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रविवार, 24 अक्टूबर 2010

भारतोन्नति में बाधक हैं अतीत के सुनहरे स्वप्न!******* सन्तोष कुमार "प्यासा"

आजादी के सालों बाद भी भारत पूर्णरूपेण विकसित नही पाया यह चिन्तनीय विषय है। किसी भी राष्ट्र की उन्नती एवं विकाषषीलता के लिए जिन उपादानों की आवष्यकता पडती है, वह सभी हमारे देष में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। तो फिर वह क्या कारण है जिससे हमारा देष अभी तक ठीक से अपने पैरों में खडा नही हो पाया ? क्या हमारे पास विवेक की कमीं है ? या फिर प्राक्रतिक संसाधनों की ? अथवा बल व पौरूष की ? गंभीरता से विचारने पर ज्ञात होता है कि हमारे पास वह सभी उपादान...

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

वो आई !

वो आई जैसे चुपके से सौन्दर्य सुरभि लेकर आती है, सावन की तरूनाइ्र्रमेरे मन में बस गई ऐसैजैसै बस जाता है, अलि का गुंजनकली-कली में...पुलकित हुआ मैंपाकर उसकी सोख-पर-संयत अदायेंछाने लगी प्रीत फिर जैसे कारे नभ में इन्द्रधनुष खिल जाये...हर्षाने लगे ओस-कण तरूपात मेंसजने लगे उज्ज्वल स्वप्नचाॅदनी रात में! बस अब पुष्प को कलि बन खिलना थाबेकल थे दोनो, दोनो को मिलना थापर...पर न जाने क्या हुआ, क्यूॅ मैं हुआ विक्षिप्तक्यूॅ खोने लगा तिमर में अनुराग दीप्तअमा  के चन्द्र की तरह जाने कहाॅ खो गईकरके मेरे जीवन को पतछड सा विरान...अब...

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

दोहे..............कवि कुलवंत सिंह

शुद्ध धरम बस एक है, धारण कर ले कोय .इस जीवन में फल मिले, आगे सुखिया होय .सत्य धरम है विपस्सना, कुदरत का कानून . जिस जिस ने धारण किया, करुणा बने जुनून . अणु अणु ने धारण किया, विधि का परम विधान .जो मानस धारण करे, हो जाये भगवान .अंतस में अनुभव किया, जब जब जगा विकार .कण - कण तन दूषित हुआ, दुख पाये विस्तार . हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख हो, भले इसाई जैन .जब जब जगें विकार मन, कहीं न पाये चैन .दुनियादारी में फंसा, दुख में लोट पलोट .शुद्ध धरम पाया नही, नित नित लगती चोट . मैं मैं की आशक्ति है, तृष्णा का आलाप .धर्म नही धारण किया, करता रोज विलाप .माया पीछे भागता,...

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

राज की नीति

राज की नीति.......! शहर की सडकों पर कुछ दिनों से रोजना युवाओं के दौडते फर्राटेदार वाहनों और उस पर जिन्दाबाद का शोर,बरबस ही शहर के जिन्दा होने का प्रमाण दे जाता है।युवाओं की भागदौड देखकर लगा कि शायद किसी आन्दोलन या फिर बाजार बन्द की तैयारी चल रही है। लेकिन हमारे अनुमान पर भैय्याजी के पिचके आम से चेहरे ने पानी फेर दिया।उनका निचुडा सा चेहरा देख,हमने पुछ ही लिया कि भैय्या जी आखिर माजरा क्या है...?युवाओं के जोश को देख कर वे काहे को दुबले हुऐ जा रहे हैं ? भैय्या जी तपाक से बोले -तुम्हें मालूम है कि युवाओं में इतना जोश क्यों है ...? --क्यों है भला.....?...

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

द्रोपदी पत्र....डा श्याम गुप्त

( अगीत में ) हे धर्मराज! मैं बन्धन थी ,समाज व संस्कार के लिए ,दिनभर खटती थी ,गृह कार्य में,पति परिवार पुरुष की सेवा मेंआज , मैं मुक्त हूँ,बड़ी कंपनी की सेवा में नियुक्त हूँ,स्वेच्छा से दिनरात खटती हूँ;अन्य पुरुषों के मातहत रहकरकंपनी की सेवा ...

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

झलक ................श्यामल सुमन

बेबस है जिन्दगी और मदहोश है ज़मानाइक ओर बहते आंसू इक ओर है तरानालौ थरथरा रही है बस तेल की कमी सेउसपर हवा के झोंके है दीप को बचानामन्दिर को जोड़ते जो मस्जिद वही बनातेमालिक है एक फिर भी जारी लहू बहानामजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासतरोटी बड़ी या मजहब हमको ज़रा बतानामरने से पहले मरते सौ बार हम जहाँ मेंचाहत बिना भी सच का पड़ता गला दबानाअबतक नहीं सुने तो आगे भी न सुनोगेमेरी कब्र पर पढ़ोगे वही मरसिया पुरानाहोते हैं रंग कितने उपवन के हर सुमन केहै काम बागवां का हर पल उसे सज...