“उसकी आवाज़ बता देती हैं मैं कहाँ हूँ ग़लत
आओ ! सब मिलकर अपनी जननी के चरण स्पर्श करें और प्रभू से विनती करें कि हे !परम पिता हमे हर जन्म मे इसी माँ की कोख़ से पैदा करना ..हमारा जीवन इसी गोद मे सार्थक हैं. हमारा बचपन इसी ममता का प्यासा हैं और जन्मो -जन्मान्तर तक हम इसी ममत्व का नेह्पान करते रहें ..माँ आप हमारा प्रणाम स्वीकार करो और हमे आशीर्वाद दो .
आज फिर नेह से हाथ सिर पर फेर माँ
हूँ बहुत टूटा हुआ , बिखरा हुआ , घायल निराश
मरू - भूमि में भटके पथिक- सा , लिप्त दुःख में हताश
है प्रेम को प्यासा ह्रदय , व्याकुल स्वाभाव ठिठोल को
अपनत्व को आकुल है मन, जीवन दो म्रदु बोल को .
बोल जिनको सुनकर मेरा , नयन नीर भी मुस्कुराये
आज फिर उस नेह से नाम मेरा टेर माँ .
छोड़ आया मैं बहुत दूर , अपना चंचल , मधुर बचपन
जग की बाधाओं में उलझा, है मेरा अभिशाप यौवन
गोद में तेरी रखे सिर , काल कितना बीत गया
कितने युग से किया नहीं, तेरे इस आँचल में क्रंदन
पीर जब तक बह न जाये, आंसुओं में मन की सारी
तब तक आँचल में छुपा रख, हो जाये कितनी देर माँ .
पीर जो शैशव में देता था मुझे दंड तेरा
सोच अब बातें वही मुस्कुराते हैं अधर
बाद में दुःख से तेरे भी नम नयन हो जाते थे
याद कर बातें वही , अब भर आती मेरी नज़र
उम्र भर हँसता रहे , हर रक्त बिंदु मेरे तन का
इतनी ममता से सरोवर, मुझको कर अबकी बेर माँ