजनी केजब से वह किसलय सी कोमल काया मेरे मन में छाई संयोग कहूँ या प्रारब्ध इसे मैंवो पावन पेम मिलन था इक पल का मिटीजन्मो की तृष्णा सारीइक स्वप्न सजा सजल साइस सुने से जीवन में मेरे मचली प्रेम तरुणाई जब से वह किसलय सी कोमल काया मेरे मन में छाई न परिचित मै नाम से उसके न देश ही उसका ज्ञात हैपर मै मिलता हर दिन उससेवोतो मनोरम गुलाबी प्रातः हैनिखरा तन-मन मेरा बसंत बहार जैसेये कैसी चली पुरवाई जब से वह किसलय सी कोमल काया मेरे मन में छाई...