हमेशा से ही मम्मी और रसोई का नाता रहा है.मैने आज तक पापा को रसोई से पानी का गिलास खुद लेकर पीते नही देखा. पापा सरकारी अफसर हैं इसलिए द्फ्तर के साथ साथ घर पर भी खूब रौब चलता है.
मम्मी सारा दिन घर पर ही रहती हैं.दिन हो या रात सारा समय काम ही काम हाँ भाई... नौकरों से काम लेना कोई आसान काम है क्या, हाँ.... तो मैं ये बता रही थी कि पिछ्ले कुछ दिनो से पापा खाने मे कोई ना कोई नुक्स निकाल रहे थे. इसीलिए मम्मी ने रसोइए की छुट्टी कर के रसोई की कमान खुद सम्भाल ली थी.
पर पापा को इसमे भी तसल्ली नही हुई.नुक्स निकालने का काम चलता रहा.और साथ मे एक बात और जुड गई कि मेरी माता जी खाना ऐसे बनाती.माता जी खाना वैसे बनाती.खैर समय बीतता रहा.
शनिवार को पापा यह कह कर सोए कि कि वो कल सुबह नाश्ते मे बासी पराठा और आलू मैथी ही खाएगे.मम्मी ने बहुत मन से बनाया. पर वो भी पापा को पसंद नही आया.
उसी समय पापा ने एलान कर दिया कि वो दोपहर को खुद ही मटर के चावल बनाएगे. मम्मी के चेहरे पर मुस्कुराहट और मैं हैरान.पापा और खाना.मुझे समझ नही आ रहा था.
दोपहर के एक बजे मम्मी ने जबरदस्ती टी वी पर क्रिक्केट मैच देखते हुए पापा को
उठाया कि भूख लग रही है.खाना बनाओ. मैच बहुत मजेदार चल रहा था .... पापा अनमने भाव से उठे.मम्मी ने चावल पहले ही भीगो दिए थे इस पर पापा ने गुस्सा किया माता जी तो पहले कभी नही भिगोते थे . फिर पापा ने कूकर माँगा.मम्मी के कहने पर कि पतीले मे ज्यादा खिले- खिले बनेगें पर पापा तो पापा ठहरे. जो बोल दिया सो बोल दिया. वैसे आप यह मत समझना कि मैं मम्मी की चमची हूँ. मैं सच बात का ही साथ देती हूँ.फिर पापा ने देसी घी लिया और खूब सारा उसमे डाल दिया ताकि मटर अच्छी तरह भुन जाए इतने मे मैच मे छ्क्का लगा जल्दी जल्दी मैच देखने के चक्कर मे उन्होंने मसाला भी बिना नापे डाल दिया.मैं और मम्मी चुपचाप पापा का काम देखते रहे.मम्मी तो चुपचाप गदॅन हिलाती रही और मै वँहा स्लैब पर बैठी पापा का लाईव टेलिकास्ट देख रही थी. सच. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. उधर पापा ने मैच देखने के चक्कर मे मटर मे भी नुक्स निकालने शुरु कर दिए कि मटर तो मीठी है ही नही चावल कैसे अच्छा बनेगा. मैच मे फिर एक खिलाडी आउट हो गया.तभी दरवाजे पर घंटी बजी.मम्मी बाहर जाने को हुए तो पापा ने मना कर दिया कि पहले मसाला भुनने दो फिर जाना.मै उतर के जाने को हुई तो मुझे भी डाटं पड गई कि बार बार आने जाने से उनका ध्यान हट रहा है.तभी फिर एक खिलाडी आउट हो गया.बाहर फिर से घटीं बजी.उधर पापा से कूकर का ढ्क्कन बन्द ही नही हो रहा था. पापा बोले कि कूकर ही खराब है. मम्मी ने गदॅन मटकाते अगले ही पल उसे बन्द कर दिया. इस पर भी पापा बोलने से नही चूके कि उफ आज कल के ये बरतन और कुरते से हाथ पोंछ कर बैठक मे चले गए.दुबारा घंटी बजने पर मैं बाहर भागी.
अरे. सामने दादी खडी थीं.उन्होने बताया कि शहर आने का एकदम से मन बना और वो आ गई.सुबह ही मटर के चावल बनाए थे.तो वो भी ले आई.
दादी ने पानी पीया ही था कि कूकर की सीटी भी बज गई.पापा ने एलान कर दिया था कि कूकर वो ही खोलेगे.दादी की मौजूदगी मे उसे खोला गया.पर. पर ...यह समझ ही नही आ रहा था कि यह चावल है या खिचडी.मटर के चावलो का पूरी तरह से हलवा बन चुका था.
पापा मैच देखते हुए धनिए की चटनी के साथ मजे से दादी वाले चावल खा रहे थे और हम. हम मटर वाली खिचडी. नाक मुहं बना कर. इसी बीच मे भारत मैच जीत गया.पर पापा खुश होकर बोले कि रात को वो आलू की परौठी बना कर खिलाएगे.यह सुनते ही मैं और मम्मी कान पर हाथ रख कर जोर से चिल्लाए.नही.अब और नही. यह सब देख कर दादी ठहाका लगा कर हँस दी और वो किस्सा सुनाने लगी जब मेरे दादा जी ने पहली और शायद आखिरी बार गुड के चावल बनाए थे ..