हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

बुधवार, 31 मार्च 2010

'इत्तेफाक' एक प्रेम कहानी ........................अनिलकांत जी

ऐसा नहीं था कि जो हो रहा था मैं इन सब से बेखबर था....लेकिन शायद मैं अपने वजूद की तलाश में था....मैं खुद की तलाश में था....और इसी तलाश में कब उससे टकरा गया पता ही नहीं चला....ये भी एक अजीब इत्तेफाक है कि उसका और मेरा मिलना भी एक इत्तेफाक से हुआ.....ये इत्तेफाक भी बड़े अजीब होते हैं....कभी कभी जिंदगी के मायने ही बदल देते हैं किताबों में डूबे रहना मेरा शौक भी था और सच कहूं तो मेरी कमजोरी कह लें या एकमात्र सहारा....या तो किताबें मुझे तलाशती या मैं...

गजल .............भूतनाथ

अरे चला भी जा तू,मुझे ना तबाह कर !!मुझे देख इस कदर,तू यूँ ना हंसा कर !!कोई टिक ना सका,मेरे रस्ते में आकर !!वफ़ा यहाँ फालतू है,जफा कर जफा कर !!तू प्यार चाहता है ??,मेरे पास बैठा कर !! तुझे सुकून मिलेगा,इधर को आया कर !!दुनिया बदल रही है,गाफिल तू भी बदल !!(२) प्यार की इन्तेहाँ उरियां हो जैसे इक नदिया दरिया हो !! इक पल में फुर्र हो जाती है उम्र गोया उड़ती चिडिया हो !!तुझसे क्या-क्या मांगता हूँ तेरे आगे अल्ला गिरिया हो !!मैं तो चाहता ही हूँ कि मुझसे हर इक ही इंसान बढ़िया हो !!सुख-दुःख गोया ऐसे भईया गले में हीरों...

मंगलवार, 30 मार्च 2010

पति - पत्नी .........................

अहा ! मन में बिखरी खुशियाँ,अहा ! दिल में खिलती कलियाँ .आज यौवना का परिणय है,अपने सपनों में तन्मय है .लेकर भाव पूर्ण समर्पण,करना है यह तन मन अर्पण .पल्लव मन गुंजारित हर्षित,लज्जा नारी सुलभ समर्पित .मृदु-क्रीड़ा, आलिंगन, चुंबन,रोम रोम में भरते कंपन .अधीर हृदय की प्रणय पुकार,उष्ण स्पर्श की मधु झंकार .पुष्प सुवासित महका जीवन,सात रंग से बहका जीवन .किलकारी से खिला संसार,खुशियों का न पारावार .जग जीवन ने डाला भार,कर्तव्यों का बोझ अपार .मीत की मन में प्रीत अथाह,देखे लेकिन कैसे राह .अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,भटका मन है बृहत आकाश .++++++++++++++++++मन में...

रविवार, 28 मार्च 2010

वर्त्तमान कविता के परिदृश्य में अगीत काव्य व उसकी संभावनाएं.... (( डा श्याम गुप्त ))

काव्य रचना के प्राय: तीन उद्देश्य होते हैं --आत्म रंजनार्थ, सामयिक कविता ( जन रंजनार्थ ) व सोद्देश्य कविता सोद्देश्य कविता ही वास्तविक व कालजयी साहित्य होता है इसी के साथ यः भी सत्य है कि यदि उपरोक्त सभी प्रकार के काव्य यदि व्यापक सामाजिक सरोकार व समाधान युक्त हैं तो सभी कविता सोद्देश्य होजाती है हिन्दी कविता जगत में उत्पन्न होती जारही इसी इसी शून्यता के हित 'अगीत' का जन्म हुआ यदि साहित्य के वर्त्तमान परिदृश्य पर एक गहन दृष्टि डाली जाय तो आज हिन्दी साहित्याकाश में अगीत का एक विस्तृत फलक दृश्यमान होता है आज अगीत कविता व कवि न ...

गुरुवार, 25 मार्च 2010

सीख मिल गई - (लोककथा)

किसी गरीब आदमी का अपने गाँव के एक बड़े धनी आदमी से झगड़ा हो गया। उस अमीर आदमी ने गरीब को बहुत ही ज्यादा परेशान कर रखा था। गरीब आदमी को लोकतन्त्र पर बहुत विश्वास था। इसी विश्वास के आधार पर गरीब आदमी ने अदालत के सामने गुहार लगाई। इसका परिणाम यह हुआ कि धनी आदमी के ऊपर मुकदमा चालू हो गया। गरीब और अमीर दोनों को समय-समय पर अदालत में हाजिर होना पड़ता था। चूँकि गरीब आदमी के पास इतना धन नहीं था कि वह कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा सकता। उसको इसे बहुत ही निराशा हुई। उसे लगा कि धनी आदमी अपने धन के बल पर लगातार उसको परेशान करवा रहा है।नियमतः फिर एक दिन अदालत में...

रविवार, 14 मार्च 2010

राहों के रंग-------[ ग़ज़ल]--------डाo श्याम गुप्त

राहों के रंग न जी सके कोई ज़िंदगी नहीं|यूहीं चलते जाना दोस्त कोई ज़िंदगी नहीं |कुछ पल तो रुक के देख ले,क्या क्या है राह में ,यूही राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं।चलने का कुछ तो अर्थ हो कोई मुकाम हो,चलने के लिए चलना कोई ज़िंदगी नहीं।कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव, यदि राह में न हों ,उस राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं ।ज़िंदा दिली से ज़िंदगी को जीना चाहिए,तय रोते सफ़र करना कोई ज़िंदगी नहीं।इस दौरे भागम भाग में सिज़दे में इश्क के,कुछ पल झुके तो इससे बढ़कर बंदगी नहीं।कुछ पल ठहर हर मोड़ पर खुशियाँ तू ढूढ़ ले,उन पल से बढ़कर 'श्याम कोइ ज़िंदगी नहीं...

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

अब तो संभल जाओ--------[कविता]----------संतोष कुमार

ये जुल्म अत्याचार बैमानी और दहशतें क्या होगीं कभी कम ?देख कर जिन्हें हो जाती है इंसानियत की आँखे नमअश्लिलताऔर अराजकता को सहते रहते जैसे कोई मूक बाधिर बेशर्म इन्सान और ईमान तो आज कल बाजार में खिलौने की तरह बिकते हैंकागज के चंद टुकड़े हैं इनका धर्म जाती धर्म और मजहब के नाम पर दंगे होते रहते क्या मिटेगा कभी ये झूठा भ्रम ?मै "हिन्दू" तू "मुसलमान" तू "सिख" मै "इसाई" राजनैतिक और मजहबी संस्थाओं ने हमारे दिलो दिमाग में भर दिया है ये वहम भारत की सभ्यता और संस्कृति अब मिट सी रही है क्या अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचा पाएंगें हम आज की फिल्में खुलेआम कर...

बुधवार, 10 मार्च 2010

मुश्किलें आती रही------[गजल]------- पुरु मालव

मुश्किलें आती रही, हादिसे बढ़ते गये ।मंज़ि़लों की राह में, क़ाफ़िले बढ़ते गये ।दरमियाँ थी दूरियाँ, दिल मगर नज़दीक़ थेपास ज्यूँ-ज्यूँ आये हम, फ़ासले बढ़ते गये ।राहरवों का होंसला, टूटता देखा नहींग़रचे दौराने-सफ़र, हादिसे बढ़ते गये ।साथ रह कर भी बहम हो न पाई ग़ुफ़्तग़ूख़ामशी के दम ब दम, सिलसिले बढ़ते गये ।हम थे मंज़िल के क़रीब, और सफ़र आसान थायक-ब-यक तूफ़ां उठा, वस्वसे बढ़ते गये ।किस्सा-ए-ग़म से मेरे कुछ न आँच आई कभीमेरे दुख और उनके 'पुरु' क़हक़हे बढ़ते गये...

मंगलवार, 9 मार्च 2010

नारी सब जग तेरी छाया ---------[पद ]------डाo श्याम गुप्त

नारी सब जग तेरी छाया |सारे जग का प्रेम औ ममता तेरे मन ही समाया |तेरी प्रीति की रीति ही तो है जग की छाया माया |ममता रूपी माँ के पग -तल सारा जगत सुहाया |प्रेम की सुन्दर नीति बनी तो जग में प्यार बसाया |भगिनी ,पुत्री विविध रूप बन, जग संसार रचाया |आदि- शक्ति,सरस्वति, गौरी, लक्ष्मी रूप सजाया |राधा बन कान्हा को नचाये,, सारा जगत नचाया |श्याम' कामिनी सखी प्रिया प्रेयसि बन मन भरमाया...

सोमवार, 8 मार्च 2010

"रचना" अपरम्‍पार

रचनाओ के भरमार मे, रचना अपरम्‍पार। हे देवि अब जागो, करो नारी विरोधी का संहार। ये लड़का नारी को, जींस पहनने नही देता। लिख रचनाओ के जरिये ये, रचना की ऐसी तैसी करता।। हे देवि तुम अब उतरो, जींस पहन के ही उतर। न मिले जींस तो देवि, तुम बरमूडा मे ही उतरो।। -  प्रमेन्द्र ...

रविवार, 7 मार्च 2010

आपत्ति - [प्रतीक माहेश्वरी]

ऋषि फ़ोन पर बात कर रहा था, अपनी गर्लफ्रेंड, प्रीती से.. प्रीती उसे कह रही थी कि वो सुबह जल्दी उठा करे और इसके फायदे और निशाचर होने के नुक्सान बता रही थी.. ऋषि पूरे तन्मयता के साथ सुन रहा था.. आधे घंटे तक सुना.. उनके इस रिश्ते के बारे में ऋषि की माँ को पता था और उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी.. वो प्रीती को पसंद करती थी... शाम को ऋषि ने माँ को बताया कि प्रीती ने कहा है कि सुबह जल्दी उठूं, तो कल से वो जल्दी उठेगा... माँ ने सोचा, अच्छा है.. कम से कम इस रिश्ते से इसमें कुछ सुधार तो हो रहा है.. खुश हुई.. कहा - अगर जल्दी उठने की अच्छी आदत डाल ही रहे हो...

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

जाने हिन्दू से हूँ या मुसलमान का------[कविता]------शामिख फ़राज़

जाने हिन्दू से हूँ या मुसलमान का क्या मज़हब मेरा मैं किस ईमान का ज्यादा कुछ मालूम नहीं खुद के बारे में बस भेस लिए हूँ इक इंसान का उसके घरों का मज़हब यह समझाया मुझे मस्जिद अल्लाह की है मंदिर भगवान का ...

गुरुवार, 4 मार्च 2010

पति - पत्नी -----------[गीत]---- कवि कुलवंत सिंह

अहा ! मन में बिखरी खुशियाँ,अहा ! दिल में खिलती कलियाँ .आज यौवना का परिणय है,अपने सपनों में तन्मय है . लेकर भाव पूर्ण समर्पण,करना है यह तन मन अर्पण .पल्लव मन गुंजारित हर्षित,लज्जा नारी सुलभ समर्पित . मृदु-क्रीड़ा, आलिंगन, चुंबन,रोम रोम में भरते कंपन .अधीर हृदय की प्रणय पुकार,उष्ण स्पर्श की मधु झंकार . पुष्प सुवासित महका जीवन,सात रंग से बहका जीवन .किलकारी से खिला संसार,खुशियों का न पारावार . जग जीवन ने डाला भार,कर्तव्यों का बोझ अपार .मीत की मन में प्रीत अथाह,देखे लेकिन कैसे राह . अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,भटका मन है बृहत आकाश . ++++++++++++++++++ मन...

बुधवार, 3 मार्च 2010

नारी मन की राह---------[कविता]-------नीलिमा गर्ग

राहउत्ताल तरंगों को देखकरनही मिलतीसागर की गहराई की थाहशांत नजरों को देखकरनही मिलतीनारी मन की राहटुकडों में जीती जिन्दगीपत्नी ,प्रेमिका ,मां ,अपना अक्स निहारतीकितनी है तनहासूरज से धुप चुराकरसबकी राहें रोशन करतीअपने उदास अंधेरों कोमन की तहों में रखतीसरल सहज रूप को देखकरनही मिलतीनारी मन की ...

मंगलवार, 2 मार्च 2010

गजल अनमोल रहा हूँ....-------[गजल]-------मृत्युंजय साधक

गजलअनमोल रहा हूँ......हैदिल की बात तुझसे मगर खोल रहा हूँमैंचुप्पियों में आज बहुत बोल रहा हूँसांसोंमें मुझे तुझसे जो एक रोज मिली थीवोखुश्बूयें हवाओं में अब घोल रहा हूँअबतेरी हिचकियों ने भी ये बात कही हैमैंतेरी याद साथ लिये डोल रहा हूँसोनेकी और न चांदी की मैं बात करुंगामैंदिल की ही तराजू पे दिल तोल रहा हूँचाहोतो मुहब्बत से मुझे मुफ्त ही ले लोवैसेतो शुरु से ही मैं अनमोल रहा ...