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मंगलवार, 2 मार्च 2010

गजल अनमोल रहा हूँ....-------[गजल]-------मृत्युंजय साधक

गजल
अनमोल रहा हूँ......
है
दिल की बात तुझसे मगर खोल रहा हूँ
मैं
चुप्पियों में आज बहुत बोल रहा हूँ
सांसों
में मुझे तुझसे जो एक रोज मिली थी
वो
खुश्बूयें हवाओं में अब घोल रहा हूँ
अब
तेरी हिचकियों ने भी ये बात कही है
मैं
तेरी याद साथ लिये डोल रहा हूँ
सोने
की और न चांदी की मैं बात करुंगा
मैं
दिल की ही तराजू पे दिल तोल रहा हूँ
चाहो
तो मुहब्बत से मुझे मुफ्त ही ले लो
वैसे
तो शुरु से ही मैं अनमोल रहा हूँ