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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

ऐ रात की तन्हाईयों, क्यों गुमशुम हो?........... (सत्यम शिवम)


रात की तन्हाईयों,

क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?

एकाकी नभ का हर एक सितारा,
फासलों के गम को झेल लो,


फूलों पे मँडराते भ्रमरों,
कोमल तन से तुम खेल लो।

जी लो जीवन एक पल में सारा,
आँख ना तेरा कभी नम हो।

रात की तन्हाईयों,
क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?

मस्ती की धुन पर थिरक बादल,
बरस कर आसमा तु रो ले,

जल जल कर दीपक का स्व तन,
खुद का अस्तित्व ही खो ले।

हँसता हुआ छोड़े तु जमाना,
मर के भी ना तुझे गम हो।

रात की तन्हाईयों,
क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?

ढ़ाई अक्षर का प्यार तेरा,
निर्मल हो, कोमल हो अक्षय,

जिंदगी गवाँ के भी तु,
कुछ तो कर ले आज संचय।

सिर्फ दो बूँद आँसू बस बहाकर,
प्यार तेरा ना कभी कम हो।

रात की तन्हाईयों,
क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?