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गुरुवार, 31 मार्च 2011

बेटी को भी जन्मने दो


मचल रही तो दिल में धड़कन,

उसको जीवन पाने दो।
होंठों की कोमल मुस्कानें,
गुलशन में खिल जाने दो।

नन्हा सा, मासूम सा कोमल,
गुलशन में है फूल खिला।
पल्लवित-पुष्पित होकर उसको,
जहाँ सुगन्धित करने दो।

खेले, कूदे, झूमे, नाचे,
चह भी घर के आँगन में।
चितवन की चंचलता में,
स्वर्णिम सपने सजने दो।

मानो उसको बेटों जैसा,
आखिर वह भी बेटी है।
आने वाली मधुरम सृश्टि,
उसके आँचल में पलने दो।

धोखा है यह वंश-वृद्धि का,
जो बेटों से चलनी है।
वंश-वृद्धि के ही धोखे में,
बेटी को भी जन्मने दो।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

भारत विश्वकप जीतेगा...........पाकिस्तानी खिलाडियों पर जासूस छोडे जा चुके

बाला साहेब ठाकरे की तात्कालिक प्रतिक्रिया प्रधानमन्त्री पर व्यंग कर रही है कि अगर पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री यूसुफ रजा गिलानी को भारत और पाकिस्तान के मध्य मोहाली मे ३० को खेले जाने वाले सेमीफायनल के लिए आमन्त्रित कर सकते है तो २६/११ मुम्बई बम बिस्फोट के अभियुक्त कसाब और जनवरी २००३ संसद पर हुए आतंकी हमले के दोसी अफजल गुरु को भी बुलाना गलत नही होगा ................ठाकरे शायद यह भूल रहे हैं कि किसी भी समस्या का हाल बातचीत से ही हो सकता है ...वर्ना मुम्बई मे केवल मराठी ही रह्ते .......जंग के दम पर राज्य और भूमी जीती जा सकती है दिल नही ....इसलिए तोडफोड से आगे सोचिए ठाकरे साहब ........
यूं टर्न. .......
भारत विश्वकप जीतेगा ...........रिकी पोंटिंग (कप्तान आस्ट्रेलिया)..... हाँ वो इसलिए क्युंकी
पाकिस्तानी खिलाडियों पर जासूस छोडे जा चुके हैं............ .........

सोमवार, 28 मार्च 2011

क्या सच में तुम हो ??----मिथिलेश



देखता लोगों को
करते हुए अर्पित
फूल और माला
दूध और मेवा
और न जाने क्या-क्या
हाँ तब जगती है एक उम्मीद
कि
शायद तुम हो
पर जैसे ही लांघता हूँ चौखट तुम्हारा
तार-तार हो जाता है विश्वास मेरा
टूट जाता है समर्पण तुम्हारे प्रति
जब देखता हूँ कंकाल सी काया वाली
उस औरत को
जिसके स्तनों को मुँह लगाये
उसका बच्चा कर रहा था नाकाम कोशिश
अपनी क्षुधा मिटाने को
हाँ उसी चौखट के बाहर
लंबी कतारे भूखे और नंगो की
अंधे और लगड़ों की.....
वह जो अजन्मी
खोलती आंखे कि इससे पहले
दूर कहीं सूनसान में
दफना दिया जाता है उसे
फिर भी खामोश हो तुम.....
एक अबोध जो थी अंजान
इस दुनिया दारी से
उसे कुछ वहशी दरिंदे
रौंद देते है
कर देते हैं टुकड़े- टुकड़े
अपने वासना के तले
करते हैं हनन मानवता
और तुम्हारे विश्वास का........
तब अनवरत उठती वह चीत्कार
खून क़ी वे निर्दोष छींटे
करुणा से भरी वह ममता
जानना चाहती है
क्या सच में तुम हो ??????

रविवार, 27 मार्च 2011

चंद सवालात {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

ए महबूब ! फिर कर रहा, ये नादाँ, वही पुरानी बात तुझसे
कौंधते है जो ज़हेन में, पूंछने है वही चंद सवालात तुझसे
कब पहुंचेगी अर्सा-ए-दहर की तपिश में ठण्ढक
अभी क्या देर है, वस्ल-ए-सब को, आखिर कब होगी मुलाकात तुझसे
क्यूँ भटकता दर-बदर आरजू-ए-काफिला दिल का
कब पाएगी ये बेजाँ रूह, नूर-ए-हयात तुझसे
तेरे इश्क की मीरास है, फिर क्यूँ माजूर हूँ मै
भला कब पाएगी बुझती शमाँ, दरख्शां सबात तुझसे
****************************************
***********
(अर्सा-ए-दहर= संसार का मैदान, वस्ल-ए-सब= मिलन की शाम, नूर-ए-हयात= जीवन का उजाला, मीरास= धरोहर ,  दरख्शां=चमकने वाला, चमकीला )

शनिवार, 19 मार्च 2011

होली की हार्दिक बधाई ............हिंदी साहित्य मंच


मन में उमंग
मिल गए रंग में रंग
सब मिल रहे गले
सब प्रेम से भरे

बुधवार, 16 मार्च 2011

जीवन {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

जीवन क्या है ?
सुख का आभाव
या दुःख की छाँव
या के प्रारब्ध के हाँथ की कठपुतली
हर क्षण अपने इशारो
पर नचाती है
किसके हाथ में है
जीवन की डोर ?
**************************
जीवन उसी का है
जो इसे समझ सके
तेरे हांथों में है
तेरे जीवन की डोर
ये नहीं महज
प्रारब्ध का मेल,
ये
है
सहज-पर-कठिन खेल
भाग्य की सृष्टि
निज कर्मो से होती है
जीवन तेरे हांथों में
जैसी चाहे वैसी बना
हाँ, जीवन एक खेल है
"प्यासा" हार जीत का शिकवा
मत कर
खेले जा, खेले जा
खेले जा..................................

बुधवार, 9 मार्च 2011

लहर {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"



तुम्हे याद है हम दोनों पहले यहाँ आते थे

घंटो रेत पर बैठ कर,

एक दूसरे की बातों में खो जाते थे

तुम घुटनों तक उतर जाती थी सागर के पानी में

और मै किनारे खड़ा तुम्हे देखता था

पहले तो तुम बहुत चंचल थी

लेकिन अब क्यों हो गई हो

समुद्र की गहराई की तरह शांत

और मै बेकल जैसे समुद्र में उठती लहर...

शनिवार, 5 मार्च 2011

मेरा जीवन तो शबनम है----(गजल)---श्यामल सुमन

सूरत पे आँखें हरदम है
तेरे भीतर कितना गम है

निकलो घर से, बाहर देखो
प्रायः सबकी आँखें नम है

समझ सका दुनिया को जितना
मेरा गम कितनों से कम है

जितना तेज धधकता सूरज
दुनिया में उतना ही तम है

मुझको चाहत नहीं मलय की
मेरा जीवन तो शबनम है

सब मिलकर के चोट करोगे?
क्योंकि लोहा अभी गरम है

होश में सारे परिवर्तन हों
सुमन के भीतर में संयम है

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

क्षणिकाएं--------(वीनस)

निपटा जल्दी जल्दी
दुनियाभर के किस्से
घर- काम की बातें
खिड़की की देहलीज़ पर
रोज़ हाल ए दिल कहते सुनते हैं
मैं और चाँद !
***********

रात सरक सरक के काटें
ख़ामोशियों की राह बांचें
पल पल ढलते जाएँ
फिर भी नित रोज़ आयें
मैं और चाँद !

गुरुवार, 3 मार्च 2011

कैसे बताये हम----------(कविता)---संगीता मोदी "शमा"

कैसे बताये हम प्यार की गहराई को ,
आकर के आँखों में देख लो हमारी,
जो जानना चाहो चाहत की इन्तहा ,
अश्को से हमारे आकर पूछ लो,
तडपता है ये दिल किस तरह तुम्हारे लिए ,
ये मसंद मेरा बता देगा तुम्हे ,
और यकीं जो तुम्हे ना इन पर हो तो ,
दिल पर हाथ रखकर अपने दिल से पूछ लो.

मंगलवार, 1 मार्च 2011

एक बात पूंछू {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"



एक बात पूंछू !

क्या मेरे विचारों से परे

भी कोई वजूद है तुम्हारा?
क्या मुझे भी रखा है तुमने
अपनी स्म्रतियों के
घरौंदे में सहेज कर ?
क्या तुम भी महसूस
करती हो,
सरकती, महकती
हवा में मेरी तड़प...
जैसे मै देखता हूँ
तुम्हारी  चंचलता
उड़ती तितलियों में
बहते बादलों में,
और तुम्हारी मुस्कराहट
खिलते हुए फूल में...
क्या तुम्हे भी खलती है
मेरी कमी ?
क्या तुम्हे भी लगता है ,
सब कुछ होते हुए भी
कुछ अधूरा-अधूरा
जैसे,
फूल है, पर
 खुशबू नहीं
ख़ुशी है पर
हंसी नहीं
चांदनी रात है
पर रोशनी नहीं...
एक बात पूंछू
क्या तुम भी ढूँढती
हो मुझे
गाँव की गलियों
शहर की सड़कों
और हर अजनबी चेहरे में...
कभी मंदिर के बाहर
तो कभी किसी माल के अन्दर...