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बुधवार, 29 अप्रैल 2009

कविता - व्यंग्य

नेताराजनीति के भंवर मे सब नेता बन गये हैंइस देश के निर्माता अभिनेता बन गये हैंमहिलाओं की आज़ादी के भाषण कूटते हैंचौरास्ते पर उनकी इज्जत लूटते हैंगरीबों की भलाई के लिये क्या नही करतेउनके नाम की ग्रांट से अपनी जेबें भरतेभ्रष्टाचार खत्म करने की कसमे खाते हैंबेईमानी की गंगा मे दिन रात नहाते हैंजो सच्चा इनसान हो उससे तो कतरातेहैंवो काम कराने जाये तो उसे डराते हैकाम कराना हो इनसे तो नेतगिरी दिखलाओविपक्षी की निन्दा करो इस नेता के गुण ...

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

गजल

गज़ल्अपना इतिहास पुराना भूल गयेलोग विरासत का खज़ाना भूल गयेरिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरेलोग बसंतों का जमाना भूल गयेदौलत की अँधी दौड मे लोगमानवता निभाना भूल गयेभूल गये गरिमा आज़ादी कीशहीदों का कर्ज़ चुकाना भूल गयेजो धर्म के ठेकेदार बनेखुद धर्म निभाना भूल गयेपत्नी की आँ चल मे ऐसे उलझेमाँ का पता ठिकाना भूल गयेपरयावरण पर भाशण देतेपर पेड लगाना भूल गयेभूल गये सब प्यार का मतलवलोग हंसना हसाना भूल ...

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

माँ की पुकार

माँ की पुकारबेटी जब से ससुराल गयी हैमेरी सुध ना किसी ने जानी हदिल मै उसकी यादें हैंऔर आँखों मे पानी हैसुनसान है घर का कोना कोनाजहाँ गूंजते थे उसके कहकहेना घर की रोनक वही रहीना दिवरों के रंग ही वो रहेपापा तेरे इक कोने मेचुपचाप से बैठे रहते हैंयाद तुझे कर कर के बेटीउनकी आँख से आँसू बहते हैंसमाज बनाने वलों नेये कैसी रीत बनाई हैमाँ के जिगर के टुकडों कीदुनिया दूर बसाई हैदिल करता है तुझे बुलाऊँपर तेरी भी है मजबूरीपर तेरे बिन प्यारी बेटीतेरी माँ है बडी अधूरीजब भी घर के पिछवडे सेगाडी की सीटी सुनती हूँइक झूठी सी आशा मे बेटीतेरे पाँव की आहट सुनती हूँआओ जीते...

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

नदी की तरह से

नदी की तरहबहते रहे तोसागर से मिलेंगे,थम कर रहे तोजलाशय बनेंगे,हो सकता है किआबो-हवा कालेकर साथ,खिले किसी दिनजलाशय में कमल,हो जायेगाजलाशय का रूपसुहावन, विमल,पर कब तक?गर्म तपती धूप जैसेहालातों सेउड़ जायेगीकमल कीगुलाबी रंगत,वीरान हो जायेगातब फिरजलाशय,मगर.....नदिया बह रही है,बहती रहेगी,हरा-भराकरती रहेगीऔर एकाकार हो जायेगीसागर के स...

लब्ध प्रतिष्ठित कवि मदन ‘विरक्त’

लब्ध प्रतिष्ठित कवि मदन ‘विरक्त’ अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारः 15 सितम्बर, 1970, प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय कृषि पत्र प्रदर्शनी (इफ्जा) में कृषि पत्र के श्रेष्ठ सम्पादन के लिए सम्मानित।श्रेष्ठ सहकारी सम्पादक सम्मानः भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ द्वारा 10 जनवरी 1986 को सम्मानित।हिन्दी सेवी सम्मानः दिल्ली प्रादेशिकहिन्दी साहित्य सम्मेलन, महामना मण्डल द्वारा 26 दिसम्बर 1976 को सम्मानित। राजधानी पत्रकार मंच द्वारा नई दिल्ली में हिन्दी सेवी सम्मान 14 सितम्बर 2008...

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

नया जीवन

टकटकी बाँधकर देखती है जैसे कुछ कहना हो और फुर्र हो जाती है तुरन्त फिर लौटती है चोंच में तिनके लिए अब तो कदमों के पास आकर बैठने लगी है आज उसके घोंसले में दिखे दो छोटे-छोटे अंडे कुर्सी पर बैठा रहता हूँ पता नहीं कहाँ से आकर कुर्सी के हत्थे पर बैठ जाती है शायद कुछ कहना चाहती है फिर फुर्र से उड़कर घोंसले में चली जाती है सुबह नींद खुलती है चूँ...चूँ ...चूँ..... की आवाज यानी दो नये जीवनों का आरंभ खिड़कियाँ खोलता हूँ उसकी...

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

माँ की फरियाद.

ब्च्चो मै हूं तुम्हारी दादी मेरा नाम है आजादी, अपनी फरियाद सुनाने आई हूं,मैं तुम्हें जगाने आई हूं,जब देशभक्त परवानों ने आजादी के दिवानों ने,दुशमन से मुझे छुडाया था तो अपना लहू बहाया था,मुझे अपने बेटों को समर्पित कर वो चले गये,कुछ ही वर्शों में मेरे बेटे भी बदल गये,देश को बोटी बोटी कर खा रहे हैं, मुझे पतिता बना रहे हैं,अपना हाल सुनाने आई हूं, मै तुम्हें जगाने आई हूंबडे बडे नेता अधिकारी बन गये हैं,सिर से पाँव तक भृ्श्टाचार में सन गये हैं,संविधान की धज्जियां उडा रहे हैं,स्वयं हित भाई से भाई लडा रहे हैं,वीरों की कुर्वानी भूल गये हैं,आदर्श इतिहास...

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

राजीव थेप्रा की कलम से-

............दोस्तों एक कलमकार का अपनी कलम छोड़ कर किसी भी तरह का दूसरा हथियार थामना बस इस बात का परिचायक है कि अब पीडा बहुत गहराती जा रही है और उसे मिटाने के तमाम उपाय ख़त्म....हम करें तो क्या करें...हम लिख रहें हैं....लिखते ही जा रहे हैं....और उससे कुछ बदलता हुआ सा नहीं दिखाई पड़ता....और तब भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता तो हमारी संवेदना में अवश्य ही कहीं कोई कमी है... मगर जिसे वाकई दर्द हो रहा है....और कलम वाकई कुछ नहीं कर पा रही....तो उसे धिक्कारना तो और भी बड़ा पाप है....दोस्तों जिसके गम में हम शरीक नहीं हो सकते....और जिसके गम को हम समझना भी नहीं...

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

गज़ल

जब से मै और तुम हम न रहेतब से दोस्ती मे वो दम ना रह जीते रहे ज़िन्दगी को जाना नहींटेढे थे रस्ते, जमे कदम ना रहे तकरार से फासले नहीं मिटतेजब भी शिकवे हुये हम हम ना रहेरातें सहम गयी दिन बहक गये हैंपलकें सूनी हैं आँसू भी नम ना रहेफिरते हैं सजा के होठों पे हंसीतन्हाई मे अश्क भी कम ना रहेइक जिस्म दो जान हुआ करते थेवो दोस्त अब हमदम ना ...

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

कृष्ण कुमार यादव कृत काव्य संग्रह ‘अभिलाषा’ पर समीक्षा गोष्ठी

साहित्य अकादमी म0प्र0 संस्कृति परिषद भोपाल के छिन्दवाड़ा पाठक मंच केन्द्र द्वारा गुडविल एकाउंटस अकादमी और म0प्र0 आंचलिक साहित्यकार परिषद के संयुक्त तत्वाधान में युवा कवि एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव के काव्य संग्रह ‘अभिलाषा’ पर 16 अप्रैल, 2009 को छिन्दवाड़ा के मानसरोवर काम्पलेक्स में समीक्षा गोष्ठी आयोजित की गयी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ0 कौशल किशोर श्रीवास्तव ने कहा कि अभिलाषा काव्य संग्रह का सम्पादन...

कभी तुम आओ तो सही

जगाकर प्यार का एकमीठा एहसास,महका कर मेरी सांस काएक-एक तार,दिल की हर धड़कन तुमझंकृत कर गईं,सजाने को अपना प्यार भरा संसार,......कभी तुम आओ तो सही।बरखा ने सावन में छेड़ी हैरिमझिम फुहार,सात सुरों का संगीत हैसजा रही बहार,हर मंजर लिए है एकअजब सी मदहोशी,सजी है फिजा में एकरुनझुन सी खामोशी,प्रकृति भी है आज सजी हैइंद्रधनुषी रंग में,देखने को मनभावन छटा......कभी तुम आओ तो सही।मौसम के साथ हर रंगबदला है,फिजां का स्वरूपउजला है,चाँद भी है खुश चाँदनीबिखरा कर,फूलों ने सजाई राह खुद कोमहका कर,सजाया है गगन ने झिलमिलसितारों का आँचल,करने को अद्भुत श्रृंगार......कभी तुम...

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

संदूक.......................[एक कविता] - दर्पण शाह" दर्शन"

आज फ़िर ,उस कोने में पड़े,धूल लगे संदूक को,हाथों से झाड़ा, तो,धूल आंखों में चुभ गई।....संदूक का कोई नाम नहीं होता...पर इस संदूक में एक खुरचा सा नाम था ।सफ़ेद पेंट से लिखा।तुम्हारा था या मेरा,पढ़ा नही जाता है अब।खोल के देखा उसे,ऊपर से ही बेतरतीब पड़ी थी ...'ज़िन्दगी'।मुझे याद है.........माँ ने,'उपहार' में दी थी।पहली बार देखी थी,तो लगता था,कितनी छोटी है।पर आज भी ,जब पहन के देखता हूँतो, बड़ी ही लगती है,शायद......कभी फिट आ जाए।नीचे उसके,तह करके सलीके से रखा हुआ है......'बचपन' ।उसकी जेबों में देखा,अब भी,तितलियों के पंक ,कागज़ के रंग,कुछ कंचे ,उलझा...

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

जागरण [लघुकथा]-कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

कुमारेन्द्र सिंह सेंगर - आपका जन्म जनपद-जालौन, उ0प्र0 के नगर उरई में वर्ष 1973 में जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा उरई में तथा उच्च शिक्षा भी उरई में सम्पन्न हुई। लेखन की शुरुआत वर्ष 1882-83 में एक कविता (प्रकाशित) के साथ हुई और तबसे निरंतर लेखन कार्य में लगे हैं। हिन्दी भाषा के प्रति विशेष लगाव ने विज्ञान स्नातक होने के बाद भी हिन्दी साहित्य से परास्नातक और हिन्दी साहित्य में ही पी-एच0डी0 डिग्री प्राप्त की।लेखन कार्य के साथ-साथ पत्रकारिता में भी थोड़ा...

अनसुलझी वो..............[एक कविता ]

मुझमें ढूढ़ती पहचान अपनीबार बार वो ,जान क्या ऐसाथाजिसकी तलाश थी उसको ,अनसुलझे सवाल कोलेकर उलझती जातीकभी मैंने साथदेना चाहा थाउसकी खामोशियों को,उसके अकेलेपन को ,पर वो दूर जाती रहीमुझसे ,अचानक ही एक एहसासपास आता हैबंधन काबेनाम रिश्ते का ,जिसमें दर्द है ,घुटन है ,मजबूरियां है,शर्म है ,तड़प है ,उम्मीद है ।मैं समझते हुए भीनासमझ सालाचार हूँउसके सामनेशायद बयां कर पाऊं कभीउसको अपने आप में...

गज़ल

मेहरबानियों का इज़हार ना करोमहफिल मे यूँ शर्मसार ना करोदोस्त को कुछ भी कहो मगरदोस्ती पर कभी वार ना करोप्यार का मतलव नहीं जानतेतो किसी से इकरार ना करोजो आजमाईश मे ना उतरे खराऐसे दोस्त पर इतबार ना करोजो आदमी को हैवान बना देंखुद मे आदतें शुमार ना करोइन्सान हो तो इन्सानियत निभाओइन्सानों से खाली संसार ना करोकौन रहा है किसी का सदा यहांजाने वाले का इन्तज़ार ना करोमरना पडे वतन पर कभी तोभूल कर भी इन्कार ना करोपाप का फल वो देता है जरूरफिर माफी की गुहार ना ...

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

पति परमेश्वर................[एक कविता] प्रिया प्रियम तिवारी की

तुम पति परमेश्वर हो,तुम्हारे सारे अधिकारमिले हैं, ईश्वर प्रदत्त,तुम मेरे मान सम्मान केरखवाले हो,परजब चाहे मेरे मान सम्मान कोआहत कर सकते हो।परमेश्वर बनकर मिल गया हैतुम्हें अधिकार ,मेरे सम्मान कोकुचलने कामैं तुम्हारी पत्नी हूँ,श्रद्धा और त्याग की मूरतअर्पण करूँ खुद कोतुम्हारे चरणों मेंअपने अरमानों की चिता परपूरे होने दूँ तुम्हारे अरमानतब मैं पत्नी हूँ "आदर्श भारतीय पत्नी...

एहसास ...............[लघु कथा ] निर्मला कपिला जी

एहसास बस मे भीड थी, उसकी नज़र सामनीक सीट पर पडी जिसके कोने मे एक सात आठ साल का बच्चा सिकुड कर बैठा था. साथ ही एक बैग पडा था'बेटे आपके साथ कितने लोग बैठे हैं' शिवा ने ब्च्चे से पूछा जवाब देने के बजाये बच्चा उठ कर खडा हो डरा सा.... कुछ बोला नहीं , वो समझ गया कि लडके के साथ कोई हैउसने एक क्षण सोचा फिर अपनी माँ को किसी और सीट पर बिठा दिया और खाली सीट ना देख कर खुद खडा हो गया ।तभी ड्राईवर ने बस स्टार्ट की तो बच्चा रोने लगा । कन्डक्टर ने सीटी बजाई ,एक महिला भग कर बस मे चढी उस सीट से बैग उठाया और बच्चे को गोद...

हिन्दी साहित्य मंच के नये साथी - कृष्ण कुमार यादव जी [एक परिचय ]

हिन्दी साहित्य मंच ' हिन्दी प्रेमियों का मंच' पर हमारे नये साथी के रूप में जुड़ रहे हैं कृष्ण कुमार यादव जी । एक परिचय इन नये साहित्य मंचीय कवि का प्रस्तुत है । साहित्य में गहरी रूचि और प्रेम रखने वाले मंचीय कविराज " श्री कृष्ण जी " । नाम : कृष्ण कुमार यादव जन्म : 10 अगस्त 1977, तहबरपुर, आजमगढ़ (उ0 प्र0) शिक्षा : एम0 ए0 (राजनीति शास्त्र), इलाहाबाद विश्वविद्यालय विधा : कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, व्यंग्य एवं बाल कविताएं। प्रकाशन : समकालीन हिंदी साहित्य में नया ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सरिता, नवनीत, आजकल, वर्तमान साहित्य, उत्तर प्रदेश,...

रविवार, 12 अप्रैल 2009

गुरू सहाय भटनागर ‘बदनाम’ की एक गजल

याद करते हैतुम्हारी मद भरी आंखों को याद करते है,तुम्हारे प्यार के वादों को याद करते हैं।अकेले होते हैं फिर भी नहीं तन्हा होते,तेरी उन मरमरी बाहों को याद करते हैं।सहारा दे न सकी जिसको तेरी चश्मे करम,अश्क में डूबी निगाहों को याद करते हैं।...

दर्द- [एक गजल ] गार्गी गुप्ता की प्रस्तुति { परिचय एक झलक}

गार्गी गुप्ता , जन्म - ७ अगस्त, जिला एटा (उत्तर प्रदेश) भारतशिक्षा : स्नातक रुचियाँ : नृत्य , लेखन, अभिनय, भाषणपुरुस्कार : भाषण - सीलिंग समस्या , नारी और उसका अस्तित्व के लिए प्रथम पुरस्कार महा विद्यालय स्तर पर नृत्य - मुक्त सांस्कृतिक लिए प्रथम पुरस्कार महा विद्यालय स्तर पर कविता - मेरे भारत , माता पिता , तू लड़की है के लिए पुरस्कार महा विद्यालय स्तर पर अभिनय - हड़ताल के लिए पुरस्कार महा विद्यालय स्तर पर निबंध लेखन - के लिए पुरस्कार महा विद्यालय स्तर पसंदीदा कवि : निराला , अज्ञे , महादेवी, हरिबंश राय बच्चन , दिनकर , बिहारी...