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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

नदी की तरह से

नदी की तरह
बहते रहे तो
सागर से मिलेंगे,
थम कर रहे तो
जलाशय बनेंगे,
हो सकता है कि
आबो-हवा का
लेकर साथ,
खिले किसी दिन
जलाशय में कमल,
हो जायेगा
जलाशय का रूप
सुहावन, विमल,
पर कब तक?
गर्म तपती धूप जैसे
हालातों से
उड़ जायेगी
कमल की
गुलाबी रंगत,
वीरान हो जायेगा
तब फिर
जलाशय,
मगर.....
नदिया बह रही है,
बहती रहेगी,
हरा-भरा
करती रहेगी
और एकाकार हो जायेगी
सागर के संग।

लब्ध प्रतिष्ठित कवि मदन ‘विरक्त’


लब्ध प्रतिष्ठित कवि मदन ‘विरक्त’
अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारः 15 सितम्बर, 1970, प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय कृषि पत्र प्रदर्शनी (इफ्जा) में
कृषि पत्र के श्रेष्ठ सम्पादन के लिए सम्मानित।
श्रेष्ठ सहकारी सम्पादक सम्मानः
भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ द्वारा 10 जनवरी 1986 को सम्मानित।
हिन्दी सेवी सम्मानः दिल्ली प्रादेशिकहिन्दी साहित्य सम्मेलन, महामना मण्डल द्वारा
26 दिसम्बर 1976 को सम्मानित।
राजधानी पत्रकार मंच द्वारा नई दिल्ली में हिन्दी सेवी सम्मान
14 सितम्बर 2008 को सम्मानित।
साहित्य-श्री सम्मान से उत्तराखण्ड साहित्य शारदा मंच द्वारा
2007 हिन्दी दिवस पर सम्मानित।
डा. अम्बेडकर मानद उपाधिः भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा
हिमाचल भवन में 8 अगस्त 1987 को
तत्कालीन केन्द्रीय सूचना मन्त्री श्री एच.के.एल. भगत द्वारा सम्मानित।
राष्ट्र नेता स्मृति इफ्जा राष्ट्रीय सम्मान
वर्ष-2008 मध्य प्रदेश के राज्यपाल डा. बलराम जाखड़ द्वारा 14 नवम्बर 2009 को सम्मानित।

वीरों की माता हूँ, वीरों की बहना।

पत्नी उस वीर की हूँ, शस्त्र जिसका गहना।


वीरों की माता के, रूप में जब आती,

गा-गा कर प्यार भरी, लोरियाँ सुनाती,

करती बलिदान पूत, केसरिया पहना।

वीरों की माता हूँ, वीरों की बहना।।


दौज का टीका और राखी के धागे,

भगिनी का प्यार लिए, वीर बढ़े आगे,

सुख-दुख में मुस्काना, धीरज से रहना,

वीरों की माता हूँ, वीरों की बहना।।


मैं वीर नारी हूँ, साहस की बेटी,

मातृ-भूमि रक्षा को, वीर सजा देती,

आकुल अन्तर की पीर, राष्ट्र हेतु सहना।

वीरों की माता हूँ, वीरों की बहना।।


मातृ-भूमि, जन्म-भूमि, राष्ट्र-भूमि मेरी,

कोटि-कोटि वीर पूत, द्वार-द्वार दे री,

जीवन भर मुस्काए, भारत का अंगना।

वीरों की माता हूँ, वीरों की बहना।।

पत्नी उस वीर की हूँ, शस्त्र जिसका गहना।।