ए महबूब ! फिर कर रहा, ये नादाँ, वही पुरानी बात तुझसे
कौंधते है जो ज़हेन में, पूंछने है वही चंद सवालात तुझसे
कब पहुंचेगी अर्सा-ए-दहर की तपिश में ठण्ढक
अभी क्या देर है, वस्ल-ए-सब को, आखिर कब होगी मुलाकात तुझसे
क्यूँ भटकता दर-बदर आरजू-ए-काफिला दिल का
कब पाएगी ये बेजाँ रूह, नूर-ए-हयात तुझसे
तेरे इश्क की मीरास है, फिर क्यूँ माजूर हूँ मै
भला कब पाएगी बुझती शमाँ, दरख्शां सबात तुझसे
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(अर्सा-ए-दहर= संसार का मैदान, वस्ल-ए-सब= मिलन की शाम, नूर-ए-हयात= जीवन का उजाला, मीरास= धरोहर , दरख्शां=चमकने वाला, चमकीला )
कौंधते है जो ज़हेन में, पूंछने है वही चंद सवालात तुझसे
कब पहुंचेगी अर्सा-ए-दहर की तपिश में ठण्ढक
अभी क्या देर है, वस्ल-ए-सब को, आखिर कब होगी मुलाकात तुझसे
क्यूँ भटकता दर-बदर आरजू-ए-काफिला दिल का
कब पाएगी ये बेजाँ रूह, नूर-ए-हयात तुझसे
तेरे इश्क की मीरास है, फिर क्यूँ माजूर हूँ मै
भला कब पाएगी बुझती शमाँ, दरख्शां सबात तुझसे
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(अर्सा-ए-दहर= संसार का मैदान, वस्ल-ए-सब= मिलन की शाम, नूर-ए-हयात= जीवन का उजाला, मीरास= धरोहर , दरख्शां=चमकने वाला, चमकीला )