हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

बुधवार, 20 मई 2009

रिश्ते [एक कविता ] - निर्झर ' नीर '

लोग अक्सर मुझपे फिकरे कसते हैं
पडा रहता है टूटी खाट मैं
बुन क्यों नही लेता इसे फिर से
कैसे कहूँ क्यों नही बुन लेता ?
सोचता हूँ तो हाथ कांपने लगते है
ये खाट और रिश्ते मुझे एक से लगते हैं !

मैंने अपने हर नए रिश्ते की तरह
कितने शौक से बुना था हर ताना
कितने सुंदर लगते थे नए-नए !

जिंदगी में हर रिश्ता इस ताने जैसा ही हो गया
दोनों का जाने कौन सा ताना कब टूट गया
साथ-साथ रहते हुए भी मुझे पता ना चला
धीरे-धीरे एक-एक कर सारे ताने टूट गए !

रह गए कुछ टूटे रिश्ते और टूटे हुए ख्वाब
टूटी हुई खाट के टूटे हुए तानों की तरह !

उलझ गया हूँ इन टूटे हुए रिस्तो में
मैं अब फिर से नही बुनना चाहता
ना किसी रिश्ते को ना ही इस टूटी खाट को !!

गजल

किन्हीं विरान खन्ढरों में तलाश खुद को
इस आबाद गुलशन में तेरी जरूरत नहीं
जो भूल जाते हैं रास्ता अपनी मंजिल का
उनके बसने की फिर कोई सूरत नहीं
वादा कर के मुकर जाते हैं अक्सर जो
उन में ईमान ढूंढ्ने की जरूरत नहीं
जिस बुत में तलाश है तुझे जिन्दगी की
वो पत्थेर है जज़्बातों की मूरत् नही
सिगरेट समझ जो फूँक देते हैं जज़्बात
उनमें जिन्दा इन्सानों की गरूरत नहीं
जब वज़ूद ही ना रहे तो जिन्दगी की तलाश क्यों
जीकर भी है मरा हुआ मौत ढंढने की जरूरत नही

किन्हीं विरान खन्ढरों में तलाश खुद को
इस आबाद गुलशन में तेरी जरूरत नहीं
जो भूल जाते हैं रास्ता अपनी मंजिल का
उनके बसने की फिर कोई सूरत नहीं
वादा कर के मुकर जाते हैं अक्सर जो
उन में ईमान ढूंढ्ने की जरूरत नहीं
जिस बुत में तलाश है तुझे जिन्दगी की
वो पत्थेर है जज़्बातों की मूरत् नही
सिगरेट समझ जो फूँक देते हैं जज़्बात
उनमें जिन्दा इन्सानों की गरूरत नहीं
जब वज़ूद ही ना रहे तो जिन्दगी की तलाश क्यों
जीकर भी है मरा हुआ मौत ढंढने की जरूरत नही

लैंपपोस्ट [ एक कविता ] -Neeshoo tiwari

सड़क के किनारे का

वो लैम्पपोस्ट,

कितना बेबस लगता है ,

आते-जाते लोगों को ,

चुपचाप देखता है ,

अपनी रोशनी से

करता है रोशन शामों शाहर को,

और

खुद अंधेरा सहता है,

कपकपाती ठंड,

सर्द हवा,

कोहरे की धुंध ,

कुत्ते की भौक,

सोया हुआ इंसान ,

यही साथी हैं उसके,

शांत , निश्चल

पर आत्मविश्वास से ,

भरा हुआ,

खड़ा रहता है वह,

हमेशा,

इंसान की राहों को ,

रोशन करने ,

खुद को जलाकर,

कितना निःस्वार्थ,

निश्कपट,

निरछल

भाव से,

करता है अपना

समर्पण ,

दूसरों के लिए ।।