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रविवार, 28 जून 2009

व्यंग्य कविता /कुत्ता

कुत्ता---------तथा कथित नेता जी के भाषण नेएक कुत्ते के आराम मेंखलल पहूँचायाकुत्ते को नहीं भायामंच पर जा पहुँचाऔर न केवल नेता जी को काटाउनके कपड़े भी फाड आया .इसपर पूरा कुत्ता समाजउसपर गुर्राया-मूर्ख तूने यह क्याकर डाला .?तुझे मालूम हैवह नेता हैउसका कुछ नहीं बिगडेगालेकिन तुझेचौदह इंजेक्शन लगवाने पडेगेंनहीं तो तूकिसी विदेशी अस्पताल मेंनेता की मौत मरेगाहिन्दुस्तानी सरकारी अस्पतालों मेंइंसानों की तरहबेरहमी से मरने को भी तरसेगा .तुझे मालूम हैनेता ऐसा जीव हैजो बडी- बडी योजना तकहजम कर जाता हैइसका काटाआई.ए.एस. अफसर भीनहीं बच पाता हैऔर तूने उसे ही काट लियाइससेउसके...

शनिवार, 27 जून 2009

अन्तरमन......[एक कविता ]

सोचता हूँ ,क्या है अन्तरमन ?औरक्या है बाह्यमन?मन तो है-केवल मन,चंचल है,उच्छल है,एकाग्र है,गंभीर है।मेरा मन ,तेरा मन ......

गुरुवार, 25 जून 2009

देवों के सिर ,विजयध्वज फ़हराऊँगा - कविता प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर चुनी गयी कविता ( डा0 तारा सिंह )

संक्षिप्त परिचय नाम - डा० (श्रीमती) तारा सिंह शिक्षा/मानदोपाधि-- साहित्य रत्न , राष्ट्रभाषा विद्यालंकार, विद्या वाचस्पति, विद्या वारिधि, साहित्य महोपाध्याय, कवि कुलाचार्य, भारती रत्न, वर्ल्ड लाइफ़ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड, वोमेन आफ़ दी ईयर अवार्ड,राजीव गांधी अवार्ड अभिरुचि – कविता, ग़ज़ल, सिनेमा गीत,कहानी,उपन्यास आदि लेखन संप्रति – संस्थापक अध्यक्ष स्वर्ग विभा (www.swargvibha.tk), कार्यकारी अध्यक्ष, साहित्यिक,सांस्कृतिक,कलासंगम...

बुधवार, 24 जून 2009

भूख

भूखमानव तन से लिपटी सिमटीएक ऐसी लड़ीजो जोड़ती हैजिन्दगी में अनेक कड़ी।कहीं भूख है रोटी की,तो कहीं दौलत की,किसी को भूख शोहरत की,तो किसी को ताकत की,कत्ल हुआ किसी का भूख में,लुट गया मानव तन भी भूख में।भूख ने दिये अंजाम हमेशाअच्छे और बुरे,मिली हमें आजादीभूखे रहकरआजादी की भूख में,पर..लुटा गये शांति अपनीचन्द सिक्कों की भूख में।कब खत्म होगी भूखइस मानव मन की?शायद आज...शायद कल...याशायद कभी नहीं?...

शनिवार, 20 जून 2009

कोई अपना न निकला

समझा था सेहरा फूलों का जिसे,वो ताज काँटों भरा निकला।चला था जिस राह पर फूलों की,वो सफर काँटों भरा निकला।सहारा दिया समझ कर बेबस,थामा था जिन हाथों को हमने।घोंपने को पीठ में हमारी,उन्हीं हाथों में खंजर छिपा निकला।मिलेगा साथ हर मोड़ पर हमें,सोच कर चले थे अनजानी राहें।गिर पड़े एक ठोकर से जिसकी,वो गिराने वाला हमारा अपना निकला।मतलब की इस दुनिया में,शिकायत गैरों से नहीं है हमें।समझा था जिस-जिस को अपना,वो हर शख्स ही बेगाना निकला।चार दिन की इस जिन्दगानी में,साथ किसी का रहता नहीं है।पर ये दुखड़ा किससे कहें कि,हमसे मुँह फेर हमारा साया निकला।चलना है ताउम्र हमें...

रविवार, 14 जून 2009

डर आतंक का

आतंक के उत्पात से,हिंसा की हिंसात्मक राहों सेथक-हार कर निकला,शांति की खोज में,प्रेम, अहिंसा की चाह में।भटकता रहा दरबदर,पर ये न आये नजर,सोचा....कहीं इनकोकत्ल न कर दिया गया हो?पर मन...ये व्याकुल मनन माना ये अखण्ड सत्य।जो स्वयं सत्य हैवही असत्य है।थक-हार करएक निर्जन कोने में बैठ करमन को टटोला,तो....किसी सूने कोने मेंप्रेम, अहिंसा, शांति को पाया।गाँधी के तीन बंदरों की तरहएक साथ थे,घायल पड़े थे,कराह रहे थे।किसी तरहमेरे आने का सबब पूछा।मैंने उन्हेंअपना मन्तव्य बताया,हर तरह से,हर तरफ सेमची हिंसा कोशांत करने के लिएसाथ चलने को कहा,पर....भय से पीले पड़ेचेहरों...

शनिवार, 13 जून 2009

व्यंग्य /ठीकरा

ठीकराभारतीय राजनीति में आजकल एक शब्द बहुत ही प्रचलित होता जारहा है ,‘ठीकरा’ ।अब ‘ठीकरा’ बेचारा एसी निर्जीव तुच्छ वस्तु है जिसे हर कोई एक दूसरे के सिर पर ही फोडने के लिऐ आमादा रहता है। मजे की बात ये है कि ठीकरे को भी कभी कोई गुरेज नहीं , आपकी मर्जी आए जब चाहे जहाँ फोडो....आप चाहे अपने पडोसी के सिर पर फोडे या फिर दूसरे मोहल्ले किसी भी अनजान व्यक्ति के सिर पर फोडे...। बस शर्त ये ही है कि बाद की स्थिति का मुकाबला करने की आपमें क्षमता होनी चाहिऐ।‘ठीकरे’ की नियती तो फूटना ही है कहीं भी फूटेगा....लेकिन फूटेगा जरूर...!हालाँकि...

रुबर

नया नंगल पँजाब के आनँद भवन क्ल्ब के प्राँगण मे 11 -6-2009 को अक्षर चेतना मँच नया नँगल की ओर से एक साहित्यक समारोह का आयोजन किया गया1 इस समारोह का केन्द्र -बिन्दु पँजाब गज़लकारी के नामवर हस्ताक्षर श्री जसविन्दर् जी से इलाके के सहित्यकारोँ व बुद्धीजीवियोँ से रु -ब- -रु करवाना था1 समारोह की शुरुआत मे सभी उपस्थित जनोंने प्रसिद्ध रँगकर्मी स्व- श्री हबीब तनबीर एवं तीन हास्य कवियों स्व- श्र ओमप्राकाश् आदित्य- दिल्ली नीरज पुरी -दिल्ली एव स्व- श्री लाड् सिह गुर्जर -भोपल के आसामयिक निधन पर अफसोस प्रकट किया एवं दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धा सुमन...

शुक्रवार, 12 जून 2009

कलम की यात्रा

थक गई कलम,शब्द अर्थहीन हो गए,सूख गई स्याही,रचनाएं भी अब निष्प्रभावी हो गईं।हो गया क्या यह सब?क्यों हो गया यह सब?समय की गति के आगे,हर मंजर संज्ञा-शून्य हो गया है अब।याद आता है अभी भीइस भूलने वाली अवस्था में,जब थाम कर हाथों में कलम,पहली बार रची थी कुछ पंक्तियाँ,सजाई थी कागज पर एक कविता।बाल मन, बाल सुलभ उड़ान कोमिल गए थे कल्पनाओं के पर,कभी सूरज, कभी चन्दाउतर रहे थे आसमान से जमीं पर।कभी तोता, मैना सजते,कभी उड़ती थीं रंगीन तितलियाँकागज के जंगल पर।कभी सरदी, कभी गरमीतो कभी बारिश की रिमझिम होती रहती,ऊंचे पहाडों, हरे-भरे मैदानों में दौड़ते रहते,उड़ते रहते...

गुरुवार, 11 जून 2009

प्रथम कविता प्रतियोगिता की सर्वश्रष्ठ कविता - पुकार " कवि कुलवंत सिंह जी की "

हिन्दी साहित्य मंच की प्रथम कविता प्रतियोगिता के सफल समापन के पश्चात द्वितीय कविता प्रतियोगिता की घोषणा जल्द ही की जायेगी ।प्रथम कविता प्रतियोगिता में साहित्य प्रेमियों ने जिस तरह से बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । वह प्रशंसनीय है । इस कविता प्रतियोगिता में हमें उम्मीद से अधिक रचनाएं प्रप्त हुई । परन्तु दुखद बात यह रही कि कई प्रतिभागियों ने अपनी रचना हिन्दी फांट में नहीं भेजी । जिससे वह रचनाएं अस्वीकार कर दी गयी । अतः आप सभी से अनुरोध है कि अपनी रचना हिन्दी फांट में ही भेजें ।प्रथम कविता प्रतियोगिता में आयी सभी कविताओं का प्रकाशन हिन्दी साहित्य मंच पर...