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गुरुवार, 29 जुलाई 2010

माँ...........................(कविता)..................मोनिका गुप्ता


माँ को है 

विरह वेदना और आभास कसक का 

ठिठुर रही थी वो पर 

कबंल ना किसी ने उडाया 

चिंतित थी वो पर 

मर्म किसी ने ना जाना 

बीमार थी वो पर 

बालो को ना किसी ने सहलाया 

सूई लगी उसे पर 

नम ना हुए किसी के नयना 

चप्पल टूटी उसकी पर 

 मिला ना बाँहो का सहारा 

कहना था बहुत कुछ उसे

पर ना था कोई सुनने वाला 

भूखी थी वो पर 

खिलाया ना किसी ने निवाला 

समय ही तो है उसके पास पर 

उसके लिए समय नही किसी के पास 

क्योंकि 

वो तो माँ है माँ

और 

माँ तो मूरत है  

प्यार की, दुलार की, ममता की ठंडी छावँ की, 

लेकिन 

कही ना कही उसमे भी है 

विरह, वेदना, तडप और आभास कसक का 

शायद माँ को आज भी है इंतजार अपनो की झलक का