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मंगलवार, 1 मार्च 2011

एक बात पूंछू {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"



एक बात पूंछू !

क्या मेरे विचारों से परे

भी कोई वजूद है तुम्हारा?
क्या मुझे भी रखा है तुमने
अपनी स्म्रतियों के
घरौंदे में सहेज कर ?
क्या तुम भी महसूस
करती हो,
सरकती, महकती
हवा में मेरी तड़प...
जैसे मै देखता हूँ
तुम्हारी  चंचलता
उड़ती तितलियों में
बहते बादलों में,
और तुम्हारी मुस्कराहट
खिलते हुए फूल में...
क्या तुम्हे भी खलती है
मेरी कमी ?
क्या तुम्हे भी लगता है ,
सब कुछ होते हुए भी
कुछ अधूरा-अधूरा
जैसे,
फूल है, पर
 खुशबू नहीं
ख़ुशी है पर
हंसी नहीं
चांदनी रात है
पर रोशनी नहीं...
एक बात पूंछू
क्या तुम भी ढूँढती
हो मुझे
गाँव की गलियों
शहर की सड़कों
और हर अजनबी चेहरे में...
कभी मंदिर के बाहर
तो कभी किसी माल के अन्दर... 

7 comments:

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर !

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

क्या तुम भी महसूस
करती हो,
सरकती, महकती
हवा में मेरी तड़प...
जैसे मै देखता हूँ
तुम्हारी चंचलता
उड़ती तितलियों में
बहते बादलों में,
और तुम्हारी मुस्कराहट
खिलते हुए फूल में...
बहुत ही खूबसूरत...बधाई...

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

sunder kavita

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

भवपूर्ण अभिव्यक्ति

sangeeta modi shamaa ने कहा…

khubsurat abhivyakti