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रविवार, 31 जनवरी 2010

कविता प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त --- रौद्र -रूद्र [कविता]--प्रताप सिंह

प्रशस्त शस्त शैल मध्य चिर विविक्त कन्दराशिला प्रगल्भ पुष्ट, व्याघ्र चर्म था बिछा हुआअनादि आदि देव थे समाधि में रमे हुएसती वियोग का अथाह दाह प्राण में लियेविरक्त, भक्त, सृष्टि के सभी क्रिया कलाप सेहरे त्रिलोक-ताप जो, जले विछोह ताप सेसमाधि साध कर रहे विषाद की विवेचनाविदीर्ण जीर्ण प्राण की बनी सुत्राण साधनाललाट चन्द्र मंद आज छिन्न भिन्न चन्द्रिकाकराल व्याल पीटते कपाल खोह भित्तिकाप्रदाह सिक्त डोलती मिटा तरंग गंग कागणादि आदि घूमते अतेज, तेज भंग थाउधर विनाश में लगा असुर नरेश "तारका"अदभ्र शक्ति, तेज, ताप बाहु का अतुल्य थामिला जो दिव्य-वर बना अमर्त्य,...

शनिवार, 30 जनवरी 2010

एक प्रेम कहानी ऐसी भी [कहानी]---अनिल कान्त

रात लौट आई लेकर फिर से वही ख्वाबकई बरस पहले सुला आया था जिसे देकर थपथपीकमबख्त रात को भी अब हम से बैर हो चला है अक्सर कहानी शुरू होती है प्रारंभ से...बिलकुल शुरुआत से...लेकिन इसमें ऐसा नहीं...बिलकुल भी नहीं...ये शुरू होती है अंत से...जी हाँ दी एंड से...कहानी का नहीं...उनके प्यार का...हाँ वहाँ से जहाँ से उनका प्यार ख़त्म होता है...उनकी आखिरी मुलाकात के साथ...जब प्रेरणा और अभिमन्यु आखिरी बार मिलते हैं...प्रेरणा की शादी के साथ..और फिर 5 साल बाद.....एक छोटा सा स्टेशन है...गाडी रूकती है...स्टेशन सुनसान है...अभिमन्यु ट्रेन से उतरता है...एक परिवार और उतरा...

आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल (आलेख )- प्रमेन्द्र प्रताप सिंह

आज महात्‍मा गांधी की पुण्‍यतिथि है, सर्वप्रथम श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। कल दैनिक जागरण मे साबरमती के संत गीत के सम्‍बन्‍ध मे एक लेख था और आज के संस्‍करण मे उसी से सम्‍बन्‍ध चर्चा पढ़ने को मिली। महात्मा गांधी के सम्मान में गाए जाने वाले गीत..दे दी आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.. आज के समय मे कितना उचित है यह जानना जरूरी है ?महात्‍मा गांधी जी ने देश की आजादी मे अहम योगदान दिया इसे अस्‍वीकार करना असम्‍भव है पर यह गीत...

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

हिन्दी साहित्य मंच की कविता प्रतियोगिता की विजेता कविता "प्रतीक्षा - शिविर" ..............गरिमा सिंह

नाम- गरिमा सिंहआपका जन्म बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले में २५ फरवरी सन १९८६ को हुआ । आपने स्नातक और परास्नातक की शिक्षा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय , दरभंगा से प्राप्त की । वर्तमान में आप इसी विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में शोधरत हैं ।आपका पालन-पोषण आपके नाना और नानी जी ने किया । आप बापू को अपना आदर्श मानते हुए समाजसेवा में रूचि रखती हैं । आपको हिन्दी साहित्य से गहरा लगाव बचपन से ही रहा है ।संपर्कः योगेश्वर सिंह चन्द्र-योग सदन , ताजपुर रोड...

स्वर्ग-नर्क के बँटवारे की समस्या - व्यंग्य

स्वर्ग-नर्क के बँटवारे की समस्या -------------------------------------------- महाराज कुछ चिन्ता की मुद्रा में बैठे थे। सिर हाथ के हवाले था और हाथ कोहनी के सहारे पैर पर टिका था। दूसरे हाथ से सिर को रह-रह कर सहलाने का उपक्रम भी किया जा रहा था। तभी महाराज के एकान्त और चिन्तनीय अवस्था में ऋषि कुमार ने अपनी पसंदीदा ‘नारायण, नारायण’ की रिंगटोन को गाते हुए प्रवेश किया। ऋषि कुमार के आगमन पर महाराज ने ज्यादा गौर नहीं फरमाया। अपने चेहरे का कोण थोड़ा सा घुमा कर ऋषि कुमार के चेहरे पर मोड़ा और पूर्ववत अपनी पुरानी मुद्रा में लौट आये। ऋषि कुमार कुछ समझ ही...

मृत्यु....

ये कैसी अनजानी सी आहट आई है ;मेरे आसपास .....ये कौन नितांत अजनबी आया है मेरे द्वारे ... मुझसे मिलने,  मेरे जीवन की , इस सूनी संध्या में ;ये कौन आया है …. अरे ..तुम हो मित्र ;मैं तो तुम्हे भूल ही गया था, जीवन की आपाधापी में  !!! आओ प्रिय , आओ !!!मेरे ह्रदय के द्वार पधारो, मेरी मृत्यु...आओ स्वागत है तुम्हारा !!! लेकिन ; मैं तुम्हे बताना चाहूँगा कि,  मैंने कभी प्रतीक्षा नहीं की तुम्हारी ;न ही कभी तुम्हे देखना चाहा है ! लेकिन सच तो ये है कि ,तुम्हारे आलिंगन से मधुर कुछ नहीं तुम्हारे आगोश के जेरे-साया ही  ;ये ज़िन्दगी तमाम...

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

“कुहरा” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

आस-पास है बहुत अंधेरा, देखो हुआ सवेरा! सूरज छुट्टी मना रहा है, कुहरा कुल्फी जमा रहा है, गरमी ने मुँह फेरा! देखो हुआ सवेरा! भूरा-भूरा नील गगन है, गीला धरती का आँगन है, कम्बल बना बसेरा! देखो हुआ सवेरा! मूँगफली के भाव...

क्योंकि यहाँ संस्कृति, मर्यादा एवं परम्पराओं का कोई डर नहीं है----(मिथिलेश दुबे)

समाज में वेश्या की मौजूदगी एक ऐसा चिरन्तन सवाल है जिससे हर समाज, हर युग में अपने-अपने ढंग से जूझता रहा है। वेश्या को कभी लोगों ने सभ्यता की जरूरत बताया, कभी कलंक बताया, कभी परिवार की किलेबंदी का बाई-प्रोडक्ट कहा और सभी सभ्य-सफेदपोश दुनिया का गटर जो ‘उनकी’ काम-कल्पनाओं और कुंठाओं के कीचड़ को दूर अँधेरे में ले जाकर डंप कर देता है। और, इधर वेश्याओं को एक सामान्य कर्मचारी का दर्जा दिलाए जाने की कवायद भी शुरू है। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ है कि समाज अपनी पूरी इच्छाशक्ति के साथ उन्मूलन के लिए कटिबद्ध हो खड़ा हो जाए; तमाम तरह के उत्पीड़न-दमन और शोषण का शिकार...

बुधवार, 27 जनवरी 2010

अवतरण ---- (डा श्याम गुप्त )

यह कंचन सा रूप तुम्हारा,निखर उठा सुरसरि धारा में,जैसे सोनपरी सी कोई ,हुई अवतरित सहसा जल में,अथवा पद वंदन को उतरा ;स्वयं इंदु ही गंगा- जल में...

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

गर्व है उन पर राष्ट्र को

"साखो से टूट जायें, वो पत्ते नहीं है हम,आंधी से कह दो कि , औकात में रहा करे "कुछ ऐसा ही जज्बा है भारत के वीर सपूतों का । जिन्होंने भारत माता की रक्षा के लिए अपनी अन्तिम सांस तक अदम्य साहस शक्ति और वीरता का परिचय देते सभी खतरों से डट कर सामना किया । भारतीय गणतंत्र के सभी नागरिकों को गर्व है भारत के इन सपूतों पर । इन वीरो नें भारत माता के विरुद्ध उठने वाली किसी भी साजिश को साकार रुप नहीं लेने दिया ।वीरो को समर्पित ये रचना -------गर्व है उन पर राष्ट्र कोजो आज प्राप्त हैं वीरगति कोगूंजती है तालियां नाम पर उनकेआखें छलकती हैं साहस पर उनकेंक्या जोश था...

रविवार, 24 जनवरी 2010

बसंत --- (डा श्याम गुप्त )

गायें कोयलिया तोता मैना बतकही करें ,कोपलें लजाईं , कली कली शरमा रही |झूमें नव पल्लव, चहक रहे खग वृन्द ,आम्र बृक्ष बौर आये, ऋतु हरषा रही|नव कलियों पै हैं, भ्रमर दल गूँज रहे,घूंघट उघार कलियाँ भी मुस्कुरा रहीं |झांकें अवगुंठन से, नयनों के बाण छोड़ ,विहंस विहंस , वे मधुप को लुभा रहीं ||सर फूले सरसिज, विविध विविध रंग,मधुर मुखर भृंग, बहु स्वर गारहे |चक्रवाक वक् जल कुक्कुट ओ कलहंस ,करें कलगान, प्रात गान हैं सुना रहे |मोर औ मराल,लावा, तीतर चकोर बोलें,वंदी जन मनहुं, मदन गुण गा रहे |मदमाते गज बाजि ऊँट, वन गाँव डोलें,पदचर यूथ ले, मनोज चले आरहे ||पर्वत...

शनिवार, 23 जनवरी 2010

झूठा सच बनाम समाजशास्त्र---[कहानी ] ---"अनिल कान्त जी"

मास्टर जी कक्षा में ब्लैक बोर्ड के सामने हाथ में डंडा पकड़े हुए किसी चुनाव में दिए जाने वाले भाषण के समय मंत्री की तरह दहाड़ रहे हैं और ख़ुद को शेर से कम नहीं समझते हुए पूँछ रहे है कि बताओ "कि सतहत्तर, अठहत्तर और उनहत्तर में से कौन सी संख्या बड़ी है ।" सब बच्चों को ऐसे सांप सूंघ गया जैसे कि जिला अधिकारी की बैठक में भाग लेने वाले नीचे के अधिकारी और बाबुओं को सूंघ जाता है.मास्टर जी फिर से दहाड़ते हैं कि "क्यों खाने के वक्त तो ये मुंह बड़ी जल्दी खुल जाता है ? सबेरे सबेरे आ जाते हो अपनी अपनी नाँद भर भर के और अब देखो तो किसी का मुँह नहीं खुल रहा है ।"...

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

अंर्तद्वंद....[कविता]......संदीप मिश्रा जी

आज कल जो भी दिखता है परेशान दिखता है,वक्त ऐसा है बस इंसान ही नहीं दिखता है।जहां देखो बस ऐतबार नहीं दिखता है,इंसान कहता है बस प्यार नहीं मिलता है।मालिक को मजदूर दिखता है, मजबूरी नहीं,मजदूर को परिवार दिखता है पर प्यार नहीं मिलता है।गांवों से लेकर शहरों तक इंकार ही दिखता है,इकरार चाहिए तो वही अपना परिवार दिखता है।जहां देखता हूं बस हर इंसान बेकरार दिखता है,अकसर हर आदमी बस यही कहता है कि सब कुछ बिकता है।...

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

काव्य की एक विधा "अगीत" के नवीन छंद ’लयबद्ध अगीत[रचना]----डा श्याम गुप्त

(ये प्रेम-अगीत, अतुकांत काव्य की एक विधा "अगीत" के नवीन छंद ’लयबद्ध अगीत’ में निबद्ध हैं) (१)गीत तुम्हारे मैंने गाये,अश्रु नयन में भर-भर आये,याद तुम्हारी घिर-घिर आई;गीत नहीं बन पाये मेरे।अब तो तेरी ही सरगम पर,मेरे गीत ढला करते हैं;मेरे ही रस,छंद,भाव सब ,मुझसे ही होगये पराये। (२)जब-जब तेरे आंसू छलके,सींच लिया था मन का उपवन;मेरे आंसू तेरे मन के,कोने को भी भिगो न पाये ।रीत गयी नयनों की गगरी,तार नहीं जुड पाये मन के ;पर आवाज मुझे देदेना,जब भी आंसू छलकें तेरे। (३)श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था,तेरे गीत सज़ा मेरा मन;प्रियतम तेरी विरह-पीर...

बुधवार, 20 जनवरी 2010

बसंत की फुहार में..................फागुन की बयार में [कविता ] - नीशू तिवारी

बसंत की फुहार में,फागुन की बयान में,आम के बौरों की सुगंध,दूर -दूर तक फैली है,कोयल की कूकें,मधुरता घोलती हैंखेतों में लहलहातीगेंहूँ की बालियां,औरसरसो के फूलों पर,मडराती मक्खियां,गुनगुनी धूप में आनंदित हैं।पंछियों की चहचहाहट,कलियों की किलकिलाहट,भौंरों की गुनगुनाहट सेप्रकृति रंग चली है,हवाएं मचल रही हैं,घटाएं बदल रही है ,प्यार बरस रहा है चारों तरफ,बसंत की फुहार में,फागुन की बयार म...

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

आशुतोष जी की दो रचनाएं " स्वपनः एक उधेड़बुन " और " पैबंद "

संक्षिप्त परिचयः- कवि ' आशुतोष ओझा जी 'आपका जन्म भृगु मुनि की तपोभूमि और राजा बलि की कर्मभूमि बलिया ( उत्तर प्रदेश ) में १ सितंबर सन १९८३ को हुआ । आपकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई । स्नातक की शिक्षा जिले के सतीश चंद्र डिग्री में प्राप्त की । तत्पश्चात आपने देश की राजधानी से पत्रकारिता में स्नात्तकोत्तर किया।पत्रकारिता की शुरूआत आकाशवाणी में कैपुअल एनांउसर से हुई । आपने राष्ट्रीय समाचार पर लोकमत के जरिये अखबार में कदम रखा । २००७...

सोमवार, 18 जनवरी 2010

तुम बिना महफ़िल सजाना क्या सही है ----(निर्मला कपिला)

बेवज़ह बातों ही बातों में सुनाना क्या सही हैभूला-बिसरा याद अफसाना दिलाना क्या सही हैकुछ न कुछ तो काम लें संजींदगी से हम ए जानमपल ही पल में रूठ जाना और मनाना क्या सही हैमुस्करा ऐसे कि जैसे मुस्कराती हैं बहारेंचार दिन की ज़िन्दगी घुट कर बिताना क्या सही हैख्वाब में आकर मुझे आवाज़ कोई दे रहा हैबेरुखी दिखला के उसका दिल दुखाना क्या सही हैतुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द साथीछेड़ कर सारी खरोचें दिल दुखाना क्या सही हैअब बड़े अनजान बनते हो हमारी ज़िन्दगी सेफूल जैसी ज़िन्दगी को यूँ सताना क्या सही हैज़िन्दगी का बांकपन खो सा गया जाने कहाँ...

शनिवार, 16 जनवरी 2010

ये हक है मेरा

बहुत कुछ बदल जाने के बाद भी ,आज न जाने क्यूँ तुम्हारी यादें वैसी ही हैं ,जैसे की पहले हुआ करती थी ,मुझे पता है कि तुमसे कह नहीं सकता कुछ भी ,बता नहीं सकता अपनी बातों को ,पर फिर भी खुद को ही अच्छा लगता है सोचना ये ,जिसे तुमने आकर्षण कहा,दोस्ती कहा या कभी प्यार का नाम दिया ,उनमें से कोई रिश्ता आज कायम नहीं ।मैं सोचता हूँ सारी पुरानी बातें ,जिसमें केवल मैं होता था और तुम होती थी ,जो अब झूठी लगती हैं ,एक धोखा लगती हैं ,ये सब सोच के दर्द सा होता पर भी ,ये दिल है कि तुमको ही याद करता हैं ,खामोश रात में बंद आखें तुमको ही खोजती हैं ,फिर दिन के उजाले में...