हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा आकांक्षा यादव को ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चित ब्लागर आकांक्षा यादव को ‘’डा0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.गौरतलब...

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

‘‘बातें हिन्दी व्याकरण की’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

कुछ बातें हिन्दी व्याकरण कीअक्षर “अक्षर” के नाम से ही जान पड़ता है कि जिसका क्षर (विभाजन) न हो सके उन्हे “अक्षर” कहा जाता है!वर्णअक्षर किसी न किसी स्थान से बोले जाते हैं। जिन स्थानों से उनका उच्चारण होता है उनको वरण कहते हैं। इसीलिए इन्हें वर्ण भी कहा जाता है।स्वरजो स्वयंभू बोले जाते हैं उनको स्वर कहा जाता है। हिन्दी व्याकरण में इनकी संख्या २३ मानी गई है।हृस्व     दीर्घ     प्लुतअ        आ         अ ३इ        ...

रविवार, 4 दिसंबर 2011

हाइकु-दिवस : कृष्ण कुमार यादव के हाइकु

हाइकु हिंदी-साहित्य में तेजी से अपने पंख फ़ैलाने लगा है. कम शब्दों (5-7-5)में मारक बात. भारत में प्रो० सत्यभूषण वर्मा का नाम हाइकु के अग्रज के रूप में लिया जाता है. यही कारण है कि उनका जन्मदिन हाइकु-दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज 4 दिसम्बर को उनका जन्म-दिवस है, अत: आज ही हाइकु दिवस भी है। इस बार हाइकुकार इसे पूरे सप्ताह तक (4 दिसम्बर - 11 दिसम्बर 2011 तक) मना रहे हैं. इस अवसर पर मेरे कुछ हाइकु का लुत्फ़ उठाएं- टूटते रिश्ते सूखती संवेदना कैसे बचाएं विद्या...

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

न हमसफ़र कोई -- अजय आनंद

न हमसफ़र कोई, न हमराज़ मिला ,मंजिल नहीं ...रास्ता भी है खोया खोया,रात को तारे, चाँद से बातें भी करते होंगे तो क्या....किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... हरवक्त ख़ुशी की कीमत चुकाई हैं मैंने ...खुदा से कभी हिसाब न लिया....क्या घाटा क्या नफा हुआ...किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... हर मौज साहिल को छूकर चली गयी,पर सब्र की कोई हद तो होगी,मेरा नाम रेत से क्या हुआ,किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... इन तारों को दुआ दे मेरे मालिक,चाहे बुझ बुझ का जले सारी रात चले,मेरा चाँद किस बादल में छुपा,किस्मत है ...मैं खुश हूँ ... तक़दीर को मुनासिब जगह न मिली,कभी रास्तों पर कभी महफील...

रविवार, 20 नवंबर 2011

दिल अब दिल नहीं (ग़ज़ल) सन्तोष कुमार "प्यासा"

मेरा दिल अब दिल नहीं, एक वीरान सी बस्ती है रूठ गई खुशियाँ, बेबसी मुझपर हंसती है क्या था मेरा क्या पता, क्या है मेरा क्या खबर खुद से हूँ खफा अब मै, लुट गई मेरी हस्ती है ये जिंदगी है बोझ मुझपर या जिंदगी पर बोझ मैं न चैन की सांसे मयस्सर मुझे, न मौत ही सस्ती है तुफानो में गर मैं घिरता तो फक्र करता हार पर मझधार में नहीं यारो, किनारे पर डूबी मेरी कस्ती...

बुधवार, 9 नवंबर 2011

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' के लिए चयनित

प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. तभी तो पाँच वर्षीया नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को वर्ष 2011 हेतु राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (National Child Award) के लिए चयनित किया गया है. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री अक्षिता को यह पुरस्कार 'कला और ब्लागिंग' (Excellence in the Field of Art and Blogging) के क्षेत्र में शानदार...

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

माँ करती हूँ तुझे मै नमन---(कविता)----ज्योति चौहान

माँ करती हूँ, तुझे मै नमनतेरी परविरश को करती हूँ नमनप्यासे को मिलता जैसे पानी,माँ तू है वो जिंदगानी ,नो महीनो तक सींचा तूनेलाख परेशानी सही तूने ,पर कभी ना तू हारीधूप सही तूने और दी मुझे छायाभगवान का रूप तू है दूजातेरे प्यार का मोल नही है कोईतू मेरा हर दर्द महसूस करतीमीठी-मीठी लोरी गाती, सुबह बिस्तर से उठातीटिफन बनाती, यूनिफोर्म तैयार करतीरोज मुझे स्कूल भेजतीमुझे क्या अच्छा लगता, तुझे था पतातेरी हाथ की रोटी के बराबर, नही कुछ स्वादिष्ट दूजालाड...

रविवार, 6 नवंबर 2011

हमें क्या हो गया ?----डा.राजेंद्र तेला

हमें क्या हो गया ? ज़मीर सो गया सिर्फ पैसा दिख रहा परिवार सिमट कर यादो में रह गया परिवार के नाम पर मैं और मेरा रह गया पड़ोसी से मिलना समारोह में होता भाई,बहन में भी प्रोटोकॉल होता अपना खून ही अपना लगता पिता का खून भी पराया हो गया शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ कमाना रह गया "हम" से बड़ा "मैं" हो गया सब निरंतर देख रहे पीड़ा को झेल रहे फिर भी होने दे रहे खुद को लाचार बता ...

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

जिन्दगी : बस यूँ ही {कविता} सुमन ‘मीत’

   1 जिन्दगी की खुशियाँ दामन में नहीं सिमटती ऐ मौत ! आ तुझे गले लगा लूँ...........     2 जिन्दगी एक काम कर मेरी कब्र पर थोड़ा सकून रख दे कि मर कर जी लूँ ज़रा..........       3 जिन्दगी दे दे मुझे चन्द टूटे ख़्वाब कुछ कड़वी यादें कि जीने का कुछ सामान कर लूँ........                    &...

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

प्रकाश पर्व दीपावली की शुभकामनाए!

विवेक आलोक विस्तृत हो जग मेंछट जाए दुःख दरिद्रता का अंधकारपग-पग सौहार्द के दीप जलाएप्रेमालोक में डूब जाए संसारउर की अभिलाषाए पूर्ण करेंदीपावली का यह शुभ त्यौहार.....**************************************"हिंदी साहित्य मंच" की ओर से आप सभी को प्रकाशपर्व की हार्दिक शुभकामनाए!छवि गूगल से साभार....

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

[अंदाज़]............................ नज़्म

इश्क करने वाले जानते हैं , मजबूरी क्या चीज़ है ?अपनों का दिल तोडना तो यारो बहुत आसान है ।उड़ने वाले परिंदों को पता है , उचाई क्या चीज़ है ?ज़मीन पर रेगना तो यारो बहुत आसान है ।क़यामत तक जीने वालों को पता है , ज़िन्दगी क्या चीज़ है ?पंखे से झूल कर मरना तो यारो बहुत आसान है ।जो जीते है दुसरो के लिए उनसे पूछो , पुण्य क्या चीज़ है ?गंगा नहा कर पाप धोना तो यारो बहुत आसन है ।गर्दन पर सूली रख जो जीते हैं उनसे पूछो , मेहनत क्या चीज़ है ?.....अमानत लूट कर ऐश करना तो यारो बहुत आसान है ।बिंदास कवियों से पूछो यारो ..मौज क्या चीज़ है ??..घंटो भर में कविता लिखना...

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

नासमझ समझता है {कविता} सूबे सिहं सुजान

नासमझ कुछ समझता है कभी-कभीबादल क्यूँ बरसता है कहीं-कहींचाँद क्यूँ निकलता है कभी-कभीये बात मेरी समझ में तो आ जाएगीवो क्यूँ नही समझता है कभी-कभीरात मस्त हो क्यूँ चांदनी को बुलाती है...दिन क्यों बदगुमाँ हो जाता है कभी-कभीमैं समझाता ही नहीं उसको कुछ भी,उस वक्त वो कुछ समझता है कभी-कभीचाँद, चाँदनी की जगह पर बैठा है सदियों से,सूरज ना चल कर भी, चलता है सदियों...

शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

घर से बाहर {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

ठिठक जाता है मनमुश्किल और मजबूरीवशनिकालने पड़ते है कदमघर से बाहरढेहरी से एक पैर बाहर निकालते हीएक संशय, एक शंदेहबैठ जाता है मन मेंकी आ पाउँगा वापस, घर या नहींजिस बस से आफिस जाता हूँकहीं उसपर बम हुआ तो.........या रस्ते में किसी दंगे फसाद में भी.......फिर वापस घर के अन्दरकर लेता हूँ कदमबेटी पूंछती हैपापा क्या हुआ ?पत्नी कहती है आफिस नहीं जाना क्या ?मन में शंदेह दबाए कहता हूँएक गिलाश पानी........फिर नजर भर देखता हूँबीवी बच्चों कोजैसे कोई मर्णोंमुखदेखता...

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

किसलय सी कोमल काया {गीत} सन्तोष कुमार "प्यासा"

क्यूँ विकल हुआ हिय मेरा क्यूँ लगते सब दिन फीके हर छिन कैसी टीस उठे अब साथ जागूं रजनी केजब से वह किसलय सी कोमल काया मेरे मन में छाई संयोग कहूँ या प्रारब्ध इसे मैंवो पावन पेम मिलन था इक पल का मिटीजन्मो की तृष्णा सारीइक स्वप्न सजा सजल साइस सुने से जीवन में मेरे मचली प्रेम तरुणाई जब से वह किसलय सी कोमल काया मेरे मन में छाई न परिचित मै नाम से उसके न देश ही उसका ज्ञात हैपर मै मिलता हर दिन उससेवोतो मनोरम गुलाबी प्रातः  हैनिखरा तन-मन मेरा बसंत बहार जैसेये कैसी चली पुरवाई  जब से वह किसलय सी कोमल काया मेरे मन में छाई...

रविवार, 11 सितंबर 2011

बदल गया है देश {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

भला विचारा कभी,हम क्या थे और क्या हो गयेस्वार्थ की प्रतिस्पर्धा ऐसी जगीपरहित भूल, अलमस्त हो खो गये !न फिक्र की समाज की,किसी के दुःख से न रहा कोई वास्ताफंसकर छल कपट के जुन्गल मेंबहाया अपनों का लहू, चुना बर्बादी का रास्ता तिल भर सौहार्द न बचा ह्रदय  में भला किसने रचा ये परिवेशतुम खुद बदल गये होऔर कहते हो बदल गया है देश ! *************************************मनुष्य सदैव से अपनी गलतियों को छुपाने के लिए दूसरों पर दोषारोपण करता आया है,परन्तु वर्तमान की आवश्यकता गलतियों  का परित्याग एवं विकाशन है, किन्तु ये विडम्बना ही है की वो इस वास्तविकता...

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

लोग {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

आखिर किस सभ्यता का बीज बो रहे हैं लोगअपनी ही गलतियों पर आज रो रहे हैं लोग हर तरफ फैली है झूठ और फरेब की आगफिर भी अंजान बने सो रहे है लोग  दौलत की आरजू में यूं मशगूल हैं सबझूठी शान के लिए खुद को खो रहे हैं लोग  जाति, धर्म और मजहब के नाम परलहू का दाग लहू से धो रहे हैं लोग  ऋषि मुनियों के इस पाक जमीं परक्या थे और क्या हो रहे है लोग...&nbs...

शनिवार, 20 अगस्त 2011

समझ लेने दो.............राजीव कुमार

अब तो रह गया है मेरी यादों में ही बसकरमिटटी की दीवारों वाला मेरा खपरैल घर जिसके आँगन में सुबह-सबेरे धूप उतर आती थी, आहिस्ता-आहिस्ता, घर के कोने-कोने में पालतू बिल्ली की तरह दादी मां के पीछे-पीछे घूम आती थी, और शाम होते ही दुबक जाती थी घर के पिछवाड़े चुपके से. झांकने लगते थे आसमान से जुगनुओं की तरह टिमटिमाते तारे, करते थे आँख-मिचौली जलती लालटेनों से. आँगन में पड़ी ढीली सी खाट पर सोया करता था मैं दादी के साथ. पर,आज वहां खड़ा है एक आलीशान मकान, बच्चों की मर्जी का बनकर निशान. उसके भीतर है बाईक,कार, सुख-सुविधा का अम्बार है. नहीं है तो बस उस मिटटी...

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

गज़ल ..........................सुजन जी

चेहरे से साफ झलकता है इरादा क्या है सच छुपाने के लिये देखिये कहता क्या है जैसे इन्सान में अहसास नहीं बाकी आज किस घडी कौन बदल जाये भरोसा क्या है फूलों से खुशबू महकती नहीं पहले जैसी सोचिये अपनी मशीनों से निकलता क्या है प्यार की चाह की ओर चैन गंवाया हमने दिल लगाने का बताईये नतीजा क्या है सामने पाके मुझे आप ठहर जाते हो सच बताओ कि मेरा आपसे रिश्ता क्या...

रविवार, 14 अगस्त 2011

उनको तो सिर्फ कफ़न होगा {कविता} अंकुर मिश्र :युगल"

सच चाहे जितना तीखा हो धंस जाये तीर सा सीने में !सुनने वाले तिलमिला उठे लथपथ हो जाये पसीने में !!लेकिन दुर्घटना के भय से कब तक चुपचाप रहेंगे हम !नस-नस में लावा उबल रहा कितना संताप सहेगे हम !!जिन दुष्टों ने भारत माँ की है काट भुजा दोनों डाली!पूंजे जो लाबर,बाबर को श्री राम चंद्र को दे गली !!उन लोगो को भारत भू पर होगा तिलभर होगा स्थान नहीं !वे छोड़ जाएँ इस धरती को उनका ये हिंदुस्तान नहीं !!हमको न मोहम्मद से नफ़रत, ईसा से हमको बैर नहीं !दस के दस गुरु अपने उनमे से कोई गैर नहीं !!मंदिर में गूंजे वेदमंत्र गुरु-द्वारों में अरदास चले !गिरजाघर में घंटे बजे...

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

स्नेह सुरभि {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

अलमस्त हो जाय प्रभा की मधुर बेलाछेड़ दो वो प्रीत-गीत फिर से विहागमिटें  निज मन के मनभेद सभीदेश-काल, अन्तराल का भेद मिटाने को हे सरित सुनाओ राग अज्ञान तिमिर सब हिय से मिट जायबस संचारित हो तो स्नेह सौहार्द और मोहमधुप की मधुर गुन-गुन सुनकरकटे जन्म-जन्मातर के  विछोह जगे अन्तरम  में इक ललक ऐसीविजय-मार्ग रोके न भय, कभी बन कारासुकर्म कर रचे नवयुग ऐसास्नेह सुरभि से सुवासित हो जग-सारा  ...

बुधवार, 27 जुलाई 2011

पर्दा प्रथा: विडंबना या कुछ और---------मिथिलेश दुबे

अपने देश में महिलाओं को (खासकर उत्तर भारत में ज्यादा) पर्दे में रखने का रिवाज है । इसके पीछे का कारण शायद ही कोई स्पष्ट कर पाये फिर भी ये सवाल तो कौंधता ही है कि आखिर क्यों ? मनुष्यों में समान होने के बावजूद भी महिलाओ‍ को ढककर या छिपाकर रखने के पीछे का क्या कारण हो सकता है ? ये सवाल हमारे समाज में अक्सर ही किया जाता रहा है, कुछ विद्वानों का मानना है कि पर्दा प्रथा समाज के लिये बहुत ही आवश्यक है इसके पीछे के कारण के बारे में उनका कहना है कि इस प्रथा से पुरूष कामुकता को वश में किया जा सकता है । लेकिन इस जवाब के संदर्भ में ये सवाल भी खड़ा होता है...

सोमवार, 25 जुलाई 2011

बेनूर चाँद {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

एक दर्द में फिर डूबी शमा, फिर चाँद हुआ बेनूर बिखरा दिल, टीसती यादें तेरी भला क्यूँ हुए तुम दूर करूँ वक़्त से शिकवा या फिर अफ़सोस अपनी किस्मत पर  तरसती "प्यास" में तडपूं हर पल, ऐसा चढ़ा उस साकी का सुरूर  ये कशिश है इश्क की या दीवानगी का कोई दिलकश सबब तडपती जुदाई उसी को क्यूँ , जो होता प्यार में बेकसूर  हजारों तारों के साथ भी आसमां क्यूँ हुआ तनहा जब बंद हो गईं आंखे चकोर की, चाँद भी हो गया बेनूर  ************************************************************* मन के अन्तरम में पता नहीं कैसी टीस कैसी बेचैनी उठी, फिर न चाहते हुए/...

शनिवार, 23 जुलाई 2011

सांप्रदायिकता (कविता)----जयप्रकाश स‌िंह बंधु

स‌ब जानते हैं-स‌ांप्रदायिकता!धर्म,भाषा,रंग,देश...न जाने कितनी ही बिंदुओं परतुम कटार उठाओगेऔर दौड़ने लगोगे एकाएकहांफते हुए-कस्बा-कस्बाशहर-शहरगांव-गांव।और यह भीस‌ब जानते हैं-कि अपने चरित्रानुसाररोती-बिलखती बुत बनी आत्माओंखंडहरों के बीच छुप जाओगेशायद तुम्हारे भीतर का आदमीडरा होगा थोड़ी देर के लिए।तब-उन्हीं खंडहरोंकाठ बनी आत्माओं के बीच स‌ेनिकल आएगा धीरे-धीरेएक कस्बाएक शहरएक गांव....एक गांव....

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

अरिमान (कविता)-----विजय कुमार शर्मा

१. अरिमान - एक जो बिछुर रहें जग की चाल सेउन्हें रफ़्तार पे ला दूँ मैंजो मचा रहें हो भीम उछल कूंदउन्हें शांति का पाठ पढ़ा दूँ मैंजो बढ़ रहें हो सरहदों से आगेउन्हें सरहदों में रहना सिखा दूँ मैंमेरे जीवन का एक तुष्य ख्वाबजग में रामराज बना दूँ मैंन चले गोंलिया न बहे खूनन कहीं कोई कैसा मातम होहर दर पे उमरे बस खुशीहर घर उन्नति का पालक होचहचहाता आंगन हो सबकाहर कोई समृधि श्रष्टि का चालक होमेरे जीवन की एक बिसरी कल्पनाहो एक देव जो दैत्यों का घालक हो२. अरिमान - दो आये मेरे में इतना सामर्थबंजर में भी फसल उगा दूँ मैंजो मुरझा रहे पंचतत्वो के वाहकउन्हें...

सोमवार, 11 जुलाई 2011

हिंगलिश दोहे...................श्यामल सुमन

LIFE MISERABLE हुई, INCREASING है RATE।GODOWN में GRAIN है, PEOPLE EMPTY पेट।।JOURNEY हो जब TRAIN से, FEAR होता साथ।होगा ACCIDENT कब, मिले DEATH से हाथ।।इक LEADER SPEECH का, दूजा करे OPPOSE।दिखती UNITY जहाँ, PAY से अधिक PRAPOSE।।आज CORRUPTION के प्रति, कही न दिखती HATE।जो भी हैं WANTED यहाँ, खुला MINISTER GATE।।आँखों में TEAR नहीं, नहीं TIME पे RAIN।सुमन की LIFE SAFE है, LOSS कहें या GAI...

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

मोहब्बत.............रमन कुमार अग्रवाल'रम्मन'

परिंदा क़ैद में हैआशियाना देखता हैपरिंदा क़ैद में हैआशियाना देखता हैवो बंद आँखों सेसपना सुहाना देखता हैतू ही समझ न सका अहमियत मोहब्बतकीतेरे तरफ तो येसारा ज़माना देखता हैतू ही तबीब, तू ही रहनुमा तूही रहबरतेरे करमको तो सारा ज़माना देखता हैतू आशिकों का है आशिक़, ये शान हैतेरीतेरी मिसाल तू खुद हैज़माना देखता हैनवाज़ देना तू 'रम्मन'को भी मोहब्बत सेदीवाना मिलने का तेरेबहाना देखता...

रविवार, 3 जुलाई 2011

चवन्नी का अवसान : चवनिया मुस्कान--------श्यामल सुमन

सच तो ये है कि चवन्नी से परिचय बहुत पहले हुआ और"चवनिया मुस्कान" से बहुत बाद में। आज जब याद करता हूँ अपने बचपन को तो याद आती है वो खुशी, जब गाँव का मेला देखने के लिए घर में किसी बड़े के हाथ से एक चवन्नी हथेली पर रख दिया जाता था "ऐश" करने के लिए। सचमुच मन बहुत खुश होता था और चेहरे पर स्वाभाविक चवनिया मुस्कान आ जाती थी। हालाकि बाद में चवनिया मुस्कान का मतलब भी समझा। मैं क्या पूरे समाज ने समझा। मगर उस एक दो चवन्नी का स्वामी बनते ही जो खुशी और "बादशाहत"...

शनिवार, 2 जुलाई 2011

सरकार भी संसद से ऊपर नहीं - शम्भु चौधरी

भारत जब से आज़ाद हुआ इसके आज़ादी के मायने ही बदल गये। सांप्रदायिकता के नये-नये अर्थ शब्द कोश में भरने लगे। इसका सबसे ताजा उदाहरण है भ्रष्टाचार की बात करने वाले भी अब सांप्रदायिक तकतों से हाथ मिला लिये। कुछ दिन पहले बाबा रामदेव के लिए लाला कारपेट बिछाने वाली कांग्रेस को अचानक से एक ही दिन में सांप्रदायिक नजर आने लगे। अब अन्ना हजारे पर भी आरोप मढ़ दिया कि वे भ्रष्टाचार की लड़ाई में सांप्रदायिक ताकतों को साथ लेकर सरकार से लड़ाई कर रहे हैं। जब तक कांग्रेसियों का मन होगा और आप उनकी बात मानते रहेगें वो धर्मनिरपेक्ष नहीं तो सांप्रदायिक।इस लेख को पढ़ने...

मंगलवार, 28 जून 2011

अंडमान में 'सरस्वती सुमन' के लघु कथा विशेषांक का लोकार्पण और ''बदलते दौर में साहित्य के सरोकार'' विषय पर संगोष्ठी

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘चेतना’ के तत्वाधान में स्वर्गीय सरस्वती सिंह की 11 वीं पुण्यतिथि पर 26 जून, 2011 को मेगापोड नेस्ट रिसार्ट में आयोजित एक कार्यक्रम में देहरादून से प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' पत्रिका के लघुकथा विशेषांक का विमोचन किया गया. इस अवसर पर ''बदलते दौर में साहित्य के सरोकार'' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री एस. एस. चौधरी, प्रधान वन...