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सोमवार, 10 मई 2010

' इजी मनी-इजी सेक्स' वन नाइट स्टैड़ ' --------------मिथिलेश दुबे

नैतिकता की ढहती दीवारें यौवन का विनाश करने में लगी हैं । मर्यादाओं एवं वर्जनाओं में आई दुष्प्रभाव एवं दरारों के बीच किशोर कुम्हला रहे हैं और युवा विनिष्ट हो रहे हैं जिस सुख और साधन की तलाश में युवा नैतिकता के तडबंध तोड़ रहे हैं, वह उन्हे मनोग्रंथियों एवं शारीरिक अक्षमता के अलावा और कुछ नहीं दे पा रहें हैं । यह सब हो रहा है स्वच्छंद सुख की तलाश में । आज का युवा जिस राह पर बढ़ रहा है , वहाँ स्वच्छंदता का उन्माद तो है , लेकिन सुख का सुकून जरा भी नहीं है , बस अपनी भ्रान्ति एवं भ्रम में जिन्दगी को तहस -नहस करने पर तुला है । युवाओं में यह प्रवृत्ति संक्रामक महामारी की तरह पूरे देश में फैलति जा रही है । बड़े शहरो की तरह अब छोटे शहर एवं कसबे भी इसकी चपेट में आने लगे है ।

अभी पिछले साल की बात है , एक स्कूल के बच्चो नें कांटी पार्टी आयोजित की । उनके द्वारा गढ़ा गया यह कांटी शब्द कांटीनुएशन का लघु रुप है । यह एक बड़े शहर का ऐसा स्कूल है , जिसमें अपने बच्चों के दाखिलें के लिए माँ बाप कुछ भी देंने और कुछ भी करने को तैयार रहते हैं । यह पार्टी ११ वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं नें १२ वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं की विदाई में आयोजित की थी । इन कांटी पार्टियों का चलन अब बड़े शहरो के साथ छोटे शहरों में भी आम हो गया है , इसमें खास बात यह थी कि यह पार्टी एक पब में आयिजित की गई थी । खोजी पत्रकारों का दल जब वहां पहुँचा तो उन्होनें देखा कि अंग्रेजी गानो पर कम से कम २०० नवयुवा कुछ इस कदर झूम रहें थे कि सिगरेट का घना धुआँ भी उनके चेहरे पर गहरी होती जा रही वासना की आकुलता को नहीं छिपा पा रहा था । इस डिस्को पब में ये नवयुवा भड़कीले और उत्तेजित परिधान, लहराते बाल एवं चमकदार मेकअप में आये थे । संगीत के तेज होने के साथ इन जोड़े की हरकते तेज होने के साथ-साथ नैतिक वर्जनाएँ कब और कहाँ खो गयीं पता ही नहीं चला । पत्रकारों के दल ने खबर जुटाने के लिए जब इसकी जाँच पड़ताल की तो पता चला कि स्कूल के अधिकारीयों के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के अभिभावक दोंनो ही इस बात से अनजान थे । इन छात्र-छात्राओं ने अपने साथियों से ५००० हजार रुपये जुटायें थे और पब आरक्षित किया , उसके बाद नैतिकता संस्कृति और यौवन दाव पर लग गया ।

हमेशा की तरह सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है ? जब इन छात्र-छात्राओं से ये पुछा गया तो इनका जवाब चौंकाने वाला था , इनका कहना था कि हमारे अभिभावक हमें पढ़ाई में अच्छा स्कोर करते हुए देखना चाहते हैं, और हम कर भी रहें है , हम पढ़ाई में अच्छे अंक लाते हैं । किसी भी प्रतियोगिता में चायनित हो जांने की क्षमता है हममें । अब यदि हम इसके बाद थोड़ा मनोरंजन कर लेते है तो क्या बुरा है , जो हम करते है , आखिर इसमें बुरा ही क्या है ? युवाओं के इस कथन में झलकती है उनकी भ्रामक मान्यताएँ और अभिभावकों व शिक्षकों की भ्रातिंपूर्ण अपेक्षाएँ । दरअसल समस्या आस्थाओं , मान्यताओं एवं मूल्यों की विकृति की है । जीवन में आगे निकलने के चक्कर में गलत मानद़डो की स्थापना की जा रही है । चितंन विकृति हो तो चरित्र की विकृति व व्यवहार का पतन नहीं रोका जा सकता । स्कूली छात्र-छात्राओं की भाँति नौकरी-पेशा युवा भी इस विकृति के शिकार हो रहे हैं । इनमें लिव-इन रिलेशन अर्थात बिन फेरे के साथ-साथ रहने का घातक रोग पनप रहा है । इसके लिए इन्हे स्वीकृति भी मिल रही है और अब उन्हे मकान मालिक से ममेरे या चचेरे भाई बहन होने का दिखावा भी नहीं करना पड़ता । युवाओं के बीच कालसेंटरो की लोकप्रियता 'इजी मनी-इजी सेक्स' एवं वन नाइट स्टैंड' जैसे सूत्रो का चलन जोर पकड़ता जा रहा है , जो की चिन्तनीय है ।

इस समस्या का सच जीवन की श्रेष्ठता के गलत मानद़डो में निहित है । अच्छा विद्दार्थी कौन ? वही जो अच्छे नंबर लाए । अब तो आलम यह है कि ये विद्दार्थी अपने अभिभावक से यह कहने में भी नहीं चूकते कि मेरे मार्क्स तो ८० प्रतिशत है , अब थोडी सी शराब पी ली या सिगरेट ही पी ली तो कौन सा गलत काम कर दिया ? इसी तरह समाज एंव माँ बाप की नजरों में वही श्रेष्ट युवा है जो ज्यादा पैसे कमाता हो , ऐशो आराम के साधन जुटानें के लिए वह क्या कर रहा है, इससे किसी को क्या ? श्रेष्ठता की इस होड़ में नैतिकता , चरित्र , व्यवहार के कोई मायने नहीं हैं ।
इन ढहती नैतिकता को बचाना होगा । महाविद्दालायों-विश्वबिद्दालयों में पढने और कामकाजी युवक-युवतियों को नैतिकता का सच समझना ही चाहिए , समझना चाहिए कि हम कही कुछ ऐसा तो नहीं कर रहें जिससे हमारी मर्यादा, हमारी संस्कृति नष्ट हो रही है । नैतिकता है जिंदगी की उर्जा का सरंक्षण एवं उसके सदुउपयोग की निति । यह प्रकृति और समाज के साथ ऐसी सामंजस्य की अनुठी शैली है, जिसमें व्यक्ति प्रकृति से अधिकाधिक शक्तियों के अनुदान प्राप्त करता है । इससे सुख छिनते नहीं बल्कि सुखो को अनुभव करने की क्षमता बढ़ती है । आज के समय में विद्दार्थी एवं उनके अभिभावक दोंनो को यह समझना जरुरी है कि जिदंगी परीक्षा के नंबरो कि गणित तक ही सिमटी नहीं है , बल्कि इसका दायरा व्यक्तित्व की संपूर्ण विशालता एवं व्यापकता में फैला है । परीक्षा में नंबर लाने के बाद कुछ भी करने की छूट पाने के लिए हम जताना अर्थहीन है । इसी तरह कामकानजी युवाओं के लिए धन कमानें की योग्यता ही सबकुछ नहीं है । उन्हे अपनी जिदंगी को नए सिरे से समझने की कोशिश करनी चाहिए । अच्छा हो कि अनुभवी जन इसमें उनके सहायक बनें । इस विकृति के जो भी कारण हों, उन्हे दूर किया जाना चाहिए ।