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सोमवार, 31 जनवरी 2011

प्यार का पहला एहसास (तुम्हारे जाने के बाद)……......(सत्यम शिवम)

टिमटिमाते तारों से भरी वो तमाम राते कैसे भूल सकता हूँ?वो एहसास भी बड़ा अजीब था।प्यार का पहला एहसास।बेखबर दुनिया से होता था मै।सुध ना थी किसी की बस इंतजार होता था तुम्हारा और तुम्हारे फोन का।बाते होती तो बाते होती रहती और ना होती तुम तो तुम्हारी यादे तुम्हारे साथ होने का एहसास करा जाती। आज की ये शीतलहरी की ठंडक भरी सुबह।कुहासे ने आसमान को ढ़ँक दिया था।कुछ दिख नहीं रहा था।ये मंजर मुझे बिल्कुल तुम्हारे प्यार सा जान पड़ा,जो आज कल न जाने किस कुहासे से...

शनिवार, 29 जनवरी 2011

तुम हो अब भी……...(सत्यम शिवम)

मौन मेरा स्नेह अब भी, जो दिया,तुमसे लिया मै। प्यार मेरा चुप है अब भी, क्यों किया,जो है किया मै। भूल से हुई इक खता, मैने रुलाया खुब तुमको, खुद भी रोया, कह ना पाया, नैना मेरे ढ़ुँढ़े उनको। तुम कही हो,मै कही हूँ, तुम ना मेरी,मै नहीं हूँ। पर है वैसा ही सुहाना, प्यार का मौसम तो अब भी। साथ तेरा छोड़ दामन, प्यार का बंधन छुड़ाया, रुठ चुकी है खुशियाँ अपनी, प्यार हमारा लुट न पाया। ख्वाबों में फिर हर रात ही, न जाने क्यों आती हो तुम तो अब भी। राहे...

बुधवार, 26 जनवरी 2011

जरा याद इन्हे भी कर लें-----------मिथिलेश

गणतंत्र दिवस के अवसर पर इनके परवानों को तो याद किया ही जा रहा है, लेकिन उन गुमनाम हीरोज़ को भी याद करने की जरूरत है, जिन्होंने अपने तरीके से आजादी की मशाल जलाई। ऐसे अवसर पर बङे लोगो को याद तो करते हैं, लेकिन इनके बिच कुछ नाम ऐसे भी है जिनको बहुत कम ही लोग जानते है। वहीं देखा जाये तो हमारे आजादी मे इनका योगदान कम नही है। इनका नाम आज भी गुमनाम है, लेकीन इन्होने जो किया वह काबिले तारीफ है। ये वे लोग जिन्होने आजादी के लिए बिगूल फुकंने का काम किया और ये लोग अपने काम मे सफल भी हुये। तो आईये इस गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पे इनको याद करें और श्रद्धाजंली...

सोमवार, 24 जनवरी 2011

माँ भारती के लाल.............(सत्यम शिवम)

अगर दे दूँ मै तुम्हे खड्ग और भाल, क्या जीत जाओगे तुम माँ भारती के लाल। सिस कटा कर भी तुम, क्या बचा पाओगे अपने शान को, बेईमानी के अंधकार में, क्या देख पाओगे अपने मान को। अपने अमिट उत्कर्ष को क्या वापस ला पाओगे तुम, जहाँ भ्रष्टाचार है वहाँ शांति करवा पाओगे तुम। रग रग में बहते रक्त की, क्या नाश बचा पाओगे तुम। अगर दे दूँ मै तुम्हे खड्ग और भाल, क्या जीत जाओगे तुम माँ भारती के लाल। आशा नहीं विश्वास है, फिर भी मन में क्यों थोड़ा काश है। कि अगर विजय...

रविवार, 23 जनवरी 2011

Er. Rajani Kant: Quotation by Er. Rajani Kant

Er. Rajani Kant: Quotation by Er. Rajani Kantसत्य वचन सुन्दर जीवन सूत्र। धन्यव...

क्रांतिवीर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस -------मिथिलेश

यूँ तो नेताजी कब इस दुनिया को छोड़ गये यह आज भी रहस्य बना हुआ है लेकिन ऐसा मना जाता है कि18 अगस्त या 16 सितम्बर 1945 को आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की पुण्यतिथि है नेताजी 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में पैदा हुए । उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती देवी था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। उन्होंने कटक की महापालिका में लंबे समय तक काम किया था और बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें...

शनिवार, 22 जनवरी 2011

जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित...............(सत्यम शिवम)

करना कैसा बहाना प्रिय, जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित। मिलन निशा का इक गीत अनोखा, जो कंठो से फूट पड़े, खुद पर ना हो जब प्राण का बस प्रिय, तो प्रेम दिवाने क्या करे? संगीत जिसका मौन हो, जो नैनों से ही हो स्वरित। करना कैसा बहाना प्रिय, जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित। वीणा के तार पर फेर अँगुली, गूँजेगा जो इक मधुर धुन, ह्रदय मेरे तु अधीर ना हो, स्व स्पंदन के गीत को सुन। व्याकुल ना हो इस रात प्रिय, करना अब तु मन को कुंठित। करना कैसा बहाना प्रिय, जो ह्रदय स्पंदन...

मेरी मौत खुशी का वायस होगी ----[मिथिलेश]

जिन्दगी जिन्दादिली को जान ए रोशन यहॉंवरना कितने मरते हैं और पैदा होते जाते हैं।क्रान्तिकारी रोशन सिंह का जन्म शाहजहॉंपुर जिले के नबादा ग्राम में हुआ था । यह गांव खुदागंज कस्बे से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर है। इनके पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह था। इस परिवार पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था। उन दिनों आर्य समाज द्वारा चलाए जा रहे देशहित के कार्यों से ठाकुर साहब का परिवार अछूता ना रहा। श्री जंगी सिंह के चार पुत्र ठाकुर रोशन सिंह, जाखन सिंह, सुखराम सिंह,...

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

लेकिन तुम नहीं आये---[मिथिलेश]

आज फिर देर रात हो गयीलेकिन तुम नहीं आयेकल ही तो आपने कहा थाआज जल्दी आ जाऊंगाजानती हूं मैंझूठा था वह आश्वासन .......पता नहीं क्योंफिर भी एक आस दिखती हैंहर बार हीतुम्हारे झूठे आश्वासन में........हाँ रोज की तरह आज भीमैं खूद को भूलने की कोशिश कर रही हूँ यादों के सहारेरोज की तरह सुबह हो जाएऔर तुमको बाय कहते ही देख लूं..........आज भी वहीं दिवार सामने है मेरेजिसमे तस्वीर तुम्हारी दिखती हैजो अब धूंधली पड़ रही हैजो आपके वफा काअंजाम है या शायदबढ़ती उम्र का...

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

युवा बनाम भारतीय संस्कृति-------------[शिव शंकर]

एक समय था जब हमारे युवाओं के आदर्श, सिद्धांत, विचार, चिंतन और व्यवहार सब कुछ भारतीय संस्कृति के रंग में रंगे हुए होते थे। वे स्वयं ही अपने संस्कृति के संरक्षक थे, परंतु आज उपभोक्तावादी पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध से भ्रमित युवा वर्ग को भारतीय संस्कृति के अनुगमन में पिछडेपन का एहसास होने लगा है। आज अंगरेजी भाषा और अंगरेजी संस्कृति के रंग में रंगने को ही आधुनिकता का पर्याय समझा जाने लगा है। जिस युवा पिढी के उपर देश के भविष्य की जिम्मेदारी है , जिसकी उर्जा से रचनात्मक कार्य सृजन होना चाहिए,उसकी पसंद में नकारात्मक दृष्टिकोण हावी हो चुका है। संगीत...

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

सपना -------------[श्यामल सुमन]

बचपन से ही सपन दिखाया, उन सपनों को रोज सजाया।पूरे जब न होते सपने, बार-बार मिलकर समझाया।सपनों के बदले अब दिन में, तारे देख रहा हूँ।सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।पढ़-लिखकर जब उम्र हुई तो, अवसर हाथ नहीं आया।अपनों से दुत्कार मिली और, उनका साथ नहीं पाया।सपन दिखाया जो बचपन में, आँखें दिखा रहा है।प्रतिभा को प्रभुता के आगे, झुकना सिखा रहा है।अवसर छिन जाने पर चेहरा, अपना देख रहा हूँ।सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।ग्रह-गोचर का चक्कर है यह, पंडितजी ने बतलाया।दान-पुण्य और यज्ञ-हवन का, मर्म सभी को समझाया।शांत नहीं होना था ग्रह को, हैं...

सोमवार, 17 जनवरी 2011

क्या यही है प्यार............(सत्यम शिवम)

मधु अधरों का मोहक रसपान, नीर नैन बेजान,निष्प्राण, ह्रदय प्राण का उद्वेलीत शव, मन आँगन में स्नेह प्रेम का कलरव। इस जहान में रहकर भी, घुम आता है उस जहाँ के पार, क्या यही है प्यार? मुक राहों में स्वयं से अंजान, बेजान काया को भी अभिमान। अनछुए,अनोखे बातों से दबा लव, अरमानों को लगे पँख नव। सौ कष्टों से पूरित, उर की व्यथा का इकलौता उद्धार, क्या यही है प्यार? निशदिन बस प्यार का गुणगान, साथी की बातों का बखान। नई दुनिया से इक नया लगाव, नैन और अधरों से...

शनिवार, 15 जनवरी 2011

प्रभा तुम आओ {गीत} सन्तोष कुमार "प्यासा"

आलोकित हों छिटके ओसकण तरुवर के गुंजित हो चहुदिश, सुन राग सरवर के नव-प्राण रश्मि लेकर हे प्रभा! तुम आओ संचारित हो नव उर्जा पुलकित हों जन-तन-मन-जीवन दिक् दर्शाओ रविकर मिटें निराशा के तिमिर-सघन मनोरम उपवन सा, धरा में स्नेह सुरभि महकाओ नव-प्राण रश्मि लेकर हे प्रभा! तुम आओ ज्यों विस्तृत होतीं, द्रढ़ साख संग कोमल बेलें त्यों उर में सौहार्द भर हम दीनो को निज संग लेले सजीव हो परसेवा की उत्कंठा जीवन में ज्ञान सुधा बरसाओ नव-प्राण रश्मि लेकर हे प्रभा! तुम...

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

रामावतार.............(सत्यम शिवम)

ये है मेरी पहली कविता जो मैने पाँचवी क्लास में लिखा था....सोचा आज आपलोगों के समक्ष रखूँ........ जब राम ने सृष्टि पर जन्म लिया, अयोध्या नगरी में फूल खिला। चारों ओर खुशी के डंके बजे, मयूर मस्त हो नाच उठे। त्रिदेव दर्शनार्थ लालायित हुएँ, मोहक छवि की दर्शन के लिएँ। ज्यों ज्यों कमल का फूल खिला, त्यों त्यों राम भी खिलने लगे। कौशल्या थी सच की पुजारी, भगवान हुए तब धनुर्धारी। बनवास ही उनका भावी था, रावण को मारना न्याय ही था। रावण तो गया स्वर्ग सिधार...

जीवन राग ----------[सुमन ‘मीत’ ]

जीवन राग की तान मस्तानीसमझे न ये मन अभिमानी बंधता नित नव बन्धन मेंकरता क्रंदन फिर मन ही मन में गिरता संभलता चोट खाताबावरा मन चलता ही जाता जिस्म से ये रूह के तारकर देते जब मन को लाचार होता तब इच्छाओं का अर्पणमन पर ज्यूँ यथार्थ का पदार्पण छंट जाता स्वप्निल कोहरादिखता जीवन का स्वरूप दोहरा स्मरण है आती वो तान मस्तानीन समझा था जिसे ये मन अभिमानी !!...

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

इक जाम फुर्सत में .... {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

. तू परछाई है मेरी, तो कभी मुझे भी दिखाई दिया करऐ जिंदगी ! कभी तो इक जाम फुर्सत में मेरे संग पिया कर मै भी इन्सान हूँ, मेरे भी दिल में बसता है खुदामेरी नहीं तो न सही, कम से कम उसकी तो क़द्र किया कर इनायत समझ कर तुझको अबतलक जीता रहा हूँ मैमिटा कर क़ज़ा के फासले, मै तुझमे जियूं तू मुझमे जिया कर मेरा क्या है ? मै तो दीवाना हूँ इश्क-ऐ-वतन में फनाह हो जाऊंगावतन पे मिटने वालों की न जोर आजमाइश लिया कर............

बुधवार, 12 जनवरी 2011

स्वामी विवेकानंद की कविता{”शान्ति”-} सन्तोष कुमार “प्यासा”

”शान्ति”- स्वामी विवेकानंदस्वामी विवेकानन्द द्वारा लिखित अंग्रेजी की मूल कवितान्यूयार्क में अंग्रेजी में लिखित , १८९९ ई .|**************************************************************देखो जो बलात्  आती है , वह शक्ति , शक्ति नहीं है !वह प्रकाश , प्रकाश नहीं है , जो अँधेरे के भीतर है |और न वह छाया , छाया ही है ,जो चकाचौंध करने वाले प्रकाश के साथ है |आनंद  वह है , जो कभी व्यक्त हुआ ही नहीं ,और अनभोगा , गहन दुःख है अमर जीवन ,जो जिया नहीं गया और अनंत मृत्यु ,जिस पर किसी को शोक नहीं हुआ |न दुःख है , न सुख ,सत्य वह है , जो इन्हें मिलाता है...

युगद्रष्टा "स्वामी विवेकानंद"---------- मिथिलेश

विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती अर्थात १२ जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवादिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई को अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। इसके महत्त्व का विचार करते हुए भारतसरकार ने घोषणा की कि सन १९८५ से 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती का दिन राष्ट्रीय युवा दिन के रूप में देशभर में सर्वत्र मनाया जाए।इस सन्दर्भ में भारत सरकार का विचार था कि -ऐसा अनुभव हुआ कि स्वामी जी का दर्शन एवं स्वामी जी के जीवन...

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

कोहरा--------(मीना मौर्या)

कोहरे से कोहराम मचालगा सड़क पर जामधुंध का चादर ओढ‌़ेआयी आज की प्रभात ।।भास्कर को ग्रहण लगाफैला अंधेरे का जालधरती भिगी ओस सेहुआ शीत लहर का बरसात।।मंद हवा व गिरता पाराजाड़ा गजब मौसम का मारसिकुड़े-सिकुड़े दिन बीताठिठुर-ठिठुर कर रात।।स्वेटर साल से ठंडी न जायहर ओर जला अब आगकापते-कापते मुसाफिर जनचुश्की लेकर पिये चाय...

सोमवार, 10 जनवरी 2011

कवि का प्यार...............(सत्यम शिवम)

कवि को हो गया लेखनी से प्यार, इसी उधेरबुन में वो है लाचार, अपनी पीडा लेखनी को क्या बताऊँ, साथी को अपना साथ कैसे समझाऊँ। मेरी पहचान है तेरे बगैर, उस दीप का जो बात के बिन क्या अँधेरा दूर करे, मेरी संगीत है तेरे बगैर, उस गीत सा जो ताल के बिन क्या मधुर रस शोर करे। तु राग है,और मै तेरा हमराज हूँ, कैसे कहुँ मेरी कविता का बस तु ही साज है। शब्दों को गढ़ कैसे मुझे लुभाती है, कविता से कवि को कैसे कैसे सपने दिखाती है। छन छन थिरक नर्तकी सी, वो नृत्यांगना...

कविवर जितेन्द्र जौहर को मिला ‘सृजन-सम्मान-२०१०’

रॉबर्ट्‍सगंज (सोनभद्र, उप्र, भारत) २३ दिसम्बर,२०१० स्थानीय विवेकानन्द प्रेक्षालय में अंग्रेज़ी दैनिक ‘सोनभद्र कॉलिंग’ के विमोचन समारोह एवं हिन्दी दैनिक ‘बहुजन परिवार’ के स्थापना-दिवस के संयुक्त मौक़े पर ‘प्रेरणा’ (त्रैमा) के संपादकीय सलाहकार एवं सुपरिचित कवि श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ को साहित्यिक योगदान के लिए वर्ष-२०१० के द्वितीय ‘सृजन-सम्मान’ से अलंकृत किया गया। श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ को यह सम्मान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सोनभद्र के उप ज़िलाधिकारी...

रविवार, 9 जनवरी 2011

साक्षात्कार---------उभरते कवि अंकित जैन से

मीत, क्यो गाता कल का गीतबना तू कोई अपनी रीत .....ये पक्तियाँ हम नही बल्कि अंकित जैन जो कि एनआईटी, कुरुक्षेत्र मे बी टेकके छात्र हैं. उन्होने खुद लिखी हैं और ना जाने ऐसी कितनी ढेरो कविताएलिखी है.उनसे बात करने के बाद और उनकी कविताए सुनने के बाद हमे महसूस हुआकि नौजवान बच्चो के लिए अंकित बहुत अच्छा उदाहरण बन सकते हैं क्योकि आजके समय मे, इन बच्चो खास तौर पर इंजिनियरिंग या दूसरे क्षेत्रो मे पढाईका इतना प्रेशर है कि वो सिर्फ पढाई के इलावा कुछ और करने का सोच ही नहीसकते जबकि पढाई के साथ साथ दूसरे क्षेत्रो की कलाओ मे भी हिस्सा लेनाउतना ही जरुरी होता है....

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

" बातों में गुम ".........ललित कर्मा

दो लड़कियों को देखाकचरा बीन रही थी,चार-पांच साल उम्र रही थी,दोनों की,वह जा रहा था,सायकल पर हो सवार,रोज की तरह,जब जाता है वह ,देखता है मकान-दुकान,गाड़ी-घोड़े, आते-जाते लोग,सहसा दो ये बालिकाएँ भी दिख पड़ी,उसने मुझसे पूछा,तुम्हे कुछ होता है?,ऐसा देखता है जब,मैंने कहा - मुझे क्या होगा?तुझ जैसा मैं भी हूँ,दो बातें तू कह लेगा,और उनको चार बना कर,मैं कह दूंगा,इन्ही बातों में बच्चियाँ गुम हो जाएगी,वे बच्चियाँ जो कचरा बीन रही थी|--------------------------------------------------------------...

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

शरद ॠतु कि अगुवाई में.............(सत्यम शिवम)

शरद ॠतु कि अगुवाई में, पेड़ों के पते सिहर गए, ठंडक ने ठिठुराया तन को, अकुलाहट के सारे पल गए। इक सुहानी सुबह, हौले हौले बहती हवाएँ, प्रकृति की मधुरता को देख, पंक्षियों ने सुरीले गीत गाए। कँपकपाने लगी ठँडक से तन, नदियों में जल भी जम गए। शरद ॠतु कि अगुवाई में,पेड़ों के पते सिहर गए, मौसम ये बड़ा निराला है,अब आसमान भी काला है,झम झम बारिश होने वाली,शरद ॠतु का ये पाला है। सब घर में है छिप गए,जैसे वक्त सारे थम गए। शरद ॠतु कि अगुवाई में,पेड़ों के पते...

सोमवार, 3 जनवरी 2011

नारी उत्थान में निहित भारत विकास-------------मिथिलेश

नारी के महान बलिदान योगदान के कारण ही भारत प्राचीन में समपन्न और विकसित था . प्राचीन काल में नर-नारी के मध्य कोई भेद नहीं था और नारियां पुरुषों के समकक्ष चला करती थी फिर चाहे वह पारिवारिक क्षेत्र हो या धर्म , ज्ञान विज्ञानं या कोई अन्य , सर्वांगीण विकास और उत्थान में नारी का योगदान बराबर था . नारी न सिर्फ सर्वांगीण विकास में सहायक थी पुरुष को दिशा और बल भी प्रदान करती थी . भारत के विकास में नारी योगदान अविस्मरणीय है. शायद इनके योगदान बिना भारत के विकास का आधार ही न खड़ा हो पता . इतिहास में भी नारी का लम्बा हस्तकक्षेप रहा . प्राचीन भारत को जो सम्मान...