हिन्दी साहित्य से लोगों की अरुचि दिनों दिन तेजी से बढ़ती जा रही है। बच्चों को आज साहित्य से वंचित रहना पङता है और कमोवेश जो शिक्षा के माध्यम से दिया जाता है वह ना काफी है। जब कोई युवा पीढी का नागरिक यह पूछता है" कि मैथिलीशरण गुप्त या सुमित्रा नंदन पंत कौन हैं? तो इन राष्ट्रकवियों पर एक सवालिया निशान सा लगता है । कहीं न कहीं साहित्य में महान कवियों को आज भुलाया जा रहा है । जो अपेक्षा आज मीडिया , सरकार व पढ़े लिखे वयक्ति से की जाती है वह उस पर खरे नहीं उतरते हैं । थोड़ा पीछे की बात की जा तो कमलेश्वर जी का निधन हुआ था । देश ने महान साहित्यकार, आलोचक खो दिया था । अलगी सुबह समाचार-पत्र में एक छोटे कालम में समाचार ऐसे प्रकाशित होता है जैसे- गुमशुदगी का विज्ञापन हो । हमारा मीडिया कहीं न कहीं बाजारवाद का शिकार है। वही खबरें दिखाई जाती है जो टीआरपी बढ़ाये । जैसे- राखी सावंत या शिल्पा शेट्टी का चुबंन प्रकरण । वर्ष 2007 में हिन्दी साहित्य के तीन दिग्गज साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन , आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ठर महादेवी वर्मा जी के जन्म के १०० वर्ष पूरे हुए थे । इन तीनों का भव्य और दिव्य शताब्दी वर्ष जितना अपेक्षित रहा उतना ही उपेक्षित रहा । ऐसे में राष्ट्रभाषा के बचाव हेतु हम सभी को कम से कम ऐसे कवियों , साहित्यकारों की उपेक्षा करना किसी भी तरह से सही नहीं है । अभी आने वाले 14 सितंबर को हम सभी हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं परन्तु बाजार इसके लिए उत्साहित न होगा । वह तो वेलेन्टाइन डे जैसे पर्व का इतंजार करता है । जिसमें लाभ हो सके । अन्ततः एक दिवस मात्र से या एक सम्मेलन या एक कालम ही हिन्दी साहित्य को न समेट सकेगा । एक प्रयास स्वयं से करें हिन्दी साहित्य हेतु ।
प्रस्तुति मिथिलेश दुबे