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मंगलवार, 19 जनवरी 2010

आशुतोष जी की दो रचनाएं " स्वपनः एक उधेड़बुन " और " पैबंद "



संक्षिप्त परिचयः-

कवि
' आशुतोष ओझा जी '
आपका जन्म भृगु मुनि की तपोभूमि और राजा बलि की कर्मभूमि बलिया ( उत्तर प्रदेश ) में सितंबर सन १९८३ को हुआ । आपकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई । स्नातक की शिक्षा जिले के सतीश चंद्र डिग्री में प्राप्त की । तत्पश्चात आपने देश की राजधानी से पत्रकारिता में स्नात्तकोत्तर किया।
पत्रकारिता की शुरूआत आकाशवाणी में कैपुअल एनांउसर से हुई । आपने राष्ट्रीय समाचार पर लोकमत के जरिये अखबार में कदम रखा । २००७ में राजस्थान पत्रिका से नई पारी शुरू की । वर्तमान में दिल्ली के समाचार पत्र " आज समाज " में बतौर उपसंपादक कार्यरत हैं।
आपके अनुसार कविताः- "वही है , जिसमें सरोकार है , चाहे वो किसी भी रूप में हो प्रेम , द्वेष , न्याय , अन्याय , विद्रोह, श्रद्धा , देशभक्ति इत्यादि ।।"

संपर्कः श्री जगमोहन मिश्र
बी-३०२, हारमोनी आपर्टमेंट
सेक्टर-२३, द्वारका दिल्ली
मो-०९८७३७९७५९९



आशुतोष जी की दो कविताएं


1-स्वप्नः
एक उधेड़बुन


स्वप्न देखता हूँ
उन्हें बुनता हूँ
कभी - कभी उसी में
उलझ जाता हूँ।
दम घुटता है
जोर से चिल्लाता हूँ।
चारों ओर बहुत शोर है
' मूक ' आवाज दब जाती है
अन्ततः
स्वयं से ' द्वंद' करता हूँ
कभी जीतता हूँ
कभी हारता हूँ
सुख और दुख
दोनों देखे,
सदैव दुख
भारी रहा।
'खुशी आई थी
कुछ समय के लिए
फिर नहीं लौटी।
अब भी इंतजार है
इसलिए
स्वप्न देखता हूँ
उन्हें बुनता हूँ।।



2- पैबंद


उनके दरख्तों को दरकते देख
खुश होता हूँ।
लेकिन
अपने पैबंद छुपाता हूँ।
बलूच और सिंध बन जाय
दिली इच्छा है
लेकिन,
तेलंगाना , बुंदेलखण्ड , गोरखालैण्ड
विदर्भ......के लिए
किसी के मरने
हिंसक आन्दोलन
और
तोड़-फोड़ का
खुद ही, इंतजार करता हूँ।

दरअसल यही
डिप्लोमेसी और डेमोक्रेसी है
विश्व में सबसे बड़ी
इस सम्मान और बोझ को
सहता हूँ,
इसलिए
हर पैबंद छुपाता हूँ।।