नहीं समय किसी का साथी रे !मत हँस इतना औरों पर किकल तुझको रोना पड़ जायेछोड़ नर्म मखमली शैय्या कोगुदड़ पर सोना पड़ जायेहर नीति यही बतलाती रे !नहीं समय किसी का साथी रे !तू इतना ऊँचा उड़ भी न किकल धरती के भी काबिल न रहेइतना न समझ सबसे तू अलगकल गिनती में भी शामिल न रहेप्रीति सीख यही सिखलाती रे !नहीं समय किसी का साथी रे !रोतों को तू न और रुलाजलते को तू ना और जलाबेबस तन पर मत मार कभीकंकड़- पत्थर , व्यंग्यों का डलाअश्रु नहीं निकलते आँखों सेजीवन भर जाता आहों सेमन में छाले पड़ जाते हैंअवसादों के विपदाओं सेकुदरत जब मार लगाती रे !नहीं समय किसी का साथी रे !इतना...