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रविवार, 11 जुलाई 2010

तन्हा-तन्हा आसमान क्यूँ है {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

हम खुद से अनजान क्यूँ है
ज़िन्दगी मौत की मेहमान क्यूँ है

जिस जगह लगते थे खुशियों के मेले

आज वहां दहशतें वीरान क्यूँ है

जल उठता था जिनका लहू हमें देख कर

न जाने आज वो हम पर मेहेरबान क्यूँ है

जहाँ सूखा करती थी कभी फसले

वहां लाशों के खलिहान क्यूँ है

कभी गूंजा करती थी घरों में बच्चों की किलकारियां

अब न जाने खुशियों से खाली मकान क्यूँ है

आखिर कौन कर सकता है किसीकी तन्हाई को दूर

सूरज,चाँद और हजारों तारें है मगर

तन्हा-तन्हा आसमान क्यों है....

मकान और घर..............(कविता)...........कीर्तिवर्धन

जिस दिन मकान घर मे बदल जायेगा
सारे शहर का मिजाज़ बदल जायेगा.

जिस दिन चिराग गली मे जल जायेगा

मेरे गावं का अँधेरा छट जायेगा.

आने दो रौशनी तालीम की मेरी बस्ती मे

देखना बस्ती का भी अंदाज़ बदल जाएगा.

रहते हैं जो भाई चारे के साथ गरीबी मे

खुदगर्जी का साया उन पर भी पड़ जाएगा.

दौलत की हबस का असर तो देखना 

तन्हाई का दायरा "कीर्ति" बढ़ता जाएगा.

उड़ जायेगी नींद सियासतदानो की 

जब आदमी इंसान मे बदल जाएगा