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शनिवार, 20 अगस्त 2011

समझ लेने दो.............राजीव कुमार

अब तो रह गया है मेरी यादों में ही बसकरमिटटी की दीवारों वाला मेरा खपरैल घर जिसके आँगन में सुबह-सबेरे धूप उतर आती थी, आहिस्ता-आहिस्ता, घर के कोने-कोने में पालतू बिल्ली की तरह दादी मां के पीछे-पीछे घूम आती थी, और शाम होते ही दुबक जाती थी घर के पिछवाड़े चुपके से. झांकने लगते थे आसमान से जुगनुओं की तरह टिमटिमाते तारे, करते थे आँख-मिचौली जलती लालटेनों से. आँगन में पड़ी ढीली सी खाट पर सोया करता था मैं दादी के साथ. पर,आज वहां खड़ा है एक आलीशान मकान, बच्चों की मर्जी का बनकर निशान. उसके भीतर है बाईक,कार, सुख-सुविधा का अम्बार है. नहीं है तो बस उस मिटटी...

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

गज़ल ..........................सुजन जी

चेहरे से साफ झलकता है इरादा क्या है सच छुपाने के लिये देखिये कहता क्या है जैसे इन्सान में अहसास नहीं बाकी आज किस घडी कौन बदल जाये भरोसा क्या है फूलों से खुशबू महकती नहीं पहले जैसी सोचिये अपनी मशीनों से निकलता क्या है प्यार की चाह की ओर चैन गंवाया हमने दिल लगाने का बताईये नतीजा क्या है सामने पाके मुझे आप ठहर जाते हो सच बताओ कि मेरा आपसे रिश्ता क्या...

रविवार, 14 अगस्त 2011

उनको तो सिर्फ कफ़न होगा {कविता} अंकुर मिश्र :युगल"

सच चाहे जितना तीखा हो धंस जाये तीर सा सीने में !सुनने वाले तिलमिला उठे लथपथ हो जाये पसीने में !!लेकिन दुर्घटना के भय से कब तक चुपचाप रहेंगे हम !नस-नस में लावा उबल रहा कितना संताप सहेगे हम !!जिन दुष्टों ने भारत माँ की है काट भुजा दोनों डाली!पूंजे जो लाबर,बाबर को श्री राम चंद्र को दे गली !!उन लोगो को भारत भू पर होगा तिलभर होगा स्थान नहीं !वे छोड़ जाएँ इस धरती को उनका ये हिंदुस्तान नहीं !!हमको न मोहम्मद से नफ़रत, ईसा से हमको बैर नहीं !दस के दस गुरु अपने उनमे से कोई गैर नहीं !!मंदिर में गूंजे वेदमंत्र गुरु-द्वारों में अरदास चले !गिरजाघर में घंटे बजे...

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

स्नेह सुरभि {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

अलमस्त हो जाय प्रभा की मधुर बेलाछेड़ दो वो प्रीत-गीत फिर से विहागमिटें  निज मन के मनभेद सभीदेश-काल, अन्तराल का भेद मिटाने को हे सरित सुनाओ राग अज्ञान तिमिर सब हिय से मिट जायबस संचारित हो तो स्नेह सौहार्द और मोहमधुप की मधुर गुन-गुन सुनकरकटे जन्म-जन्मातर के  विछोह जगे अन्तरम  में इक ललक ऐसीविजय-मार्ग रोके न भय, कभी बन कारासुकर्म कर रचे नवयुग ऐसास्नेह सुरभि से सुवासित हो जग-सारा  ...