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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

आजान का वो स्वर सुना है (सत्यम शिवम)

मस्जिद में लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों से,
आजान का वो स्वर सुना है।

नमाजों में, दुआओं में,
मुसलमानों के पाक इरादों में,
दिख जाता मुझे आज भी वो खुदा है।


खुदा ना जुदा है बंदो से,
बंदगी उसकी अब भी वही है,
मजहब वही है, खुदा वही है,
इंसानियत ही बस आज सुना सुना है।


मस्जिद में लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों से,
आजान का वो स्वर सुना है।


भाईचारा बद्सलूकी का हमराही बना,
अलविदा कहा उस कौम को,
खुदा भी ताकता रहा बंदो को,
इशारा दिया जुबा को मौन से।

वो ईद की तैयारी,
वो प्यार से गले मिलना,
इक अलग ही खुमार होता था।

रोजा रखना, नमाज पढ़ना,
हर घर में कभी मैने सुना है।

मस्जिद में लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों से,
आजान का वो स्वर सुना है।

भरी दोपहरिया में, बड़ी भोर में,
गोधुली में, हर शाम को,

अल्लाह हो अकबर... का वो धुन,
बंदे कभी तो दिल से सुन।

ना कौम का चर्चा कही,
ना ही मजहब का वास्ता,
बस है खुदा उन बंदो का,
अपनाते है जो मोहब्बत का रास्ता।

मैने तो जाना, मोहब्बत बड़ा,
आज भी धर्म और मजहब से कई गुणा है।


मस्जिद में लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों से,
आजान का वो स्वर सुना है।