सूरत पे आँखें हरदम है
तेरे भीतर कितना गम है
निकलो घर से, बाहर देखो
प्रायः सबकी आँखें नम है
समझ सका दुनिया को जितना
मेरा गम कितनों से कम है
जितना तेज धधकता सूरज
दुनिया में उतना ही तम है
मुझको चाहत नहीं मलय की
मेरा जीवन तो शबनम है
सब मिलकर के चोट करोगे?
क्योंकि लोहा अभी गरम है
होश में सारे परिवर्तन हों
सुमन के भीतर में संयम है
शनिवार, 5 मार्च 2011
मेरा जीवन तो शबनम है----(गजल)---श्यामल सुमन
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6 comments:
BADHIYA PRASTUTI...
PADKAR ACHCHA LAGA,....
निकलो घर से, बाहर देखो
प्रायः सबकी आँखें नम है
संवेदनशील प्रस्तुति -
बहुत अच्छा लिखा है .
समझ सका दुनिया को जितना
मेरा गम कितनों से कम है
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति..
निकलो घर से, बाहर देखो
प्रायः सबकी आँखें नम है
hkikat byan karti panktiyan
sunder gazal
हिन्दी साहित्य मंच सहित आप सबके प्रति विनम्र आभार प्रेषित है। यूँ ही स्नेह बनाये रखें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मुझको चाहत नहीं मलय की
मेरा जीवन तो शबनम है
bahut hi sundar bhaav aur shabd chayan.
--Mayank
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