कुछ कारणों से इस कविता का प्रकाशन समय पर न हो सका जिसके लिए हमें खेद है । मदर्स डे की यह प्रस्तुति .
मेरी माँ ओ स्नेहमयी माँ
कैसे तेरा गुण-गान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का
शत-शत तुझे प्रणाम करू मैं ॥
तूफानों से लडी हमेशा
हँस-हँस कर मेरे ही लिऐ
नो मास तक की थी तपस्या
तूनें माँ मेरे ही लिऐ
अपने रक्त का दूध बनाकर
सींचा था मेरे जीवन को
तेरे रक्त की बूँद-बूँद का
कैसे यहाँ बखान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का.............॥
इन्द्रासन सम गोद तेरी है
अन्य सभी सुख झूँठे हैं
फीके जग के मधुर बोल
माँ तेरी बोल अनूठे हैं
अपनी चिन्ता छोड सदा ही
सवांरा था मेरे जीवन को
मुख से कुछ न बोला मैं
तू समझ गई मेरे मन को
तेरी तीव्र परख शक्ति का
कैसे यहाँ बखान करू
मैं
पौध हूँ तेरी बगिया का..............॥
पैरों चलना सीखा ही था
डगमग करता चलता था
उल्टे-सीधे कदम धरा पर
पडे और मैं गिर जाता था
तेरे हृदय में जाने कैसा
कोलाहल सा मच जाता था
उठा मुझे तू ममतामयी
बाँहों में भर लेती थी
धूल पौछना छोड प्यार की
वर्षा सी कर देती थी
तेरी ममता की समता
जग में किससे आज करू मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का.................॥
धुँधली स्मृति जागृत होते ही
मेरा तन मन
थर्राता है
देख तेरा अदभुत साहस
विस्मय में यह पड जाता है
भूखी रहती अगर कभी तू
मेरा पेट न खाली रहता
कैसी भी हो विपदा तुझपर
तेरा मुख कुछ भी न कहता
ओ सत्साहसनी
,शक्तिमूर्ति
तेरी किससे तुलना करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी..............................॥
ममता के आँचल के वे दिन
सुख के दिन थे
मेरे लिऐ बचपन के वे दिन
स्वर्णमयी दिन थे
आज याद बचपन आता
यौवन को सूना बतलाता
सब सामंजस,
सब यश-अपयश
नाशवान है
अक्षय रहेगी कीर्ति तेरी
स्वार्थी जग में किन शब्दों से
तेरी महिमा बखान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का माँ
शत-शत तुझे प्रणाम करूँ मैं ॥
डॉ.योगेन्द्र मणि
1/256 गणेश तालाबबसन्त विहारकोटा -09
राजस्थानपिन-3244009
मो.09352612939
मेरी माँ ओ स्नेहमयी माँ
कैसे तेरा गुण-गान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का
शत-शत तुझे प्रणाम करू मैं ॥
तूफानों से लडी हमेशा
हँस-हँस कर मेरे ही लिऐ
नो मास तक की थी तपस्या
तूनें माँ मेरे ही लिऐ
अपने रक्त का दूध बनाकर
सींचा था मेरे जीवन को
तेरे रक्त की बूँद-बूँद का
कैसे यहाँ बखान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का.............॥
इन्द्रासन सम गोद तेरी है
अन्य सभी सुख झूँठे हैं
फीके जग के मधुर बोल
माँ तेरी बोल अनूठे हैं
अपनी चिन्ता छोड सदा ही
सवांरा था मेरे जीवन को
मुख से कुछ न बोला मैं
तू समझ गई मेरे मन को
तेरी तीव्र परख शक्ति का
कैसे यहाँ बखान करू
मैं
पौध हूँ तेरी बगिया का..............॥
पैरों चलना सीखा ही था
डगमग करता चलता था
उल्टे-सीधे कदम धरा पर
पडे और मैं गिर जाता था
तेरे हृदय में जाने कैसा
कोलाहल सा मच जाता था
उठा मुझे तू ममतामयी
बाँहों में भर लेती थी
धूल पौछना छोड प्यार की
वर्षा सी कर देती थी
तेरी ममता की समता
जग में किससे आज करू मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का.................॥
धुँधली स्मृति जागृत होते ही
मेरा तन मन
थर्राता है
देख तेरा अदभुत साहस
विस्मय में यह पड जाता है
भूखी रहती अगर कभी तू
मेरा पेट न खाली रहता
कैसी भी हो विपदा तुझपर
तेरा मुख कुछ भी न कहता
ओ सत्साहसनी
,शक्तिमूर्ति
तेरी किससे तुलना करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी..............................॥
ममता के आँचल के वे दिन
सुख के दिन थे
मेरे लिऐ बचपन के वे दिन
स्वर्णमयी दिन थे
आज याद बचपन आता
यौवन को सूना बतलाता
सब सामंजस,
सब यश-अपयश
नाशवान है
अक्षय रहेगी कीर्ति तेरी
स्वार्थी जग में किन शब्दों से
तेरी महिमा बखान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का माँ
शत-शत तुझे प्रणाम करूँ मैं ॥
डॉ.योगेन्द्र मणि
1/256 गणेश तालाबबसन्त विहारकोटा -09
राजस्थानपिन-3244009
मो.09352612939