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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

(कविता)-- खुशियों का इंतज़ार -- कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

(कविता)-- खुशियों का इंतज़ार -- कुमारेन्द्र सिंह सेंगर==================================सुबह-सुबह चिड़िया ने चहक कर उठाया हमें, रोज की तरह आकर खिड़की पर मधुर गीत सुनाया हमें। सूरज में भी कुछ नई सी रोशनी दिखी, हवाओं में भी एक अजब सी सोंधी खुशबू मिली। फूलों ने झूम-झूम कर एकदूजे को गले लगाया, गुनगुनाते हुए पंक्षियों ने नया राग सुनाया। हर कोना लगा नया-नया सा, हर मंजर दिखा कुछ सजा-सजा सा। इसके बाद भी एक वीरानी सी दिखी, अपने आपमें कुछ तन्हाई सी लगी। अचानक चौंक कर उठा तो सपने में खुद को खड़ा पाया, खुशनुमा हर मंजर को अपने से जुदा पाया। आंख मल कर दोबारा कोशिश...

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

दिनकर की कविता ( चाँद और कवि) {सन्तोष कुमार "प्यासा"}

जब मैंने पहली बार दिनकर जी की यह कविता पढ़ी तो दिनकर जी के अतलस्पर्शी विचार मेरे ह्रदय पर अपने सुनहरे छाप छोड़ गए ! दिनकर जी की इस कविता का गूढ़ रहस्य जानने के बाद किसी भी मनुष्य के सुप्त एवं निराश विचारो में नवीन प्राण आ सकते है ! चाँद और कविरात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,आदमी भी क्या अनोखा जीव है!उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरतेऔर लाखों बार तुझ-से पागलों को भीचाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल काआज उठता...

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

गीतकार अवनीश सिंह चौहान हिंदी दिवस पर सम्मानित

मुरादाबाद. हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर दिनांक 13-9-2010 को साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ और ‘हिंदी साहित्य संगम’ सहित महानगर की छः संस्थाओं के संयुक्त तत्वाधान में स्थानीय गायत्री प्रज्ञा पीठ के सभागार में सम्मान समारोह, विचार गोष्ठी एवं काव्य संध्या का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का शुभारम्भ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार नवगीत कवि श्री माहेश्वर तिवारी, मुख्य अतिथि हिन्दू महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ रामानंद शर्मा एवं विशिष्ट अतिथि...

बचपन

चूल्हे ‍की आग से निकलते धुएँ सेमाँ की आँखों से आँसू बहता हुआगाल से गले तक फिसलता चला जाता हैमैं बार बारचिल्लाता हूँमाँ खाना कहाँ हैं ...माँ आँचल से मुंह पोंछते हुएदुलार से कहती हैला रही हूँ बेटाखाने में कुछ पल देर होते हीमैं रूठ जाता हूँमाँ चुचकार करदुलारकर अपने हाथों सेरोटी खिलाती हैफिर भी मैं मुंह दूसरी तरफ़किए हुए रोटी खा लेता हूँ ,माँ प्यार से देर यूँ हीखाना खिलाती है और मुझे मानती हैमैं माँ को देखकर खुश होता हूँऔर भाग जाता हूँघर में छिपने के लिए ....माँ कुछ देर मुझे इधर उधरखोजती हैऔर बक्से के पीछे से ढूंढ लेती हैमैं खुद को हारा महसूस...

सोमवार, 20 सितंबर 2010

कुछ मुक्तक----पद्मकान्त शर्मा ' प्रभात'

हिन्दीहिन्दी है राजनीति की शिकार हो गयी।धारा संविधान की बेकार हो गयी ।सोते रहे रहनुमा कुर्सी के मोह में--है राष्ट्रभाषा संसद में लाचार हो गयी ।हिन्दी का पोर-पोर बिंधा घावों से ।हो गया आहत ह्रदय बिडम्बनाओं से ।कलम के सिपाहियों खामोश मत रहो --है राष्ट्र भाषा सिसक रही वेदनाओं से । अखबारडर जाये जो आतंक से कलमकार नहीं है ।मोड़े जो मुख सत्य से पत्रकार नहीं है ।जनता के दुखदर्द को जो लिख नहीं पाया--हो कुछ भी वो मगर वो अखबार नहीं है...

बुधवार, 15 सितंबर 2010

भारतीय संस्कृति की अस्मिता की पहचान है हिन्दी...............

भारत के सुदूर दक्षिणी अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक डाक सेवा कार्यालय में हिन्दी-दिवस का आयोजन किया गया. निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और पारंपरिक द्वीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया. कार्यक्रम के आरंभ में अपने स्वागत भाषण में सहायक डाक अधीक्षक श्री रंजीत आदक ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर कि निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव स्वयं हिन्दी के सम्मानित लेखक और साहित्यकार हैं, ऐसे में द्वीप-समूह...

हिन्दी पखवारा.................श्यामल सुमन

भाषा जो सम्पर्क की हिन्दी उसमे मूल।राष्ट्र की भाषा न बनी यह दिल्ली की भूल।।राज काज के काम हित हिन्दी है स्वीकार।लेकिन विद्यालय सभी हिन्दी के बीमार।।भाषा तो सब है भली सीख बढ़ायें ज्ञान।हिन्दी बहुमत के लिए करना मत अपमान।।मंत्री के संतान सब जा के पढ़े विदेश।भारत में भाषण करे हिन्दी पर संदेश।।बढ़ा है अन्तर्जाल में हिन्दी नित्य प्रभाव।लेकिन हिन्दुस्तान में है सम्मान अभाव।।सिसक रही हिन्दी यहाँ हम सब जिम्मेवार।बना दो भाषा राष्ट्र की ऐ दिल्ली सरकार।।दिन पंद्रह इक बरस में हिन्दी आती याद।यही सोच हो शेष दिन सुमन करे फरिया...

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

आधुनिक मीरा {हिंदी दिवस पर विशेष} सन्तोष कुमार "प्यासा"

 महादेवी वर्मा  हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज...

सोमवार, 13 सितंबर 2010

वेश्या है वह---------(कविता)--- मिथिलेश दुबे

सहती न जानें कितने जुल्मकरती ग्रहणपुरुष कुंठाओ कोहर रात ही होती है हमबिस्तरन जानें कितनों के साथ.............कभी उसे कचरा कहा जाताकभी समाज की गंदगीकभी कलंक कहा गयाकभी बाई प्रोडक्टतो कभी सभ्य सफेदपोशसमाज का गटर.........आखिर हो भी क्यों नाकसूर है उसका कि वहइन सफेद पोशों के वासना कोकाम कल्पनाओं कोकहीं अंधेरे में ले जाकरलील जाती हैखूद को बेचा करती हैघंटो और मिनटों के हिसाब से...........जहाँ इसी समाज मेंनारी को सृजना कहा जाता हैपूज्य कहा जाता हैमाता कहा...

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

लेकिन तुम नहीं आये---( कविता)-----मिथिलेश दुबे

आज फिर देर रात हो गयीलेकिन आप नहीं आयेकल ही तो आपने कहा थाआज जल्दी आ जाऊंगाजानती हूं मैंझूठा था वह आश्वासन .......पता नहीं क्योंफिर भी एक आस दिखती हैंहर बार हीआपके झूठे आश्वासन में........हाँ रोज की तरह आज भीमैं खूद को भूलने की कोशिश कर रही हूँआपकी यादों के सहारेरोज की तरह सुबह हो जाएऔर आपको बाय कहते ही देख लूं..........आज भी वहीं दिवार सामने है मेरेजिसमे तस्वीर आपकी दिखती हैजो अब धूंधली पड़ रही हैजो आपके वफा काअंजाम है या शायदबढ़ती उम्र का एहसास........वही...

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

‘राष्ट्रवाणी’ का नया अंक : कवि महेंद्रभटनागर विशेषांक : 2010

‘राष्ट्रवाणी’ का नया अंक‘राष्ट्रवाणी’ : कवि महेंद्रभटनागर विशेषांक : 2010========================================॰'महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे' ने अपनी द्वि-मासिक पत्रिका 'राष्ट्रवाणी' का, लगभग एक-सौ पृष्ठों का विशेषांक, लब्ध-प्रतिष्ठ कवि महेंद्रभटनागर के काव्य-कर्तृत्व पर, प्राचार्य सु॰ मो॰ शाह के सम्पादन में, प्रकाशित किया है। ॰महेंद्रभटनागर हिन्दी प्रगतिवादी-जनवादी काव्य-धारा के चर्चित कवि हैं। उनका रचना-कर्म स्वतंत्रता-पूर्व प्रारम्भ होकर...

बुधवार, 8 सितंबर 2010

अज्ञेय आनंद {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

हे मनुष्य ! तू क्यूॅं हुआ अज्ञेयानन्द में विक्षित क्यूॅ भारी है, ज्ञान पर, अज्ञान का तिमिर दीप्त चल पडा जिस पथ पर तू , वह है अगम तू रहेगा सदा विजयी, मत पाल सिकंदर सा भ्रम सूर्य भी एक सा नभ पर, नही रहता निरंतर ले जान तू , लोभ और मृत्यु में न कोई अंतर हैं मिथ्या सभी, देखता तू जो स्वप्न सजीले मत बहक, देख कर, तितलियों के पर रंगीले अज्ञेयानन्द की लालसा, लेगी तुझे छल एक लहर में ढह जाएगा, तेरा रेत-महल अभी समय है, सम्भल जा नही बाद में पछताएगा निज अज्ञानता पर रोएगा, आॅसू बहाएगा......

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

होता है सबेरा आज भी {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

होता है सबेरा आज भी पर, क्यूँ न चहकते विहंग हैं क्यूँ न सुनाई देती, बैलों की घंटियाँ क्यूँ न किसानो में वो उमंग है क्यूँ आशाएं खो रही रवि के प्रकाश में शरद-शोभा क्यूँ नहीं छाती अब आकाश में सौहार्द की सुवासित, सुरभि जाने कहाँ खो गई क्यूँ न खिलते पुष्प अब कोमल कास में क्यूँ न फुदकते खरगोस अब क्यूँ न दीखते पिक या शिखी क्यूँ सुना पड़ा है गावं का कूप एक अरसे से कोई पनहारन भी न दिखी क्यूँ सजते उज्ज्वल स्वप्न अब क्यूँ मिट गई नव-ह्रदय से हर्ष तरंग होता है सबेरा आज भी पर, क्यूँ न चहकते विहंग हैं.....