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सोमवार, 31 अगस्त 2009

मलाईदार-मलाई ( व्यंग्य )

जब से मनमोहनी सरकार ने दोबार से होश संभालन शुरु किया, तभी से समाचार पत्रों में मलाईदार विभाग बडी ही चर्चा का विषय रहा है।जनता तो मनमोहन सिंह की मोह-मा्या में फंस गई लेकिन सरकारी बैसाखियां हैं कि मलईदार मंत्रालयों के दरिया में डुबकी लगाने की तैयारी में जुट गई थी।नतीजा सामने है कि मनमोहन की मोहनी सूरत पर मुस्कान आने से पहले ही गायब हो गई और मंत्रियों की घोषणा वे खुले मन से नहीं कर पाऐ।पिछली बार जब सरकार बनाई थी तो कभी लेफ्ट गुर्राता था तो कभी राइट.....। बडी मुश्किल से संसदीय कुनबे की संभाल पूरे पाँच साल तक की जा सकी...?इसबार जनता ने कूछ दमदारी से...

शनिवार, 29 अगस्त 2009

विनाशकारी लहरें -

जब लहरों से टकराये पत्थरवो पत्थर भी पल में बिखर जाता हैरेत बनके वो कण-कण से पत्थरसमन्दर में जाके वो मिल जाता हैजब लहरों से टकराये पत्थरखेवईयां चलाए बस्तियों कोबस्तियों से मिलाए बस्तियों कोजब समन्दर की लहरें बदल जाती हैंउजाड़ देती वो कितने बस्तियों कोजब लहरों से टकराये पत्थरहै कुदरत का सारा करिश्मालगा है लोगों का मजमाआज लहरों ने ऐसा कहर ढाया हैदिया है सबको इसका सदमाजब लहरों से टकराये पत्थरलड़ रहे हैं भाई सब अपनेबनाया है सबको जिसे रब नेधमनियों में बहता एक सा हैफिर बतलाया भेद हममें किसनेजब लेहरों से टकराये पत्थर(नरेन्द्र कुमार)...

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

" निबंध प्रतियोगिता सूचना " हिन्दी दिवस पर लिखें निबंध और जीतें ५०० के इनाम

हिन्दी साहित्य मंच हिन्दी साहित्य को बढ़ावा देने हतु नियमित अन्तराल पर कविता प्रतियोगिता का आयोजन करता रहा है । हिन्दी साहित्य मंच इस बार हिन्दी दिवस को ध्यान में रखते हुए एक निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है । निबंध प्रतियोगिता का विषय है - " हिन्दी साहित्य का बचाव कैसे ? " । निबंध ५०० से अधिक शब्दों का नहीं होना चाहिए । हिन्दी फाण्ट यूनिकोड या क्रूर्तिदेव में ही होना चाहिए अन्यथा स्वीकार नहीं किया जायेगा । निबंध प्रतियोगिता हेतु आप अपनी प्रविष्टियां इस अंतरजाल पते पर भेंजें- hindisahityamanch@gmail.com. प्रतियोगिता की अन्तिम तिथि है...

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

"प्लेटफार्म पर भटकता बचपन"

उसके पापा की साइकिल मरम्मत की दुकान थी, आमदनी ज्यादा नही थी, सो पापा ने उसे बनारसी साङियो की एक फैक्टरी मे काम करने भेजा ,तब वह महज ८-९ साल के था।छोटा होने की वजह से हाथो की पकङ मजबूत नही थी, नतीजन साङी मे दाग छुट गया , इस बात पर गुस्साये ठेकेदार ने उस की पिटाई की। वह पापा के पास जा पहुचा ,पर पापा ने उस की बात नही सूनि और उन्होने भी उस की पिटाई की, फिर उसे जबरजस्ती उसी ठेकेदार के पास पहुचा दिया गया ,ठेकेदार ने उसे दोबारा पिटा , पर अब वह घर नही गया वह सिधा जा पहुचा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन ।यहा से शुरु होती है उसके आगे की कहानी जब वह स्टेशनपहुचा तब...

हिन्दी साहित्य मंच " द्वितीय कविता प्रतियोगिता " सूचना

हिन्दी साहित्य मंच "द्वितीय कविता प्रतियोगिता " सितंबर " माह से शुरू हो रही है । इस कविता प्रतियोगिता के लिए किसी विषय का निर्धारण नहीं किया गया है अतः साहित्यप्रेमी स्वइच्छा से किसी भी विषय पर अपनी रचना भेज सकते हैं । रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है । आपकी रचना हमें अगस्त माह के अन्तिम दिन तक मिल जानी चाहिए । इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी ।आप अपनी रचना हमें " यूनिकोड या क्रूर्तिदेव " फांट में ही भेंजें । आप सभी से यह अनुरोध है कि मात्र एक ही रचना हमें कविता प्रतियोगिता हेतु भेजें । प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर आने वाली रचना...

बुधवार, 26 अगस्त 2009

बादलों में चांद छिपता

बादलों में चांद छिपता है, निकलता है , कभी अपना चेहरा दिखाता है , कभी ढ़क लेता है , उसकी रोशनी कम होती जाती है फिर अचानक वही रोशनी एक सिरे से दूसरे सिरे तक तेज होती जाती है । मैं इस लुका छिपी के खेल को देखता रहता हूँ देर तक, जाने क्यूँ बादलों से चांद का छिपना - छिपाना अच्छा लग रहा है , खामोश रात में आकाश की तरफ देखना , मन को भा रहा है , उस चांद में झांकते हुए न जाने क्यूँ तुम्हारा नूर नजर आ रहा है । ऐसे में तुम्हारी कमी का एहसास बार - बार हो रहा है । तुम्हारी यादें चांद ताजा कर रहा है, मैं तुमको भूलने की कोशिश करके भी...

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

" राजनीति साहित्य जगत की "- नरेन्द्र कुमार

राजनीतिज्ञो की राजनीति देखीधर्म, सम्प्रदाय में राजनीति दिखीजाति, भाषा से बंटे लोग देखेदेखा भाई-भतीजावाद का हर वो चेहरापर साहित्यकारों में भी राजनीति होगीइसकी कभी परिकल्पना नहीं कि थी मैंनेसब दिखा हंस और पाखी के प्रतिवाद मेंउस ज्ञान पीठ पुस्कार सेजिसे समृद्ध ज्ञानत्व वालें लोगो को दिया जाता हैआलोचक रचनाकारों के तेवरों ने भीदिखाया राजनीति का चेहरादिखाया कैसे एक साहित्यकारसाहित्य के क्षेत्र में एक छत्रराज करने को लालायित रहता हैअपनी ही पत्रिका और लेखनी कोसर्वोच्च ठहराने की जुगत करता हैइस क्रम में एक-दूसरे पर आक्षेपकरने से भी नहीं चूकताआदतें...

शनिवार, 22 अगस्त 2009

"बिन पानी इंसान कहा "- नरेन्द्र कुमार

कहीं छांव नहीं सभी धूप लगेआज पांव में भी गर्मी खूब लगेकही जलता बदन पसीना बहेहर डगर पे अब प्यास बढ़ेसतह से वृक्ष वीरान हुयेखेती की जमीं शमशान हुईपानी की सतह भी द्घटती गईआबादी जहां की बढ़ती ही गईगर्मी की तपन जब खूब बढ़ेगीसूखा सारा हर देश बनेगापेड़ सतह से जब मिट जायेगाइंसान की आबादी खुद-ब-खुद द्घट जायगीवृक्ष लगा तू धरती बचाधरती पे है सारा इंसान बसाजब पेड़ नहीं पानी भी नहींबिन पानी फिर इंसान कहां...

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

"मौत का तांडव " - नरेद्र कुमार

छिपे-छिपाए चकमा देकर,असला बारूद भरकरआ गये फिल्मी नगरी के भीतरदेखा इंसानी चेहरों कोमासूम भी दिखें, उम्र दराज जिंदगियां भी थीपर शायद दरिंदगी छुपी थी सीने मेंउनके जहन में था व्य्‌हसियानापनकुछ आगे पीछे सोचे बगैरमचा दिया कोहराम, बजा दी तड़-तड़ की आवाजेंबिछादी लाशे धरती परक्या बच्चें, बूढे और जवानक्या देशी व विदेशी, चुन-चुन कर निशान बनायालाल स्याही से, पट गया धरती का आंगनकुछ हौसले दिखे, दिलेरी का मंजर दिखाजो निहत्थे थे पर जुनून थाटकरा गए राई मानो पहाड़ सेखुद की परवाह किए बगैरशिकस्त दिया खुद भी खाईवीरता से जान गवाई, बचे खुचे दहशतगर्दआग बढ गए, ताज को कब्जे...

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

"कुंवारी बेटी का बाप" - अवनीश तिवारी

बेटी के जन्मदिन के शाम,मेरे आस की मोमबत्तियां बुझती हैं,उसकी बढ़ती उम्र के चढ़ते दिन मुझे,नजदीक आ रहे निवृत्ति की याद दिलाते हैं,बरस का अन्तिम दिन उसके मन में प्रश्नऔर मेरे माथे पर चिंता की रेखा छोड़ जाता हैबेटी के साँवले तस्वीर पर बार बार हाथ फेरता हूँ,शायद कुछ रंग निखर आए,उसके नौकरी के आवेदन पत्र को बार बार पढता हूँ,शायद कहीं कोई नियुक्ति हो जाए,पंडितों से उसकी जन्म कुण्डली बार-बार दिखवाता हूँ,शायद कभी भाग्य खुल जाएहर इतवार वर की खोज में,पूरे शहर दौड़ लगा आता हूँ,भाग्य से नाराज़, झुकी निगाहों का खाली चेहरा ले घर को लौट जाता हूँ,नवयुवक के मूल्यांकन...

बुधवार, 19 अगस्त 2009

" है ये कहानी वीरो की कहानी " - नरेन्द्र निर्मल

ये कहानी वीरो की कहानीक्या कहता सुन ये मन है, क्यों सबकी आंखें नम हैं,कुछ तो खोया है, सब ने रोया हैदर्द है ये दिल की है कहानी, वीरों ने दी है कुर्बानीहै ये कहानी, वीरों की कहानी-२फक्र है हमको नाज यहीं है, अपने देश का ताज यही है,सबकी इसने लाज बचा दी, मेरे गीतों का साज यही हैहंस हंस के ये जान लुटा दे, लुटा दे अपनी जवानीहै ये कहानी वीरों की कहानी-२इसको तोड़ों उसको फोड़ो, नेताओं ने राग है छेड़ाजाति क्षेत्रा मजहब में तोड़ो, ताकि वोट मिले और थोड़ाशहीदों को भी वोट में तोले, कड़वी इनकी जुबानीहै ये कहानी वीरों की कहानी-२आम आदमी भीख मांगता, और नेता को देखोस्वीस...