विकास हेतु,
संसाधन दोहन की ना समझ होड़ ,
अति शोषण की अंधी दौड़;
प्रकृति का संतुलन देती है बिगाड़,
विकल हो जाते हैं नदी सागर पहाड़,
नियामक व्यवस्था तभी तो करती है यह जुगाड़;
चेतावनी देती है,
सुनामी बनाकर सब कुछ देती है उजाड़ ,
करने को अपना संतुलन ,सुधार
संसाधन दोहन की ना समझ होड़ ,
अति शोषण की अंधी दौड़;
प्रकृति का संतुलन देती है बिगाड़,
विकल हो जाते हैं नदी सागर पहाड़,
नियामक व्यवस्था तभी तो करती है यह जुगाड़;
चेतावनी देती है,
सुनामी बनाकर सब कुछ देती है उजाड़ ,
करने को अपना संतुलन ,सुधार