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बुधवार, 30 जून 2010

'आवारागर्द' है....................... पंकज तिवारी

ये हँसी नहीं मेरे दिल का दर्द है।हर एक साँस मेरी आज सर्द है।।छुपाया है हर एक आँसू आँखों में,न देख पाये ज़माना बड़ा बेदर्द है।है साफ आइने सा आज भी दिल,कतरा तलक जम न सकी गर्द है।बदसुलूकी की ये सजा है मिली,दिल है गमगीन और चेहरा ज़र्द है।साफ समझे याकि दिल का काला,हर एक राज़ तेरे सामने बेपर्द है।कभी समझाया जो वाइज़ बनकर,ईनाम में नाम दिया 'आवारागर्द' है।...

गुरुवार, 24 जून 2010

बेटी को भी जन्मने दो -- कविता

कविता बेटी को भी जन्मने दो डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ===================मचल रही जो दिल में धड़कन उसको जीवन पाने दो, होठों की कोमल मुस्कानें जीवन में खिल जाने दो। नन्हा सा मासूम सा कोमल गुलशन में है फूल खिला, पल्लवित, पुष्पित होकर उसको जहाँ सुगन्धित करने दो। खेले, कूदे, झूमे, नाचे वह भी घर के आँगन में, चितवन की चंचलता में स्वर्णिम सपने सजने दो। मानो उसको बेटों जैसा आखिर वह भी बेटी है, आने वाली मधुरिम सृष्टि उसके आँचल में पलने दो। धोखा है यह वंश-वृद्धि का जो बेटों से चलनी है, वंश-वृद्धि के ही धोखे में बेटी को भी जन्मने ...

प्‍यार.......................... प्रमेन्‍द्र

राहो मे पलके बिछा कर तेरा इंतजार कर रहा हूँ। अपनी चाहत को तेरे दिल मे बसा कर अपना इश्क-ए-इज़हार कर रहा हूँ। चाहत को अपनी चाह कर भी, इज़हार नही कर पा रहा हूँ। तेरी चाहत मे दिल मे दर्द लेकर अपने को दिल को दर्द दे रहा हूं। मै तुम्‍हे देखता हूँ देखता ही रह जाता हूँ। मै जहाँ जाता हूँ सिर्फ तुझे ही पाता हूँ।। मै अपने प्‍यार को खुद मार रहा हूँ , चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा हूँ। काश कोई करिश्‍मा हो जाये, सारे बंधन तोड़ कर हम एक हो जाये।। - प्रमेन्द्र...

बुधवार, 16 जून 2010

कैसा था वो पहला प्‍यार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,नीशू तिवारी

बहुत दिन नहीं हुआ जॉब करते हुए .....पर अच्छा लगता है खुद को व्यस्त रखना........शाम की कालिमा अब सूरज की लालिमा को कम कर रही थी ......मैं चुप चाप तकिये में मुह धसाए बहार उड़ रही धुल में अपनी मन चाही आकृति बना कर ( कल्पनाओं में ) खुश हो रहा था .........कभी प्रिया का हंसता चेहरा नजर आता .........तो दूसरे पल बदलते हवा के झोंकों के साथ आँखें नयी तस्वीर उतार लेती .......... बिलकुल वैसी ही .....जैसे वो मिलने पर( शर्माती थी ) करती थी.............अचानक आज इन यादों ने मेरी साँसों की रफ्तार को तेज़ कर दिया .........करवट बदलते हुए आखिरी मुलाकात के करीब...

रविवार, 13 जून 2010

अख़बार के बण्डल में देखता हूँ ज़माने का सच ......... ..नीशू तिवारी

भारी बोझल आँखें अधखुली खिड़की से झांकती हैं..........बंद हो  जाती है पलकें  खुद ब खुद...बंद आँखें होते हुए भी मैं पहुच जाता हूँ बालकनी तकउठाता हूँ अखबार का बण्डलअलसाये बदन में हवा का झोंका सनसनी पैदा करता   हैमैं बेमन खोलता हूँ समाज के दर्पण को दौडाता हूँ सरासर पूरे पन्ने पर नज़र पढता हूँ नाबालिग लड़की से दुराचार की खबरदहेज़ के लिए विवाहिता के जलाने का समाचार फिर दुखी मन बढ़ जाता  हूँ  अगले पन्ने पर जाती हैं नज़र क़र्ज़ से डूबे  किसानो को आत्महत्या पर और राजनेता...

ग़ज़ल............- दिल में ऐसे उतर गया कोई..............मनोशी जी

दोस्त बन कर मुकर गया कोई  अपने दिल ही से डर गया कोईआँख में अब तलक है परछाईंदिल में ऐसे उतर गया कोईसबकी ख़्वाहिश को रख के ज़िंदा फिरख़ामुशी से लो मर गया कोईजो भी लौटा तबाह ही लौटाफिर से लेकिन उधर गया कोई"दोस्त" कैसे बदल गया देखोमोजज़ा ये भी कर गया ...

शनिवार, 12 जून 2010

अस्तित्व....................(कविता)...................... सुमन 'मीत'

दी मैनें दस्तक जब इस जहाँ मेंकई ख्वाइशें पलती थी मन के गावं मेंसोचा था कुछ करके जाऊंगीजहाँ को कुछ बनकर दिखलाऊंगीबचपन बदला जवानी ने ली अंगड़ाईजिन्दगी ने तब अपनी तस्वीर दिखाईमन पर पड़ने लगी अब बेड़ियांरिश्तों में होने लगी अठखेलियांजुड़ गए कुछ नव बन्धनमन करता रहा स्पन्दनबनी पत्नि बहू और माँअर्पित कर दिया अपना जहाँ भूली अपने अस्तित्व की चाहकर्तव्य की पकड़ ली राहरिश्तों की ये भूल भूलैयाबनती रही सबकी खेवैयाफिसलता रहा वक्त का पैमानान रुका कोई चलता रहा जमाना चलती रही जिन्दगी नए पगपकने लगी स्याही केशों की अबहर रिश्ते में आ गई है दूरीजीना बन गया है...

शुक्रवार, 11 जून 2010

राष्ट्रवादी.................श्यामल सुमन

तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा क झुठलाना।एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको तुम लूटो उतना।सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।तुलसी भी ऐसा ही कह गए और तर्क सिखाऊँ कितना।।पहले "मैं" हूँ राष्ट्र...

गुरुवार, 10 जून 2010

दोस्त की बेटी के जन्म पर एक कविता -------- कवि दीपक शर्मा

सेमल जैसी काया लेकर देखो चंदा आया रे रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को  चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे . दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतियामुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे...

जीवन {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

जीवन क्या है ? सुख का आभाव या दुःख की छाँव या के प्रारब्ध के हाँथ की कठपुतली हर क्षण अपने इशारो पर नचाती है किसके हाथ में है जीवन की डोर ? ************************** जीवन उसी का है जो इसे समझ सके तेरे हांथों में है तेरे जीवन की डोर ये नहीं महज प्रारब्ध का मेल ये है सहज-पर-कठिन खेल भाग्य की सृष्टि निज कर्मो से होती है जीवन तेरे हांथों में जैसी चाहे वैसी बना हाँ, जीवन एक खेल है "प्यासा" हार जीत का शिकवा मत कर खेले जा, खेले जा खेले जा.................................. &nb...

बुधवार, 9 जून 2010

काव्य दूत,,,,,,,,,,,,,

  पुस्तक समीक्षा  पुस्तक--काव्यदूत ( काव्य सन्ग्रह), रचनाकार--डा श्याम गुप्त , समीक्षक--कवि राम देव लाल "विभोर" , प्रकाशक- सुषमा प्रकाशन, आशियाना, लखनऊ काव्यदूत कवि श्याम का,पढ़ा मिला आनंद |कहीं 'सुगत' दिक्पाल है,कहीं मुक्त है छंद |अनुभव का आला लिए,अति उत्तम तजवीज़ |सुकवि श्याम के काव्य में,विविध रंग के बीज |आस पास के दृश्य को, रचनाओं में ढाल |श्याम'सलोनी उक्ति कह,सबको करें निहाल |सरल, खडी- बोली मधुर, उत्तम भाव- विभाव |गतिमय...

शिक्षा और आधुनिक प्यार ********* सन्तोष कुमार "प्यासा"

आज कल प्यार का भूत युवाओ पर अच्छा खासा चढ़ा हुआ है ! गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाने का फैशन सर चढ़ कर बोल रहा है ! जिसे देखो वही इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा है ! प्यार का खुमार इतना ज्यादा चढ़ चूका है की युवा पीढ़ी ने पढाई को साइड में रख दिया है !प्यार का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण आज के अधिकतर युवा अपना भविष्य बर्बाद कर रहे है ! प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है ! और न ही अपने से विपरीत लिंग से दोस्ती करना ! बस इरादा दोस्ती को नेक और दागदार बनता है ! किसी से प्यार हो जाने का मतलब ये नहीं होता की हम अपने कैरियर को भूल कर बस उसी में खो जाए ! आज...

मंगलवार, 8 जून 2010

ज़िंदगी..........(श्यामल सुमन).................गजल

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।लक्ष्य नियति के साथ चलना और...

सोमवार, 7 जून 2010

बंद करता हूं जब आंखे............(कविता)...............neeshoo tiwari

बंद करता हूं जब आंखेसपने आखों में तैर जाते हैं ,जब याद करता हूँ तुमको यादें आंसू बनके निकल जाती हैं ,ये खेल होता रहता है ,यूं हर पल , हर दिन ही ,तुम में ही खोकर मैं ,पा लेता हूँ खुद को , जी लेता हूँ खुद को ,बंद करता हूँ आंखें तो दिखायी देती है तुम्हारी तस्वीर , सुनाई देती है तुम्हारी हंसी कानों में,ऐसे ही तो मिलना होता है तुमसे अब।।बंद कर आंखें देर तक,महसूस करता हूँ तुमको ,और न जाने कब चला जाता हूँ नींद के आगोश में ,तुम्हारे साथ ही...

राह {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

जब हम मिले वो दिन एक था जहाँ हम मिले वो जगह एक थी दोनों की बाते दोनों के विचार एक थे जहाँ हमें जाना था वो मंजिल एक थी मै तो अब भी वहीँ कायम हूँ पर अब पता नहीं क्यू तुमने बदल ली अपनी राह..........................&nb...

शनिवार, 5 जून 2010

मनुष्य प्रकृति और समय {विश्व पर्यावरण दिवस पर एक चिंतन} सन्तोष कुमार "प्यासा"

हर क्षण हर पल इस स्रष्टि में कुछ न कुछ होता रहता है ! "समय" इक पल भी नहीं ठहरता ! समय का चक्र निरंतर घूमता रहता है ! जब मै इस लेख को लिख रहा हूँ, मुझे मै और मेरे विचार ही दिख रहे है ! ऐसा प्रतीत होता है, जैसे की कुछ हो ही नहीं रहा ! हवा शांत है ! सरसों के पीले खेत इस भांति सीधे खड़े है, जैसे किसी ने उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया हो ! चिड़ियों की चहचहाहट, प्रात: कालीन समय और ओस की बूंदे, बहुत भली लग रहीं हैं ! सूर्य खुद को बादलों के बीच इस भांति छुपा रहा है, जैसे कोई लज्जावान स्त्री पर पुरुष को देख कर अपना मुंह आँचल में छुपा लेती है ! कोहरे को देख...

शुक्रवार, 4 जून 2010

गजल...............कवि दीपक शर्मा

लो राज़ की बात आज एक बताते हैंहम हँस-हँसकर अपने ग़म छुपाते हैं,तन्हा होते हैं तो रो लेते जी भर करसर-ए-महफ़िल आदतन मुस्कुराते हैं.कोई और होंगे रुतबे के आगे झुकने वालेहम सिर बस खुदा के दर पर झुकाते हैंमाँ आज फिर तेरे आँचल मे मुझे सोना हैआजा बड़ी हसरत से देख तुझे बुलाते हैं . इसे ज़िद समझो या हमारा शौक़ “औ “हुनरचिराग हम तेज़ हवायों मे ही जलाते हैतुमने महल”औ”मीनार,दौलत कमाई हो बेशक़पर गैर भी प्यार से मुझको गले लगाते हैंशराफत हमेशा नज़र झुका कर चलती हैंहम निगाह मिलाते हैं,नज़रे नहीं मिलाते हैंये मुझ पे ऊपर वाले की इनायत हैं “दीपक ”वो खुद मिट जाते जो...

गुरुवार, 3 जून 2010

राष्ट्रवादी..............(गजल)......................श्यामल सुमन

तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा क झुठलाना।एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको तुम लूटो उतना।सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।तुलसी भी ऐसा ही कह गए और तर्क सिखाऊँ कितना।।पहले "मैं" हूँ राष्ट्र...

बुधवार, 2 जून 2010

लोग...................... {कविता}................ सन्तोष कुमार "प्यासा"

आखिर किस सभ्यता का बीज बो रहे हैं लोग अपनी ही गलतियों पर आज रो रहे हैं लोग हर तरफ फैली है झूठ और फरेब की आग फिर भी अंजान बने सो रहे है लोग दौलत की आरजू में यूं मशगूल हैं सब झूठी शान के लिए खुद को खो रहे हैं लोग जाति, धर्म और मजहब के नाम पर लहू का दाग लहू से धो रहे हैं लोग ऋषि मुनियों के इस पाक जमीं पर क्या थे और क्या हो रहे है ...

मंगलवार, 1 जून 2010

सच हुआ सपना ....(लेख)..........मोनिका गुप्ता

सपने वो नही जो सोते समय देखे जाए ... सपने वो हैं जो हमे सोने ही ना दें ...कुछ ऐसा ही सपना लिए हरियाणा के पानीपत का कनिक गुप्ता अपनी +2 की पढाई के साथ साथ आईआईटी और एआईईईई की पढाई मे जुटा हुआ था. +2 मे तो 89.4% लिए पर असली इंतजार दूसरे रिजल्ट का था और वो दिन भी आ गया जब रिजल्ट आना था. कनिक की खुशी का कोई ठिकाना ही नही रहा जब उसने आईआईटी मे पूरे भारत मे 659 रैंक हासिल की और एआईईईई मे पूरे हरियाणा मे प्रथम आया .अपनी सफलता का पूरा श्रेय वो भगवान...